ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करें

ऋग्वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति

ऋग्वैदिक काल में भी राजनीति व्यवस्था हुआ करती थी. राजनीतिक व्यवस्था समाज के विभिन्न हिस्सों की संचालन के लिए अलग-अलग विभाग में वर्गीकृत थे. ऋग्वैदिक काल के राजनीतिक व्यवस्था के निम्नलिखित भाग थे:-

1. कुटुंब

कुटुंब वैदिक कालीन राजनीति व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई थी. इसमें परिवार संयुक्त परिवार के लोग होते थे. परिवार का प्रधान सबसे ज्यादा आयु वाला पुरुष सदस्य होता था. कुटुंब के समस्त सदस्यों को परिवार के प्रधान की आज्ञा का पालन करना होता था.

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2. ग्राम

अनेक कुटुंब के समूह को ग्राम कहा जाता था. ग्राम का भी एक प्रधान होता था जिसे लोग  ग्रामीण कहते थे. उसका पद बहुत ही महत्वपूर्ण होता था. उसके आज्ञा का पालन प्रत्येक ग्राम वासियों को करना पड़ता था.

3. विश

अनेक ग्रामीणों से मिलकर एक विश बनता था. विश के प्रधान अधिकारी को विशपति के नाम से जाना जाता था.

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4.जन

अनेक विश मिलकर जन का निर्माण करते हैं. जन के प्रधान अधिकारी को गोप के नाम से जाना जाता था. गोप का पद तत्कालीन प्रशासन का एक महत्वपूर्ण पद होता था.

5. राष्ट्र

देश अथवा राज्य को राष्ट्र कहा जाता था. राजा राष्ट्र का प्रधान होता था. राष्ट्र की सुरक्षा और संचालन राजा के द्वारा ही किया जाता था.

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6. शासन व्यवस्था

ऋग्वैदिक काल में शासन व्यवस्था राजतांत्रिक होती थी. इस शासन व्यवस्था के प्रमुख तीन भाग होते थे:- 

  • राजा:- राजा राज्य या राष्ट्र प्रमुख  होता था. राजा का पद वंशानुगत  था. राजा को राजवंश से ही चुना जाता था. इसका मुख्य काम शत्रुओं से अपनी प्रजा की रक्षा करना होता था. जनता भी अपने राजा से प्रेम रखती थी. ऋग्वेद के अनुसार उस समय राजा निरंकुश नहीं होता था. राजा को राज्यअभिषेक के दौरान प्रजा के हित काम  शपथ लेनी पड़ती थी.  
  • पुरोहित और सेनानी:- राजा को प्रशासनिक  मदद  लिए अनेक  थे. इनमें पुरोहित और सेनानी होते थे. ऋग्वेदिक काल में राज्य अत्यंत छोटे-छोटे होते थे. इसीलिए ये कुछ ही संख्या में होते थे. पुरोहित का काम धार्मिक क्रियाकलाप के साथ- साथ राजनितिक कार्यों में राजा का सहयोग करना होता था. सेनानी, सेना का सबसे बड़ा अधिकारी होता था. उसका काम अन्य राज्य में आक्रमण करना तथा दुश्मन से अपने राज्य की रक्षा करना होता था. 
  • सभा एवं समिति:- सभा एवं समिति के कार्यों के बारे में तो स्पष्ट नहीं है, पर विद्वानों के अनुसार ये समितियाँ राजा को नियंत्रण में रखती थी ताकि राजा कोई मनमानी न कर सके. वेदों में सभा एवं समिति को प्रजापति का कन्या कहा गया है. 

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7. न्याय व्यवस्था

ऋग्वेद के अनुसार उस समय भी न्याय व्यवस्था हुआ करती थी. इस व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था. उसका सहायक पुरोहित होता था. उस काल में चोरी, धोखेबाजी, पशुओ की चोरी जैसे अपराध होते थे. अपराधों के लिए कठोर दंड का भी प्रावधान था. 

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