पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की विजय के कारणों का वर्णन करें | पानीपत की पहली लड़ाई (1526)

पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की विजय

बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली का शासक इब्राहिम लोदी था. उसके पास एक विशाल सेना थी. बाबर अत्यंत महत्वकांक्षी था. वह अपनी साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था. अपनी इस उदेश्य की पूर्ती दिल्ली पर अधिकार किए बिना संभव नहीं था. इस कारण 19 अप्रैल 1526 ई. को पानीपत की पहली लड़ाई हुई. पानीपत के मैदान में दोनों की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में इब्राहिम लोदी मारा गया. इसके बाद दिल्ली की सिहांसन पर बाबर ने अधिकार कर लिया. इसी के साथ ही भारत में मुग़ल साम्राज्य की स्थापना हुई.

पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण

पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर की विजय के कारण

1. बाबर की महत्वाकांक्षा

बाबर अत्यंत महत्वाकांक्षी था. उसमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हुआ था. वह मात्र 12 वर्ष की आयु में ही फरगना का शासक बना. शासक बनने के बाद उसके सामने बहुत सी विषम परिस्थितियां उत्पन्न हुई. इन चुनौतियों का बाबर ने अत्यंत वीरता पूर्वक सामना किया. महत्वाकाक्षी होने के कारण उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के दिशा में काम करने का प्रयास करना शुरु किया. अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने सर्वप्रथम समरकंद पर अधिकार करने का प्रयास किया, लेकिन उनमें सफल नहीं हो पाया. इसके बाद उसने अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए भारत की ओर प्रस्थान किया. उसने भारत पंजाब तथा भारत के अन्य सीमावर्ती प्रदेशों को जीते हुए दिल्ली सल्तनत पर भी आक्रमण किया. इस समय दिल्ली सल्तनत का शासक इब्राहिम लोदी था. दोनों के बीच हुए भीषण युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को परास्त किया. इसके बाद वह दिल्ली सल्तनत का शासक बन गया.

पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण

2. बाबर के योग्य सेनापति

बाबर खुद एक वीर योद्धा था. उसके सेनापति भी उन्हीं की तरह योग्य और प्रतिभाशाली थे. उसका पुत्र हुमायूं भी एक कुशल सेनापति था. बाबर के नेतृत्व में उसकी सेना ने नवीन युद्ध पद्धति को अपनाया. इसके विपरीत इब्राहिम लोदी के पास न तो बाबर के जैसा योग्य सेनापति था और न ही वह खुद एक कुशल योद्धा था. उसके सैनिक भी नवीन युद्ध प्रणालियों से अवगत नहीं थे. अतः बाबर के द्वारा पानीपत के युद्ध में तुलुगमा नामक आधुनिक युद्ध पद्धति का प्रयोग करने के कारण उनकी जीत हुई.

3. मुगल सेना का रण कौशल

मुगल सैनिक अत्यंत वीर और साहसी थे. वे युद्ध कौशल में भी पूरी तरह निपूर्ण थे. उन्हें युद्ध का भी पर्याप्त अनुभव था. बाबर के सैनिकों को परिस्थिति के अनुकूल कार्य करने का भी अनुभव प्राप्त था. उनके द्वारा अनेक युद्धों में भाग लेने के कारण में उनमें साहस कूट-कूट कर भरा हुआ था. इसके अतिरिक्त उनके सैनिक जानते थे कि भारत एक धनवान देश है. इन्हें जीतने पर उन्हें अपार धन-संपत्ति मिल सकती है. अतः धन संपत्ति की लालच ने उनके उत्साह में और ही वृद्धि किया. इसके विपरीत इब्राहिम लोदी के सैनिक कों पास मुगल सैनिकों के समान योग्यता और युद्ध का अनुभव नही थी. लोदी के सैनिकों में भी युद्ध के प्रति  कोई खास उत्साह भी नहीं थी.

पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण

4. बारूद और तोपखाने का प्रयोग

बाबर ने इस युद्ध में बारुद और तोपखाने का भारी उपयोग किया. उन्होंने ही सर्वप्रथम भारत में तोपों का प्रयोग किया. भारत के सैनिकों के पास इस प्रकार के हथियारों से अभ्यस्त नहीं थे. इसीलिए जब बाबर के सैनिकों ने तोप के गोलों से इब्राहिम लोदी की सैनिकों पर गोला बरसानी शुरू कर दिए तो उनकी सेना में भगदड़ मच गई. लोदी की सेना के हाथी तोप की आवाज सुनकर घबरा गए और अपनी ही सेना को रौंदने लगे.  इससे उनके सैनिकों को काफी नुकसान हुआ और अंतत: उनको हार का सामना करना पड़ा.

पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण

5. बाबर का कुशल सैन्य संचालन और व्यूह-रचना

बाबर सैन्य संचालन और व्यूह-रचना करने में अत्यंत दक्ष था. यद्यपि उसकी सेना में सैनिकों की संख्या कम थी, किंतु वे अत्यंत गतिशील थी. वे काफी तीव्रता से आक्रमण करती थी और विपरीत परिस्थितियों में भाग भी सकती थी. बाबर के सैनिक दो तरफ से तीव्र गति से आक्रमण करते थे और सामने से तोपों से प्रहार करते थे. पानीपत के मैदान में बाबर ने अत्यंत कुशलतापूर्वक व्यूह की रचना की थी. उसने अपनी सुरक्षा की दृष्टिकोण से खाईयों और कटे पेड़ों का पहले ही प्रबंध कर लिया था. उसने पानीपत के युद्ध में जिस प्रकार व्यूह की रचना की थी, वह वैज्ञानिक दृष्टि से भी अचूक थी. इसमें रक्षा और आक्रमण की उचित व्यवस्था थी. इसके विपरीत इब्राहिम लोदी की की व्यूह रचना परिस्थितियों का अनुकूल नहीं थी. उसकी सेना में न तो तीव्र गति थी और न ही आक्रमण करने की क्षमता. इब्राहिम ने हाथियों की सेना को सबसे आगे रख जो तोपों के गोले के डर कर उल्टे पलट कर भागने लगे और अपनी ही सेना को रौंदते चले गए. बाबर की व्यूह-रचना की प्रशंसा करते हुए एस. आर शर्मा ने लिखा है कि बाबर ने घुड़सवार सेना और तो खानों को वैज्ञानिक ढंग से मिलाया था. इब्राहिम की सेना उसका सामना करने के लिए उपयुक्त नहीं थी.

6. कुछ अफगानों का बाबर के साथ होना

इब्राहिम लोदी ने शासक बनने के बाद अपनी साम्राज्य में अनुशासन बनाए रखने के उद्देश्य से कठोर नीति का पालन किया था. इससे अनेक अफगान सरदार उससे नाराज हो गए और उसके विरुद्ध षडयंत्र करने लगे. इन सरदारों में मुख्य रूप से पंजाब का सूबेदार दौलत खां और इब्राहिम का चाचा आलम खां थे. वे इब्राहिम लोदी को पराजित करने में सफल नहीं हो पाए. अत: उन्होंने इब्राहिम लोदी पर आक्रमण करने के लिए बाबर को आमंत्रित किया. इस प्रकार बाबर को इनका समर्थन प्राप्त होने से उनको नैतिक बल मिला और भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रोत्साहित हुआ.

पानीपत के युद्ध में बाबर की विजय के कारण

7. अफगानों का नैतिक पतन

प्रारंभ में अफगान अत्यंत नैतिक मूल्य में विश्वास रखने वाले, परिश्रमी और देश के प्रति प्रेम रखने वाले थे. किंतु धीरे-धीरे वे आराम, मनोरंजन और विलासिता में लिप्त रहने लगे. इसके परिणामस्वरुप उनका नैतिक पतन होना आरंभ हो गया. उनमें स्वार्थ की भावना धीरे-धीरे बढ़ती चली गई.  1526 ई. तक आते-आते उनका यह भावना देश हित से आगे बढ़ गए. इसका प्रमाण इब्राहिम के चाचा आलम खां द्वारा बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण करना था. अतः इस नैतिक पतन ने भी इब्राहिम लोदी के पराजय में प्रमुख योगदान दिया. अलेक्जेंडर डोम ने लिखा है कि इस युद्ध में पराजय का सर्वप्रथम कारण पठानों का नैतिक पतन था जिसके लिए नैतिक एवं सम्मान के मूल्य समाप्त हो चुके थे तथा विलासिता एवं संपत्ति के वे पुजारी थे. अतः उनमें शर्म का डर और प्रसिद्धि का लगाव ही समाप्त हो गया था, तब यदि कुछ पराक्रमी लोगों ने एक ऐसे समूह को जिसमें न तो एकता थी और न अनुशासन हरा दिया तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं.

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