फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

फाह्यान: एक परिचय

सम्राट अशोक और कुषाण शासक कनिष्क के प्रयासों से बौद्ध धर्म का प्रसार काफी तेजी से हुआ. बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर समय-समय पर अनेक चीनी यात्रियों ने भारत की यात्रा की ताकि वे बौद्ध धर्म संबंधी अनेक जिज्ञासाओं का समाधान कर सके. इन्हीं चीनी यात्रियों में फाह्यान नाम का एक चीनी यात्री भी था.

फाह्यान का जन्म चीन के वु-युंग नामक स्थान पर हुआ था. उसके बचपन का नाम कुङ था. उसके पिता एक बौद्ध धर्मावलंबी थे. अतः वह कुङ भी बौद्ध धर्म का शिक्षा प्रदान करना चाहता था. कुङ एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ा और उसके स्वस्थ होने की बिल्कुल आशा नहीं थी. अत: उसके पिता ने उसे एक बौद्ध मठ भेज दिया जहां बौद्ध भिक्षुओं के सेवा के कारण पूरी तरह ठीक हो गया.  इससे उसके हृदय में बौद्ध धर्म के प्रति आस्था और प्रबल हो गई. अतः उसने मठ में ही रहने और श्रमण-जीवन व्यतीत करने का निश्चय किया. यहां उसे फाह्यान के नाम से जाना जाने लगा. चीनी भाषा में फा का अर्थ धर्म तथा हियान का अर्थ है आचार्य. इन दोनों शब्दों के मिश्रण से फाह्यान नाम बना. फाह्यान को बौद्ध शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ज्ञात हुआ कि चीन में बौद्ध धर्म का ज्ञान अधूरा है. अत: उसने बौद्ध धर्म के प्रामाणिक ग्रंथो का अध्ययन करने बौद्ध धर्म की जन्म भूमि भारत के दर्शन तथा बौद्ध तीर्थ स्थलों का दर्शन करने का निश्चय किया.

फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

फाह्यान ने 399 ई. में भारत के लिए अपनी यात्रा की शुरुआत की. उसने 405 ई. में भारत की सीमा में प्रवेश किया और वह 414 ई. तक भारत के विभिन्न सांस्कृतिक केंद्रों का दौरा किया. वह खेतान से काशगर पहुंचा फिर मार्ग में अनेक कष्टों को झेलते हुए पुष्कलावती पहुंचा. उसने यहां एक स्तूप होने का उल्लेख किया. वहां से वह तक्षशिला पहुँचा. यहां कुछ वक्त बिताने के बाद वह पुरुषपुर (पेशावर) पहुंचा. वहां उसने कनिष्क द्वारा स्थापित 400 फुट ऊंचा स्तूप देखा. पुरुषपुर से वह पंजाब, मथुरा, मध्य प्रदेश, कन्नौज, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, राजगिरी, कुशीनगर, वैशाली काशी, सारनाथ, बोधगया, नालंदा आदि स्थानों में यात्रा करता हुआ पाटलिपुत्र पहुँचा. पाटलिपुत्र में उसने तीन साल बिताए. फिर यहां से निकल कर वह ताम्रलिप्ति बंदरगाह पहुंचा. वहां से श्रीलंका होते हुए वह चीन लौट गया. इस प्रकार वह स्थल मार्ग से भारत आया तथा वह जल मार्ग से वापस लौट गया. उसने 411 ई. तक भारत में रहकर यहां की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थिति का अध्ययन किया और 414 ई. तक चीन वापस लौट गया.

तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक तथा धार्मिक दशा

1. राजनीतिक दशा

फाह्यान ने अपने वर्णन में भारत की तत्कालीन राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया है. उसके अनुसार भारत का तत्कालीन सम्राट ब्राह्मण धर्म का अनुयायी था तथा उसका शासन प्रबंध सुव्यवस्थित था.  शासन उदार और हल्का था. व्यक्तिगत करो का अभाव था. गृहस्थो को अपने घरों और कुलों का पंजीकरण नहीं कराना पड़ता था. तत्कालीन भारतीय दंड व्यवस्था कानून भी सरल अर्थ है.  अपराधियों के साथ उदारता का व्यवहार किया जाता था तथा अपराधियों को उनके अपराधों के अनुसार ही दंडित किया जाता था. प्राण दंड नहीं दिया जाता था. देश देशद्रोहिता का अपराध करने पर दाहिना हाथ काटा जाता था.  शारीरिक यातनाएअं नहीं दी जाती थी. चोरी, डकैती आदि की घटना नहीं के बराबर होती थी. राजा और प्रजा के आने-जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था. जनता काफी खुशहाल और संपन्न थी. फाह्यान के विवरण से ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रगुप्त के शासनकाल में जनता काफी सुखी थी और उसका दंड विधान भी साधारण था.

फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

फाह्यान लगभग तीन वर्षों तक पाटलिपुत्र में रहा तथा उसने अपने वृत्तांत में पाटलिपुत्र के विषय में अनेक बातें लिखी. फाह्यान के अनुसार पाटलिपुत्र में दो विशाल और सुंदर विहार थे. इस जिसमें एक हीनयान का और दूसरा महायान का था. इसमें लगभग 600-700 बौद्ध भिक्षु निवास करते थे. ये भिक्षु इतने विद्वान थे कि भारत के प्रत्येक क्षेत्र से लोग उनके दर्शन करने के लिए आते थे. फाह्यान ने सम्राट अशोक के राजभवन का भी उल्लेख किया है. वह उसके वैभव को देखकर दंग रह गया था. उसने लिखा है कि यह राजप्रसाद अमानवीय और दैविक शक्तियों के द्वारा बनाया गया होगा. पाटलिपुत्र में समृद्ध नागरिकों के द्वारा एक चिकित्सालय भी चलाया जाता था जिसमें निर्धन रोगियों को भोजन और औषधि निशुल्क दी जाती थी. बड़े-बड़े नगरों तथा राजमार्गों पर यात्रियों के विश्राम के लिए धर्मशालाएं भी बनी हुई थी.

2. सामाजिक स्थिति

फाह्यान ने अपने वर्णन में भारतीय समाज की अत्यंत प्रशंसा की है. उसके अनुसार भारतीय अत्याधिक अतिथि सत्कार की भावना से प्रेरित थे तथा वे दयालु और धार्मिक प्रवृत्ति के थे. जनता साधारणतया शाकाहारी थी और अहिंसात्मक नीति का पालन करती थी. लोग प्याज, लहसुन, मांस-मछली तथा मदिरा का सेवन नहीं करते थे. केवल चांडाल ही मांस का भक्षण करते थे. चांडाल अस्पृश्य थे तथा वे नगर से बाहर रहते थे. जब भी वे नगर में प्रवेश करते थे तो ढोल बजाते चलते थे ताकि सवर्ण हिंदू उनके स्पर्श में न आएं. उस समय शिकार भी केवल चांडाल ही करते थे. फाह्यान ने वैश्यों की अत्यधिक प्रशंसा की है. फाह्यान के अनुसार भारतीय उत्सवों एवं समारोहों को काफी पसंद करते थे तथा वैशाख के अष्टमी के दिन वे एक विशेष प्रकार के उत्सव मनाते थे तथा एक जुलूस निकालते थे. ये उत्सव नगर के प्रत्येक भाग से निकलता था.

फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

3. आर्थिक स्थिति

फाह्यान के वर्णन से पता चलता है कि तत्कालीन भारत का व्यापार काफी उन्नत अवस्था में था. उसने ने अपने साथ सफेद रेशम लेकर भारत आने वाले एक चीनी व्यापारी का भी उल्लेख किया है. इससे पता चलता है कि भारत और चीन के मध्य व्यापारिक संबंध स्थापित थे और चीन से रेशम की आयात की जाती थी. फाह्यान ने लिखा है कि बड़ी वस्तुओं के क्रय-विक्रय मुद्रा और छोटी वस्तु के क्रय-विक्रय के लिए कौड़ियों का प्रयोग किया जाता था.

फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

4. धार्मिक दशा

फाह्यान के अनुसार भारत में विभिन्न धर्म विद्यमान थे. फाह्यान भारत में तीर्थाटन और बौद्ध धर्म ग्रंथों का अध्ययन करने के उद्देश्य से आया था. यही कारण उसने भारत में बौद्ध धर्म कहां पर सबल था और कहां निर्बल था, इस बात का विस्तृत वर्णन किया है. उनके अनुसार पंजाब और बंगाल में बौद्ध धर्म उन्नत अवस्था में था, किंतु मध्यप्रदेश में उसका पतन हो रहा था. मध्य प्रदेश में ब्राह्मण धर्म उन्नत अवस्था में था तथा स्वयं राजा भी वैष्णव धर्म का अनुयायी था.  ब्राह्मण और बौद्ध धर्मावलंबियों में परस्पर वैमनस्य नहीं था और किसी प्रकार के धार्मिक असहिष्णुता नहीं दिखाई देता था तथा लोग परलोक पर विश्वास करते थे.

फाह्यान के वर्णन के अनुसार तत्कालीन भारत की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक दशा क्या थी?

फाह्यान की यात्रा वर्णन से पता चला कि चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में शांति विद्यामान थी तथा जनता सुखी एवं संपन्न थी. उस समय शासन व्यवस्था उच्च कोटि की थी तथा लोग धार्मिक मनोवृति वाले थे.

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