जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति का वर्णन करें

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति

अलेक्जेंडर द्वितीय की मृत्यु बाद उसका पुत्र अलेक्जेंडर तृतीय रूस का जार बना. उसके पिता की हत्या कर दी गई थी. इसी कारण अलेक्जेंडर तृतीय के मन में उदारवादी सुधारों और उदारवादी आंदोलनों के प्रति कोई सहानुभूति नहीं रही. इसी करण वह अपनी शासन व्यवस्था में घोर प्रतिक्रियावादी नीति अपनाने लगा.

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति

अलेक्जेंडर तृतीय उच्च शिक्षा हासिल नहीं किये था, लेकिन फिर भी उसका व्यक्तित्व काफी प्रभावशाली था.  उसमें शासन चलाने संबंधी व्यवहारिक ज्ञान में कोई कमी नहीं थी. वह जनता की आशाओं और उनकी आवश्यकताओं से भी परिचित था, पर वह जानबूझकर उसके प्रति उदासीन दृष्टिकोण बनाए रखता था. विभिन्न अवसरों पर रूसी जनता अपने आक्रोश का अभिव्यक्ति कर रही थी, लेकिन अलेक्जेंडर तृतीय जानबूझकर इन को नजरअंदाज करता रहा. 

जार अलेक्जेंडर द्वितीय अपनी शासन व्यवस्था में प्रतिसुधारवाद की नीति अपनाई. तत्कालीन दृष्टिकोण से यह नीति लाभप्रद रहा, पर इसके दीर्घकालीन प्रभाव ने रूस के जारशाही को काफी नुकसान पहुँचाया.

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृहनीति

1. एकतंत्रीय शासन व्यवस्था की स्थापना

एलेग्जेंडर तृतीय एकतंत्रीय शासन व्यवस्था का कट्टर समर्थक था. वह खुद को रूसी शासन व्यवस्था का केंद्र बिंदु बनाना चाहता था. रूढ़िवादी प्रवृत्ति होने के कारण वह रूस में एकतंत्रवाद तथा रूढ़िवाद के सहारे जारशाही और रूसी राष्ट्रवाद को मजबूत करना चाहता था. उस समय रूस का प्रमुख दार्शनिक पोबेदोनोस्त्सेव था. वह कट्टर रूढ़िवादी विचारधारा का था. उसे औद्योगिक क्रांति तथा नगरों का विकास आदि जैसे आधुनिक संकल्पनओं से ही घृणा थी. उसके विचारों से सहमत होकर अलेक्जेंडर तृतीय ने उदारवादी तथा क्रांतिकारी आंदोलन के प्रति कठोर नीति अपनाई और अपना दायित्व जनता के आर्थिक जरूरतों को पूरा करने तक ही सीमित रखा.

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति

2. लोकतंत्रीय भावनाओं पर कठोर नियंत्रण

जार अलेक्जेंडर तृतीय ने अपनी गृहनीति में सबसे ज्यादा इस बात पर जोर दिया कि जनता के मुक्त लोकमत वाली भावनाओं को नियंत्रित किया जाए. इसके लिए उन्होंने स्वशासन व्यवस्था से संबंधित कानूनों का पुर्ननिरिक्षण किया. उसने कानूनों में संशोधन करके शासन व्यवस्था पर नियंत्रण करने के लिए कठोर नीतियां बनाई. उसने प्रांतीय राज्यपालों की शक्तियों में भी वृद्धि कर दी. अब कृषक केवल जेम्स्तवों के सदस्यों की का निर्वाचन कर सकते थे और राज्यपाल इन उम्मीदवारों से प्रतिनिधियों का चुनाव करते थे.

3. अस्थायी अधिनियम

अलेक्जेंडर तृतीय ने रूस की आंतरिक सुरक्षा विधि व्यवस्था और सार्वजनिक सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए वर्ष 1881 ई. में कई अस्थायी अधिनियम जारी किए. इन अधिनियमों के द्वारा उसने लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, उदारवादी तथा क्रांतिकारी आंदोलन पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की. इन अधिनियमों के आधार पर अब सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर प्रेस तथा किसी भी व्यक्ति की तलाशी ली जा सकती थी. संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को बिना सबूत के गिरफ्तार किया जा सकता था. देशद्रोह जैसे गंभीर मामलों में बंदियों को साइबेरिया जैसे ठंडे स्थानों पर भेजा जा सकता था. अस्थायी अधिनियम के लागू होने के बाद सैन्य अदालतों में हर दिन मुकदमा चलना सामान्य बात हो गई. राजनीतिक षड्यंत्र और जारशाही के विरुद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कठोर कठोर कार्रवाई की जाने लगी. 1887 ई. में जार अलेक्जेंडर के विरुद्ध षड्यंत्र करने के मामले में लेनिन के भाई अलेक्सान्द्र उल्यानोव को फांसी दी गई थी. इस अधिनियम के द्वारा पुलिस को अधिक शक्ति प्रदान कर के नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाया गया. रूस में रहने वाले दूसरे प्रांत के लोगों को शक की दृष्टि से देखा जाने लगा. यह अधिनियम सैन्य व्यवस्था के शासन प्रणाली के समान थी.

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4. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध

जार अलेक्जेंडर तृतीय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को अपने शासन व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा खतरा समझता था. वह सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली का भी विरोधी था. इसलिए वह शिक्षा को एक वर्ग (अभिजात्य वर्ग) तक ही सीमित रखना चाहता था. उसे इस बात की जानकारी थी कि यूरोप में बौद्धिक क्रांति शिक्षा के द्वारा हुई थी. अतः वह रूस को इससे बचाना चाहता था. इसलिए उसने शिक्षा प्रणाली और समाचार पत्रों पर नियंत्रण रख करने की कोशिश की ताकि इसके द्वारा क्रांतिकारी विचारधारा न फैल सके. इसके लिए सबसे पहले उसने प्रेस पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से कठोर कानून लगा दिया. इन समाचार पत्रों पर अब उदारवादी तथा क्रांतिकारी विचारधारा को प्रकाशित करना गैरकानूनी घोषित कर दिया. समाचार पत्रों की पूर्व निरीक्षण अब कठोरता से किया जाने लगा. इसके बाद उसने प्राथमिक, माध्यमिक तथा विश्वविद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था ऊपर भी कठोर निगरानी रखने की कोशिश की. अब रूसी छात्र भी बहुत कठिनाई से विद्यालय में प्रवेश पा सकते थे. काफी कठिनाइयों के बाद प्रवेश पाने के बाद भी उनको इस बात की गारंटी देनी होती थी कि वह किसी भी संगठन या गुप्त संस्था का निर्माण नहीं करेंगे.

5. कृषकों के प्रति प्रतिक्रियावादी नीति का अवलंबन

19 वीं शताब्दी में कृषि दास प्रथा रूस की सबसे घृणित व्यवस्था थी. इस कुप्रथा के विरुद्ध रूस के कृषक समाज लगातार आवाज उठा रहे थे. इस कारण स्थिति की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन जार अलेक्जेंडर द्वितीय ने 1861 ई. में एक कानून बनाकर कृषि दास प्रथा को अवैध घोषित कर दिया था. लेकिन वर्तमान जार अलेक्जेंडर तृतीय ने अपने प्रतिक्रियावादी शासन व्यवस्था के कारण कृषकों को फिर से दासत्व के चंगुल में बांधने की कोशिश की. उसने कृषकों को मजदूरी, अनुशासन, आदि के प्रश्नों के आधार पर दबाव देने की कोशिश की. इसके लिए उसने 1886 ई. में एक कानून बनाया. इस कानून के अनुसार यदि मजदूर पारिश्रमिक स्वीकार करने के बाद अनुबंध का पालन न करे तो इसे दंडनीय अपराध माना गया. इसके अलावा उसने ग्रामीण प्रशासनिक व्यवस्था और पुलिस व्यवस्था इस प्रकार संगठित किया कि उनपर अब सामंतों का ही नियंत्रण और प्रभाव बना रहे. इस प्रकार जार अलेक्जेंडर तृतीय ने साधारण कृषकों के प्रति एक बार फिर प्रतिक्रियावादी नीतियां बनाने आरंभ कर दी जिसके कारण कृषकों में असंतोष की भावना पनपने लगी.

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति

6. अभिजात्य वर्ग के विशेषाधिकारों में वृद्धि

जार अलेक्जेंडर तृतीय ने अपने शासनकाल में अभिजात्य वर्ग के विशेषाधिकारों में वृद्धि कर दी. उनको स्थानीय स्वशासन तथा न्याय संबंधी कई अधिकार प्रदान किए. 1890 ई. में उसने जेनिस्त्रो व्यवस्था में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किया. इसके तहत उसने अभिजात्य वर्ग को एक अलग समूह मानकर उनके प्रतिनिधित्व में वृद्धि कर दी तथा मतदान करने के अधिकार को कुछ चुने हुए लोगों तक ही सीमित कर दिया और कृषक वर्ग को अनदेखी कर दिया. उसके इस कार्य के पीछे उसका मुख्य उद्देश्य अभिजात्य वर्ग का समर्थन प्राप्त करना था तथा उनके मदद से लंबे समय तक रूस पर शासन करना था. 

7. यहूदियों के प्रति दमनकारी नीति

अलेक्जेंडर तृतीय यहूदियों का कट्टर विरोधी था. इसी कारण वह अपने शासनकाल में यहूदियों के प्रति दमनकारी नीति अपनाया. यहूदियों के खिलाफ बहुत से कानून बनाए गए. इन कानूनों के लागू होने के बाद यहूदी गांवों में संपत्ति खरीद नहीं सकते थे. यहूदियों की सैन्य सेवाएं खत्म कर दी गई.  उनको नगरों में रहने के लिए बाध्य किया जाने लगा. यहूदियों के शिक्षा ग्रहण करने पर भी कई अवरोध उत्पन्न कर दिए गए. 1887 ई. में एक नियम पारित कर शिक्षा लेने वाले यहूदियों की संख्या सीमित कर दी गई. इसके अलावा उनके कई अधिकारों को समाप्त कर दिया गया. मतदान करने के अधिकार खत्म कर दिए गए. बहुत से यहूदी दुकानदारों, व्यापारियों, कारीगरों और शिल्पकारों को मास्को शहर से निष्कासित कर दिया गया. 

जार अलेक्जेंडर तृतीय की गृह नीति

8. अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव की नीति

इस समय रूस में बहुत से अल्पसंख्यक जातियां और संप्रदाय के लोग निवास करते थे. इनमें से मुख्य रूप से रोमन कैथोलिक इसाई, लूथर संप्रदायवादी, यहूदी, मुस्लिम, यूक्रेनियाई, पोलिश, बेलारूसी, जर्मन, एस्टोनिया, रुमानियाई आदि थे. ये सब विभिन्न भाषाओं, जातियों और संप्रदायों से संबंध रखते थे. अलेक्जेंडर तृतीय इन अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करना आरंभ कर दिया. वह इन सबका रूसीकरण करना चाहता था. जार अलेक्जेंडर तृतीय की नीतियों से इन अल्पसंख्यकों में असंतोष की भावना बढ़ती चली गई और कई स्थानों में विद्रोह भी होने शुरू हो गए.

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इन्हें भी पढ़ें:

  1.  लेनिन की नवीन आर्थिक नीति की विवेचना करें
  2.  रूस में मेन्शेविक क्रांति के कारणों की विवेचना करें
  3.  जार अलेक्जेंडर द्वितीय के सुधार आंदोलनों का वर्णन करें

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