अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों का वर्णन करें

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियां (Military achievements of Alauddin Khilji)

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों का वर्णन भारतीय इतिहास में बहुत ही मतत्वपूर्ण स्थान रखता है. अत: इस लेख में हम यथासंभव अलाउदीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों पर प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं. अलाउद्दीन खिलजी अत्यंत महत्त्वाकांक्षी शासक था. वह अपने साम्राज्य के विस्तार करना चाहता था. इस कारण उसे दूसरा सिकंदर भी कहा जाता है. अपने साम्राज्य के विस्तार करने के लिए उसने विजय अभियान शुरू करने का निश्चय किया. उसके द्वारा उत्तर तथा दक्षिण भारत में सैन्य अभियान चलाया गया.

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों का वर्णन

उत्तर भारत का अभियान

1296 ई. में अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बना. इसके बाद उसने एक के बाद एक सभी हिंदू राज्यों में पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. वह उन राज्यों पर विजय प्राप्त करता गया और वहां के लोगों पर अत्याचार किए. उनके द्वारा जीते गए उत्तर भारत के राज्य निम्नलिखित हैं:-

1. गुजरात विजय

सिंहासन पर आसीन होने के एक साल बाद 1297 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर आक्रमण किया. इस अभियान में खिलजी सेना का संचालन उलुग खां तथा नुसरत खां कर रहे थे. इस समय गुजरात का शासक कर्ण था. वह खिलजी के सेनापति का सामना नहीं कर पाया और भागकर देवगिरी के राजा के पास शरण ली. खिलजी की सेना ने गुजरात की राजधानी अहिरवाड़ को लूटा. कर्ण की पत्नी कमा देवी को पकड़कर सुल्तान की सेवा में दिल्ली भेज दिया गया. खिलजी की सेना ने सोमनाथ मंदिर पर भी लूटपाट की जिससे उनको काफी धन मिला.

जब खिलजी की सेना लूटकर धन लेकर वापस लौट रहे थे. तब उनमें लूट के धन को लेकर आपसी झगड़ा हो गया. इसी झगड़े में नये मुसलमानों ने नुसरत खां के भाई की हत्या कर दी. इसका बदला लेने के लिए नुसरत खां ने नये मुसलमानों की स्त्रियों से निर्दयता से व्यवहार करने की आज्ञा दी. फिर उनको नीच लोगों को सौंप दिया ताकि उनसे मनमाना व्यवहार कर सकें. उनके बच्चों को माताओं के सिर पर रखकर टुकड़े-टुकड़े कर दिए.

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों

2. रणथंबोर विजय

गुजरात विजय से उत्साहित होकर अलाउद्दीन ने रणथंभोर पर आक्रमण किया. रणथंभोर पर आक्रमण करने के कई कारण थे. पहला- पहले रणथंभौर दिल्ली के सल्तनत अधीन हुआ करता था. इसीलिए इसे पुनः अपने अधीन करना चाहता था. दूसरा- उसने अलाउद्दीन के दुश्मनों अर्थात नये मुसलमानों को शरण दे रखा था. तीसरा- यह एक शक्तिशाली किला था. अतः वह इसे हर हाल में जीतना चाहता था.

रणथंबोर के शासक हम्मीरदेव ने अत्यंत वीरता से खिलजी की सेना का सामना किया. उससे खिलजी के सेनापति नुसरत खां की हत्या कर दी. नुसरत खां के मारे जाने के बाद खिलजी ने स्वयं रणथंभौर के लिए प्रस्थान किया. एक वर्ष तक चले संघर्ष में सुल्तान रणथंबोर के किले पर कब्जा करने में नाकाम रहा. तब अलाउद्दीन ने कूटनीति का सहारा लेते हुए हम्मीर देव के प्रधानमंत्री रणमल को अपनी ओर मिला लिया और उसकी सहायता से खिलजी ने रणथंबोर पर विजय प्राप्त की.

3. चित्तौड़ पर आक्रमण

अमीर खुसरो के वर्णन से इस बात से पता चलता है कि अलाउद्दीन खिलजी ने वर्ष 1903 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया. चित्तौड़ का किला रणथंबोर के बाद उत्तर भारत का सबसे प्रमुख शक्तिशाली किला था. अलाउद्दीन खिलजी के द्वार चित्तौड़ पर आक्रमण करने के दो कारण थे. पहला- वह संपूर्ण भारत पर अपनी विजय का पताका फहराना चाहता था तथा दूसरा- चितौड़ की खूबसूरत महारानी को हासिल करना था. अमीर खुसरो के वर्णन के अनुसारर 8 माह तक चित्तौड़ को घेरे रहने के बाद अलाउद्दीन को सफलता नहीं मिल पा रही थी. अंत में भीषण संघर्ष के बाद उसे सफलता मिली और उसने किले पर अधिकार कर लिया. इसके बाद रानी पद्मावती ने अन्य राजपूत स्त्रियों के जौहर कर लिया. इससे क्रोधित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने हजारों राजपूतों की हत्या करवा दी. अलाउद्दीन ने चितौड़ का नाम बदलकर खिजराबाद दिया और अपने पुत्र खिज्राखां को सूबेदार न्युक्त किया. चितौड़ पर अधिक समय तक खिलजी अपना अधिकार नहीं रख सका क्योंकि शीघ्र ही राणा हम्मीर ने उस पर आक्रमण कर अधिकार कर लिया.

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों

5. मालवा

मेवाड़ पर अधिकार करने के बाद 1305 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने मालवा पर आक्रमण किया. इस समय मालवा का सेनापति हरनंद था. वह अत्यंत पराक्रमी योद्धा था. उसने खिलजी की सेना का वीरता से सामना किया. दुर्भाग्यवश युद्ध के दौरान मारा गया और मालवा पर खिलजी की सेना का अधिकार हो गया.

6. अन्य विजय

मालवा पर अधिकार करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने उज्जैन, धारा, चंदेरी, मारवाड़ आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया. इस जीत के बाद उसने न केवल संपूर्ण भारत पर अधिकार कर लिया बल्कि उसे अपार धन राशि प्राप्त.

उत्तर भारत विजय अभियान के बाद उसने दक्षिण भारत के राज्यों को भी जीतने का प्रयास किया. 

दक्षिण भारत के विजय अभियान 

1. वारंगल का अभियान

1303 ई. में अलाउद्दीन ने दक्षिण भारत के प्रथम अभियान आरंभ किया. उसने एक शक्तिशाली सेना नुसरत खां के भतीजे छज्जू के नेतृत्व में भेजी. उसने वारंगल पर आक्रमण किया. इस समय वारंगल में काकतीय वंश के एक प्रतापी शासक प्रताप रुद्रदेव शासन कर रहा था. उसने बहादुरी से खिलजी की सेना का सामना किया और खिलजी की सेना को परास्त कर दिया.

2. देवगिरी पर विजय

अलाउद्दीन खिलजी ने 1294 ई. में इसी में देवगिरि पर विजय प्राप्त की थी. इसके पश्चात देवगिरि के राजा रामचंद्र देव ने अलाउद्दीन खिलजी को वार्षिक राजस्व देने का वचन दिया था. लेकिन वर्ष 1303 ई. से राम चंद्र देव ने खिलजी को कर देना बंद कर दिया. इससे क्रोधित होकर अलाउद्दीन ने नाइब मलिक के नेतृत्व में अपनी सेना देवगिरि पर आक्रमण करने भेजी. रामचंद्र देव ने खिलजी की सेना का सामना किया. लेकिन उसे हार कर आत्मसमर्पण करना पड़ा और खिलजी को अपार धनराशि भेजना पड़ा. सुल्तन  ने भी उससे अच्छा व्यवहार किया तथा उसे राय रायन अर्थात सरदारों के सरदार की उपाधि प्रदान की. 

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों

3. वारंगल विजय

वारंगल के प्रथम अभियान में असफल होने के बाद खिलजी सेना ने 1308-9 ई. में फिर से वारंगल पर आक्रमण किया. इस बार खिलजी की सेना को देवगिरि के राजा की मदद मिली. सेनापति मलिक काफूर के नेतृत्व में खिलजी सेना ने वारंगल के दुर्ग को काफी क्षति पहुंचाई. मजबूर होकर वारंगल के शासक प्रताप रूद्रदेव को आत्मसमर्पण करना पड़ा. युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में उसे 300 हाथी, 700 घोड़े तथा अपार धन देना पड़ा. इसके अलावा वार्षिक कर भी देना स्वीकार किया. 

4. होयसल राज्य

मैसूर के समीप स्थित होयसल राज्य पर राजा बल्लाल शासन कर रहा था. 1310 ई. में खिलजी की सेना ने इसपर आक्रमण किया. राजा बल्लाल खिलजी की सेना का सामना नहीं कर पाया. अतः उसे हार कर आत्मसमर्पण करना पड़ा. खिलजी सेनापति मलिक काफूर ने उसकी राजधानी को लूटा और मंदिरों को ध्वस्त किया. इसके बाद बल्लाल को खिलजी की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी.

अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों

5. पाण्ड्य राज्य

खिलजी सेना जब होयसल राज्य को लूट रही थी, इसी दरम्यान पाण्ड्य राज्य में सिंहासन पर अधिकार करने को लेकर वीर पाण्ड्य तथा सुंदर पाण्ड्य के बीच संघर्ष चल रहा था. सुंदर पाण्ड्य ने खिलजी सेनापति मलिक काफूर से मदद मांगी. मलिक काफूर ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया. इसके बाद मलिक काफूर ने पाण्ड्य राजधानी मदुरा पर आक्रमण कर उसे लूटा. वीर पाण्ड्य ने साहस नहीं खोया और खिलजी सेना के खिलाफ छापामार युद्ध जारी रखा. मलिक काफूर ने वीर पाण्ड्य को पकड़ने का काफी प्रयास किया लेकिन वह असफल रहा. इस दौरान खिलजी सेना ने पाण्ड्य राज्य की इतना लूटा कि उसे इतनी अपार धन प्राप्त हुई जिसकी कल्पना उसने स्वप्न में भी नहीं की थी. वूल्जले हेग के अनुसार मलिक काफूर को इस लूट में 312 हाथी, 20,000 घोड़े, 2,750 पौंड सोना तथा रत्न प्राप्त हुए. इस लूट के धन के साथ वह दिल्ली लौट गया.

6. देवगिरि पर दूसरा आक्रमण

देवगिरी के राजा रामचंद्र की मृत्यु 1310 ई. में हो गई थी. इसके पश्चात उसका पुत्र शंकरदेव देवगिरी का राजा बना. वह शुरू से ही सुल्तान का विरोधी था. अतः 1311 ई. में उसने खिलजी को कर देना बंद कर दिया. इसके करण 1313 ई. में मलिक कापूर के नेतृत्व में खिलजी सेना ने देवगिरी पर पुनः आक्रमण किया. शंकरदेव ने मालिक कपूर का बहादुरी से मुकाबला किया लेकिन युद्ध के दौरान वह मारा गया और देवगिरि पर मलिक कापूर का अधिकार हो गया. इसके पश्चात मलिक कापूर ने गुलबर्गा, दमौल तथा चोल पर भी अधिकार कर लिया. इस अभियानों से उसे अपार धन-संपत्ति मिली. वह इन्हें लेकर दिल्ली वापस लौट गया.

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2 thoughts on “अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य उपलब्धियों का वर्णन करें”

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