महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति  क्या थी?

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

1. राजनीतिक स्थिति

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत राजनीतिक दृष्टि से विभिन्न राज्यों में बांटा हुआ था. उन में से कुछ शक्तिशाली राज्य थे और कुछ दुर्बल थे. उसकी लगातार चलती पारंपरिक प्रतिस्पर्धा भी उनकी दुर्बलता का प्रमुख कारण थी. यही कारण वे विदेशी शत्रु का मुकाबला नहीं कर सके. मुल्तान और सिंध उस समय मुसलमान राज्य थे. इसके अलावा हिंदू शासकों का राज्य चिनाब नदी से हिंदुकुश पर्वतमाला तक फैला हुआ था. जयपाल उसी राज्य का बहादुर और दूरदर्शी शासक था. उसने पड़ोस के गजनी राज्य को समाप्त करने के लिए आक्रमणकारी नीति का पालन किया, परंतु वह उसमें सफल नहीं हो पाया. महमूद के आक्रमण का सबसे पहले और दृढ़तापूर्वक मुकाबला इसी राजवंश ने किया था. उस समय कश्मीर में भी ब्राह्मण वंश का राज्य था. उसकी रानी का नाम जिद्दा था. जयपाल से उसके पारिवारिक संबंध थे. इस समय कन्नौज में प्रतिहार वंश का राज्य था. यह वत्सराज और नागभट्ट के समय एक शक्तिशाली राज्य हुआ करता था. परंतु दक्षिण भारत के राष्ट्र शासकों के साथ चली निरंतर संघर्ष के कारण यह राज्य 11वीं सदी के आरंभ तक दुर्बल हो गया. उसके नियंत्रण से बुंदेलखंड के चंदेल, मालवा के परमार और गुजरात के चालुक्य आदि मुक्त हो गए. इस वंश का अंतिम राजा राज्यपाल था जिसके शासन काल में इस राज्य पर महमूद का आक्रमण हुआ.

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

बंगाल में इस समय पाल वंश का शासन था. इस वंश का महमूद का समकालीन शासक महिपाल प्रथम था. उस समय उसकी शक्ति बहुत दुर्बल थी. उसका राज्य काफी छोटा हो गया था और राजेंद्र चोल के आक्रमण ने बंगाल को काफी दयनीय स्थिति में छोड़ दिया था. दूर होने के कारण वह महमूद के आक्रमण से बच गया. इस समय गुजरात, मालवा और बुंदेलखंड भी स्वतंत्र राज्य थे. दक्षिण भारत में इस समय परवर्ती चालूक्य और चोल वंश के शक्तिशाली राज्य थे. इन में से प्रत्येक राजवंश शक्तिशाली थे परंतु वे आपस में ही संघर्षरत थे और वे उत्तर भारत की राजनीति में विशेष रूचि नहीं रखते थे. जिस समय महमूद उत्तर भारत को अपने पैरों तले रौंद रहा था, उस समय भी वे आपसी संघर्ष में व्यस्त थे. राजपूतों को न प्राणों का मोह था और  उनमें साहस और शौर्य की कमी थी, परंतु उसमें दूरदर्शिता और परिस्थितियों को समझने तथा उसके अनुकूल उठ खड़े होने का सर्वथा अभाव रहा. यही कारण उन्हें महमूद से बार-बार हार का सामना करना पड़ा और अपने धर्म और देश की रक्षा करने में असमर्थ रहे.

2. समाजिक स्थिति

सामाजिक दृष्टि से भी भारत काफी दुर्बल था. यहाँ की जनता अनेक जातियों और उप जातियों में बंटी हुई थी. स्त्रियों की दशा भी काफी दयनीय थी. समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र वर्णों के अतिरिक्त अन्य वर्ग में भी बंटा हुआ था, जिसे अंतयज कहा जाता था. इन्हें समाज में किसी वर्ग में स्थान प्राप्त नहीं था. चमार, जुलाहे, मछली पकड़ने वाले, टोकरी बुनने वाले, शिकारी आदि इस वर्ग में सम्मिलित थे. इनमें भी निम्न स्तर हादी, डोम, चांडाल, बधाटू का था जो साफ सफाई और स्वच्छता के कार्य में लगे हुए थे. इन्हें नगरों और गांवों से बाहर रहना पड़ता था. वैश्य और शुद्र को वेद और धार्मिक शास्त्र को पढ़ने का कोई अधिकार नहीं था. यदि उसमें से कोई ऐसा करता तो उसकी जीभ काट डाल दी जाती थी. समाज से पृथक वर्गों की स्थिति का अनुमान तो इसी से लगाया जा सकता है कि उसकी स्थिति वैश्य और शूद्र से भी निम्न थी. जाति-प्रथा के कारण भारत का समाज न केवल ऊंच-नीच की भावना से ग्रसित था बल्कि ऐसे विभिन्न वर्गों में बांटा हुआ था जिसमें वे एक-दूसरे के प्रति घृणा की भावना भी भरी हुई थी. ये बात केवल निरंतर गिरती समाज की एकता का ही नहीं वरन धार्मिक और राजनीतिक अंतर्विरोध को भी पुष्टि करता था. जाति परिवर्तन और अंतरजातीय खानपान तथा विवाह संबंध बिल्कुल संभव नहीं थे. स्त्रियों की स्थिति निरंतर गिरती जा रही थी और वे पुरुष भोग्य मात्र बनती जा रही थी. उच्च वर्ग में बहु-विवाह, बाल विवाह और सती प्रथा प्रचलित थी. विधवाओं के विवाह संभव नहीं था.

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

3. धार्मिक स्थिति

धार्मिक दृष्टि से भी भारत पतन की ओर अग्रसर हो रहा था. हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में अनाचार प्रवेश कर गया था. धर्म की मूल भावना लुप्त होती जा रही थी और उसका स्थान कर्मकांड ने ले लिया था. वाममार्गी संप्रदाय लोकप्रिय होते जा रहे थे विशेषकर बंगाल और कश्मीर के क्षेत्रों में. सुरापान, मांस का प्रयोग और व्यभिचार इन वाममार्गी अनुयायियों की धार्मिक क्रियाओं में सम्मिलित होती जा रही थी. इनका प्रभाव समाज के अन्य वर्ग में भी पड़ रहा था. बौद्ध विहार मठ और हिंदू मंदिर अनाचार और भोग विलास के अड्डे बन गए थे. मंदिरों में देवदासियां (अविवाहित लड़कियां जो देवताओं की पूजा के लिए रखी जाती थी) भ्रष्टाचार के मुख्य साधन बन गई थी. ऐसी ही स्थिति बौद्ध विहार और मठों की थी. शिक्षा संस्थाएं भी इस भ्रष्टाचार से मुक्त न थी. विक्रमशिला के विद्यालय में एक विद्यार्थी के पास शराब की बोतलें पाई गई थी, जिसके बारे में बताया गया कि उसे एक भिक्षुणी ने दी थी. इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि उस विद्यार्थी अनाचार या दंड पाने योग्य कोई कार्य किया था अथवा नहीं, इस प्रश्न को लेकर विद्यालय के अधिकारियों में परस्पर मतभेद था. धार्मिक और शिक्षा संस्थाओं में अनैतिकता का प्रवेश समाज की अनैतिकता के कारण और परिणाम दोनों ही था. संभवत: जनसाधारण ऐसी अनैतिकता से दूर था परंतु शासक और शिक्षित वर्ग पर अनैतिकता का प्रभाव देश की दुर्बलता के लिए पर्याप्त था. धर्म जो सत्कर्म, त्याग, देशप्रेम और मनोबल की वृद्धि में सहायक हो सकता था, उस समय में अनाचार, भोग-विलास और आलस्य के कारण बना हुआ था.

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

4. सांस्कृतिक स्थिति

समाज और धर्म की स्थिति भारत की सांस्कृतिक विलासिता का भी कारण था. कला और साहित्य दोनों ही उस समय की दशा के अनुकूल बन गए थे. स्थापत्य कला, मूर्तिकला, चित्रकला आदि में हमें ललित एवं भोग विलास की प्रवृत्ति का आभास होता था, यद्यपि इन सभी क्षेत्रों में भारत ने इस काल में काफी प्रगति की थी. साहित्य में कुटिनी-मतम और समय-मत्रक (वेश्या की आत्मकथा) उस समय की साहित्य की प्रतीक मात्र थी. खुजराहो, पुरी आदि के मंदिर और मूर्तियां उस समय की कला की रूचि का प्रतीक थी. यद्यपि इस काल में बने हुए मंदिर, किले, महल आदि अद्वित्य थे और साहित्यिक क्षेत्र में क्षेत्रीय भाषाओं के उद्गम इस काल की अपनी विशेषता रही है.

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

5. सैन्य स्थिति

सैन्य दृष्टि से भारत ने अपने शस्त्र और युद्ध शैली में सुधार करने का कोई प्रयास नहीं किया था. भारतीय उस समय हाथियों पर निर्भर रहते थे जो कि छोटे अवतरित युद्धों में घोड़ों की अपेक्षा कम कारगर थे. तलवार, कटार, भाला उस समय भारतीयों के मुख्य हथियार थे तथा उसकी युद्ध शैली रक्षात्मक ज्यादा थी और आक्रमक कम थी. भारतीय शासकों ने भारत के पश्चिमोत्तर सीमा पर न तो किले बनवाए थे और न किसी प्रकार की रक्षा पंक्ति का निर्माण किया था. जबकि उसी दिशा से भारत पर आक्रमण का ज्यादा भय था. यही कारण भारत सैन्य दृष्टि से काफी दुर्बल था. इसका मुख्य कारण भारत की सरहदों का सुरक्षित न होना था.

इस प्रकार राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, नैतिक और सैन्य दृष्टि से भारत काफी दुर्बल था. उसकी दुर्बलता का मुख्य कारण भारत न विदेशियों से कुछ सीखने का प्रयत्न किया था और न इस दिशा में खुद प्रयास किया था. भारतीयों ने अपने सीमावर्ती देशों के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सैन्य परिवर्तनों की ओर भी ध्यान नहीं दिया. इस कारण उसमें अज्ञानता और दम्भ दोनों प्रकार की भावनाओं की उत्पत्ति हुई. यही कारण वे अपनी उन्नति के प्रति असावधान हो गए. इस संबंध में महमूद गजनवी के साथ भारत आने वाले विद्वान अलबरूनी का विवरण हमारी आंखें खोलने वाला है. उसने हिंदू-दर्शन और संस्कृत भाषा का अध्ययन किया था. वह यहाँ के दर्शन और अन्य बहुत सी बातों से काफी प्रभावित भी हुआ था, परंतु उसने लिखा है हिंदुओं का विचार है कि हमारा जैसा देश, राष्ट्र, धर्म राजा और विज्ञान संसार में कहीं नहीं है. अलबरूनी ने लिखा है कि हिंदू यह नहीं चाहते कि जो वस्तु एक बार अपवित्र हो जाए, उसे शुद्ध करके पुनः अपना लिया जाए. इस प्रकार के अलबरूनी ने हिंदुओं को संकीर्ण विचारों को बताया, यद्यपि उसने यह भी लिखा कि हिंदुओं के पूर्वज इतने संकीर्ण विचार के न थे. इस प्रकार भारत में अपनी प्रगति का मार्ग बंद कर लिया था.

महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक सांस्कृतिक और सैन्य स्थिति 

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