भारत में क्रांतिकारी आंदोलन के उदय के कारणों का वर्णन करें

क्रांतिकारी आंदोलन

भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने प्रभाव जैसे-जैसे फैलाने शुरू कर दिता, उसी प्रकार भारतीयों ने भी अपने विरोध का स्वर बढ़ाते चले गए. भारतीयों ने विरोध करने के लिए विभिन्न प्रकार के तरीके अपनाए, पर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी का शोषण बढ़ता चला गया. ईस्ट इंडिया कंपनी के बाद ब्रिटिश सरकार आया लेकिन शोषण का दौर खत्म होने के बजाय बढ़ता चला गया. लोगों ने अपनी मांग व अधिकार प्राप्त करने के लिए निवेदन नीति भी अपनाई. इसे उदारवादी नीति भी कहा जाता है. कुछ विद्वान इसे भिक्षावृति की नीति कहते हैं. इस नीति के असफ़ल होने के बाद कुछ लोगों ने उग्रवादी नीति अपनाया. यह नीति भी अधिकार दिलाने में असफल सिद्ध हुआ. इसके बाद लोगों भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन चलाने पर मजबूर हुए.

क्रांतिकारी आंदोलन

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

1. आर्थिक असंतोष

अंग्रेजो के द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म देने के लिए उत्तरदाई था. अंग्रेजों की भारत विरोधी नीतियों के परिणामस्वरूप भारतीय लगातार गरीबी की ओर अग्रसर हो रहे थे. अब भारतीयों को समझ में आने लगा था कि भारतीयों के इस आर्थिक दुर्दशा का वास्तविक कारण अंग्रेजी शासन ही है. लोग अंग्रेजों से लगातार सुधारों की मांग कर रहे थे, पर सरकार ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया और लोगों का आर्थिक शोषण जारी रहा. अतः मजबूर होकर भारतीय ने क्रांतिकारी आंदोलन का सहारा लिया.

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

2. अकाल और महामारी

भारतीय लगातार अंग्रेजों के द्वारा शोषण का शिकार हो ही रहे थे, लेकिन इसी बीच 19वीं सदी के अंतिम दशक में भारतीयों को अकाल और महामारी का सामना करना पड़ा. आर्थिक शोषण से पहले ही उनकी स्थिति दयनीय हो चुकी थी, फिर भी सरकार ने अकाल और महामारी पीड़ितों की मदद करने के बजाय उन पर अत्याचार किए. भारत जब जनता महामारी और अकाल से भूखों मर रहे थे, उसी समय दूसरी तरफ भारत में महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के 50 वर्ष पूरे होने की खुशी में समारोह का आयोजन किया जा रहा था. इसके लिए अपार धनराशि खर्च की जा रही थी. ऐसे में भारतीयों के मन में असंतोष की भावना और बढ़ गई और इसी भावना ने क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया.

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

3. अंग्रेजों की दमनकारी नीति

अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों के द्वारा चलाए जा रहे शांतिपूर्ण एवं अहिंसात्मक आंदोलन को दबाने के लिए अत्यंत कठोर एवं दमनकारी नीतियों का सहारा लिया. लॉर्ड कर्जन ने अनेक ऐसे कार्य किए जिसे भारतीयों के भावनाओं को ठेस पहुंची. सरकार ने सभाओं, जुलूसों आदि पर प्रतिबंध लगा दिए. इस कारण विवश होकर युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ा.

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

4. बंगाल विभाजन

लाॅर्ड कर्जन ने 1905 ई. में बंगाल विभाजनकी घोषणा की. भारतीयों ने इस घोषणा का घोर विरोध किया, लेकिन अंग्रेजों को भारतीयों के विरोध का कोई प्रभाव नहीं पड़ा. अंग्रेजों के इस कार्यवाही से भारतीय अपमानित महसूस करने लगे. सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कहा “बंगाल का विभाजन हमारे ऊपर बम की तरह गिरा. हमने समझा कि हमारा घोर अपमान किया गया है.”

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

5. मध्यम वर्ग में असंतोष

क्रांतिकारी आंदोलन में ज्यादातर लोग मध्यम वर्ग के लोगों ने ही भाग लिया. मध्यम वर्ग के लोग शिक्षित थे, इसीलिए उनको अपने अधिकारों के बारे भली-भांति पता थी. उन्होंने सरकार से अपने अधिकारों को मांगने की कोशिश की थी, लेकिन उनको वो अधिकार नहीं मिले. यही वजह से वे अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए हिंसा का सहारा लेने विवश हुए.

क्रांतिकारी आंदोलन के प्रारंभ होने के कारण

6. विदेशी प्रभाव

भारत में हुए क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म देने के लिए फ्रांस, अमेरिका, आयरलैंड जैसे देशों में होनेवाली घटनाओं ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. इन देशों की जनता से अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए इसी प्रकार के कदम उठाए थे.

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इन्हें भी पढ़ें

  1. क्रांतिकारी आंदोलन की असफलता के कारणों का वर्णन कीजिए
  2. क्रांतिकारी आंदोलन से आप क्या समझते हैं?
  3. स्वदेशी आंदोलन के असफलता के क्या कारण थे?

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