कल्याणी के चालुक्यों की संक्षिप्त इतिहास लिखिए

कल्याणी के चालुक्यों का संक्षिप्त इतिहास

कल्याणी के चालुक्यों के इतिहास की जानकारी हमें लगभग उन्हीं स्रोतों से मिलती है जिनसे हमें बादामी चालुक्य वंश की जानकारी मिलती है. कल्याणी चालुक्यों से संबंधित बहुत से अभिलेख मिले हैं. इन अभिलेखों के लेख मुख्यतः कन्नड़ भाषा में होते हैं. ये अभिलेख ज्यादातर पत्थरों पर खुदे हैं. इनके बारे में जानकारी देने वाले ताम्रपत्र बहुत कम मिलते हैं.
कल्याणी के चालुक्यों का संक्षिप्त इतिहास
कल्याणी के चालुक्य खुद को बादामी चालुक्यों का संबंधी बताते हैं. उनका कहना है कि वे बादामी चालुक्य के विक्रमादित्य द्वितीय के किसी भाई का वंशज हैं. हालांकि उस भाई का नाम का जिक्र किसी भी अभिलेख में नहीं मिलता है. पट्टदकल में मिले अभिलेख के अनुसार तैलप महाराजधिराज देव का दूसरा नाम पेग्गर्डे महाराजन भी था. वह इस समय राष्ट्रकूटों के सामंत थे. राष्ट्रकूट के शासक कृष्ण ने अपने पुत्री का विवाह तैलप से कराई. इन दोनों से विक्रमादित्य चतुर्थ का जन्म हुआ. विक्रमादित्य चतुर्थ ने त्रिपूरी के चेदी शासक लक्षणसेन की कन्या बोंथा देवी से विवाह किया.
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विक्रमादित्य चतुर्थ और बोंथा देवी से तैलप द्वितीय (973-997 ई.) का जन्म हुआ. प्राप्त अभिलेखों से पता चलता है कि वह राष्ट्रकूटों का सामंत था जो कि बीजापुर के तर्दवाडि के छोटे से प्रदेश पर शासन करता था. इसी बीच कृष्ण तृतीय की आक्रमक नीतियों के कारण राष्ट्रकूटों की शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगी जिससे उनकी शक्तियों का क्षय होना शुरू हो गया. ऐसे में तैलप द्वितीय को अवसर प्राप्त हुआ कि वह चालुक्यों की खोई प्रतिष्ठा वापस प्राप्त करे. उसने 972 ई. में कर्क द्वितीय को परास्त किया और राष्ट्रकूट सामतों की शक्तियों को खत्म करना शुरू कर दिया. राष्ट्रकूटों के पतन के बाद उसने नर्मदा और तुंगभद्रा नदी के बीच एक विशाल राज्य की स्थापना की. उसने अपनी राजधानी मान्यखेट बनाई. 980 ई. में तैलप द्वितीय ने चोल के शासक उत्तम चोल को परास्त किया और  दक्षिणी कोंकण के राजा अवसर तृतीय को भी अपनी अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया.

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तैलप एक महान योद्धा थे. उसने चेदि, उड़ीसा, कुंतल, गुजरात के चालुक्य, मालवा के परमार शासक मुंज और चोल शासक उत्तम को परास्त किया. तैलप द्वितीय ने छह बार मालवा पर आक्रमण किया लेकिन शासक मुंज सफलतापूर्वक तैलप का सामना किया. बार-बार  की जा रही आक्रमण से परेशान होकर उसने गोदावरी नदी पार करके चालुक्य साम्राज्य पर हमला कर दिया. लेकिन इस युद्ध में वह पराजित हुआ और उसे बंदी बना लिया गया फिर बाद में उसकी हत्या कर दी गयी. तैलप ने पंचाल नरेश को भी अपने अधीन कर लिया. इस प्रकार विभिन्न युद्धों में भाग लेकर उसने चालुक्यों के एक बड़े साम्राज्य का निर्माण किया. 

तैलप के उत्तराधिकारी सत्याश्रय (997-1068 ई.) हुए. उनको भी अनेक युद्ध लड़ने पड़े. उसे परमार शासक सिंधुराज और कलचुरि शासक कोक्कल द्वितीय ने परास्त किया. उसने चोल शासक राजराज को परास्त करने में सफलता पाई. इसके पश्चात तैलप के अनेक से उत्तराधिकारी हुए. वे शत्रुओं से अपने साम्राज्य की रक्षा करने में असमर्थ रहे.

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उसके पश्चात् में सोमेश्वर प्रथम (1043-1068 ई.) चालुक्य साम्राज्य का शासक बना. उसे काफी सफलता मिली. उसने 1055 ई. में मालवा के परमार शासक भोज और कलचुरी शासक लक्ष्मी को पराजित करके आधुनिक मध्यप्रदेश के दक्षिणी जिलों पर अधिकार कर लिया. उसने कोंकण, मालवा, गुजरात दक्षिणी कोसल और केरल पर भी आक्रमण किए तथा कलचुरी शासक कर्ण से युद्ध किया. उनका मुख्य झगड़ा चोल शासकों से रहा. चोल शासक राजाधिराज ने उसकी राजधानी कल्याणी को लूटने में सफलता पाई, परंतु सोमेश्वर उससे संघर्ष करता रहा और अंत में उनके बीच हुए एक युद्ध में राजाधिराज चोल मारा गया. इसके पश्चात राजाधिराज के भाई राजेंद्र चोल सहित अन्य सोमेश्वर के आक्रमण आक्रमणों के विरुद्ध चोल साम्राज्य की रक्षा करने में सफलता पाई और अंत में 1063 ई. में सोमेश्वर की पराजय हुई. सोमेश्वर प्रथम के बाद सोमेश्वर द्वितीय (1068-1076 ई.) शासक बना. इसके बाद विक्रमादित्य षष्ठ (1076-1126 ई.) शासक बना.

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इसने अनेक युद्ध करके अपने राज्य का विस्तार किया. उसका राज्य उत्तर में नर्मदा नदी और दक्षिण में कडप्पा और मैसूर तक फैल गया. इसके पश्चात सोमेश्वर तृतीय, जगदेकमल्ल और तैलप चालुक्यों के शासक हुए. तैलप तृतीय के समय चालुक्य राज्य छिन्न-भिन्न हो गया. उसने चालुक्य कुमारपाल और कुलोत्तुंग चोल के विरूद्ध सफलता पाई लेकिन वह काकतीय राजाओं का सामना नहीं कर पाया. अंत में उसी के सेनापति विज्जल ने उसकी राजधानी कल्याणी पर अधिकार कर लिया. 1181 ई. में सोमेश्वर चतुर्थ ने वापस अपने पूर्वजों के राज्य पर अधिकार कर लिया परंतु यादव शासक भिल्लम से परास्त होकर भागना पड़ गया. सोमेश्वर चतुर्थ कल्याणी चालुक्य वंश का अंतिम शासक हुआ. उसे गोवा में अपने ही अधीन एक सामंत के पास रहकर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा. 

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