पूर्वी समस्या
मध्यकाल में टर्की साम्राज्य को ऑटोमन साम्राज्य भी कहा जाता था. ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत बोस्निया, हर्जेगोबिना, बुल्गारिया, अल्बानिया, रोमानिया तथा मिस्र जैसे राज्य थे. बाल्कन प्रायद्वीप के दो राज्यों को छोड़कर सभी प्रांतों पर टर्की का अधिकार था. यह साम्राज्य 18 वीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली और संपन्न साम्राज्य हुआ करता था. यूरोपीय राष्ट्र उसकी संपन्नता और वैभव देखकर ईर्ष्या करते थे. लेकिन 19वीं शताब्दी तक आते-आते टर्की साम्राज्य के शासक की गलत नीतियों के कारण टर्की साम्राज्य कमजोर होना शुरू हो गया. इस वजह से टर्की साम्राज्य के अधीन रहने वाले ईसाई जातियों ने स्वतंत्र होने के लिए विद्रोह करना शुरू कर दिया. विद्रोह करने वाले राज्य में मुख्य रूप से यूनान, सर्विया, रुमानिया, बुल्गारिया तथा स्लोवाकिया आदि था. 1789 ईस्वी में होने वाली फ्रांस की क्रांति में भी इन राज्यों को स्वतंत्र होने के लिए और भी प्रेरित किया और उनमें स्वतंत्र होने की भावना और तीव्र होती चली गई. इन राज्यों के द्वारा स्वतंत्र होने के लिए किए जा रहे संघर्ष ने संपूर्ण यूरोप को दो भागों में बांट दिया. एक दल इनकी स्वतंत्रता संग्राम का समर्थक था और दूसरा दल की साम्राज्य को टूटने से बचाने की कोशिश कर रहा था. इस प्रकार यूरोप के दो दलों के बीच होने वाले इस संघर्ष को पूर्वी समस्या कहा जाता है.
रूस के द्वारा पूर्वी समस्या में रूचि लेने की कारण
टर्की साम्राज्य को कमजोर होने देखकर उसका पडोसी राज्य रूस मौके का फायदा उठाकर उसपर कब्ज़ा करके हड़पने के फ़िराक में था. इस समय टर्की साम्राज्य में स्लाव जाति रहती थी. इस जाति का सम्बन्ध रूस में रहनेवाली स्लाव जाति से था. अत: उसने टर्की में रहने वाली इन रुसी जातियों को भड़काने का प्रयास किया कि वे भी अपनी स्वतंत्रता की मांग करे. इसके अलावा रूस एक संधि के तहत टर्की में रहने वाले यूनानी चर्च का संरक्षक था. यरोप के बाल्कन के प्रदेशों में भी बड़ी संख्या में ग्रीक ईसाई रहते थे. रूस खुद भी ग्रीक चर्च का अनुयायी था. अत: इस आधार पर टर्की पर अपना अधिकार समझता था और टर्की साम्राज्य के काला सागर के सीमावर्ती क्षेत्र पर अधिकार करना चाहता था. काला सागर के सीमावर्ती क्षेत्रों पर अधिकार करने से उसकी पहुंच भूमध्यसागर तक आसानी से हो जाती. इधर इंग्लैंड रूस के इस कदम के विरोध में था, क्योंकि भूमध्यसागर पर रुसी नियंत्रण से उसके भारतीय उपनिवेश पर गंभीर खतरा हो सकता था. अत: वह किसी भी हाल में रूस को रोकना चाहता था.
इंग्लैंड के विरोध की खबर रूस को हुई तो उसने इंग्लैंड को टर्की का कुछ हिस्सा देकर उसे अपने पक्ष में करना चाहा. टर्की साम्राज्य की दयनीय हालत देखकर इस समय तक टर्की को यूरोप के बीमार व्यक्ति की संज्ञा दी जाने लगी थी. अत: रूस ने इंग्लैंड को सलाह दी कि टर्की साम्राज्य ज्यादा दिनों तक चल नहीं सकता है. यदि इसे सहारा भी दिया जाए तो भी ज्यादा दिनों नहीं सकता. लेकिन इंग्लैंड टर्की के अस्तित्व को मिटने के पक्ष में नहीं था. इसीलिए रूस के प्रस्ताव को उनसे नाकार किया और रूस को निराश होकर लौटना पड़ा. इंग्लैंड के द्वारा रुसी प्रस्ताव को नकारना ही आगे चलकर क्रीमिया युद्ध को जन्म दिया.
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