मंचूरिया संकट
मंचूरिया चीन का एक प्रांत था. यह प्रांत प्राकृतिक संसाधनों से भरा हुआ था. इस क्षेत्र पर रूस और जापान दोनों की निगाहें थी. च्यांग काई शेक ने अपने शासनकाल में मंचूरिया से रूस के प्रभाव को कम करने के लिए अपनी नीतियों में बदलाव किया. इससे रुष्ट होकर चीन ने मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया और चीनी सरकार को रूसी-चीनी संधि (22 दिसंबर 1929) करने पर बाध्य किया. इस संधि के बाद मंचूरिया पर रूस का प्रभाव तेजी से बढ़ने लगा. मंचूरिया पर रूस के बढ़ते प्रभाव को देखकर जापान समझ गया कि यदि समय रहते कुछ न किया जाए तो मंचूरिया पर हमेशा के रूस का अधिपत्य हो जाएगा. अतः वह मंचूरिया पर हमले करने का बहाना खोजने लगा.
इसी बीच जून 1931 को नाकामुरा नामक जापानी कप्तान की कुछ चीनियों ने हत्या कर दी. जापान ने इस हत्या के लिए क्षतिपूर्ति की मांग की और अपराधियों को दंड देने के लिए चीनी अधिकारियों को कहा. चीन ने जापान की मांग यह कहकर ठुकरा दिया कि नाकामुरा मंचूरिया में जासूसी कर रहा था. इससे जापान में घोर प्रतिक्रिया हुई और जापानी सैन्यवादियों ने युद्ध करने की मांग करने लगे. अतः 18 सितंबर 1931 को जापान ने मंचूरिया पर आक्रमण कर दिया. जापानी सैनिकों ने मुकदेन में शिविरों में सो रहे लगभग 10 हजार चीनी सैनिकों को बंधक बना लिया. इस प्रकार जापान ने नवंबर के मध्य तक उत्तरी मंचूरिया पर पर अपना अधिकार कर लिया था. 18 फरवरी 1932 को जापान ने मंचूरिया का नाम बदलकर मंचूकाओ रख दिया और वहां पर अपनी कठपुतली सरकार कायम कर दी. मंचूरिया पर अधिकार करने के लिए जापान के इस कारवाई को ही मंचूरिया संकट कहा जाता है.
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