मुहम्मद गोरी के भारतीय अभियान
गोर साम्राज्य का शासक मुहम्मद गोरी से सन 1175 ई. में भारत पर शुरू किया. उसके द्वारा भारतीय अभियान के दौरान भारत पर किये गए आक्रमण की प्रमुख घटनाएं निम्नलिखित हैं:-
1. मुल्तान एवं कच्छ पर आक्रमण
1175 ई में मुहम्मद गोरी ने मुल्तान पर आक्रमण किया. उस समय मुल्तान में एक मुस्लिम शासक शासन कर रहा था. गोरी ने इस शासक को परास्त करने के बाद मुल्तान पर अधिकार कर लिया. मुल्तान पर अधिकार करने के बाद 1176 ई. में कच्छ पर भी अधिकार कर लिया.
2. सिंध पर विजय
मोहम्मद गोरी ने 1182 ई में सिंध पर आक्रमण किया और देवल तथा दक्षिणी सिंध पर अधिकार करने में सफल हुआ.
3. अन्हिलवाड़ पर आक्रमण
1178 ई में मुहम्मद गोरी ने अन्हिलवाड़ (गुजरात) पर आक्रमण किया. किंतु वहां के शासक मूलराज द्वितीय ने गोरी को परास्त किया और उसे पीछे लौटना पड़ा.
4. पंजाब पर विजय
मुहम्मद गोरी ने 1178 में पेशावर, 1185 ई में सियालकोट तथा 1186 ई में लाहौर पर हमला करके उसे अपने अधीन में कर लिया.
7. सरहिंद पर आक्रमण
1189 ई में मुहम्मद गोरी ने सरहिंद पर आक्रमण किया तथा उसे अपने अधिकार में ले लिया.
8. तराइन का प्रथम युद्ध
मुहम्मद गौरी की लगातार बढ़ती हुई ताकत उनके द्वारा अन्य राज्यों पर किए जाने वाले हमले और सरहिंद को उसके द्वारा अधिकार लेने की खबर पाकर चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज तृतीय सशंकित हो उठा. उसने मुहम्मद गोरी का सामना करने के लिए एक शक्तिशाली सेना के साथ कूच किया. थानेश्वर के समीप तराइन के मैदान में दोनों की सेना के बीच भीषण युद्ध शुरू हुआ. इस युद्ध में मुहम्मद गोरी गंभीर रूप से घायल हुआ और अपने कुछ सैनिकों के मदद से वहां से भागने में सफल रहा. मुहम्मद गोरी के भागते ही उसकी पूरी सेना भाग निकली. लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने भागती मुस्लिम सेना को कब पीछा करके उन को नष्ट करने के प्रयत्न नहीं किया और वापस लौट गया. पृथ्वीराज चौहान की यही नीति बाद में उसके लिए बहुत बड़ी भूल साबित हुई.
9. तराइन का द्वितीय युद्ध
1192 ई में मुहम्मद गोरी ने फिर से अपनी सैन्य तैयारी करने के बाद पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया. इस बार मोहम्मद गोरी ने छल-कपट और बहुत से अनैतिक तरीकों के द्वारा पृथ्वीराज चौहान की विश्राम करती हुई सेना पर आक्रमण किया. इस युद्ध में पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा और उसे बंदी बना लिया गया. फिर बाद में उसकी हत्या कर दी गई इसके बाद मुहम्मद गोरी ने अजमेर तथा दिल्ली पर अधिकार कर लिया.
10. जयचंद पर आक्रमण
पृथ्वीराज चौहान को परास्त करने के बाद मुहम्मद गोरी ने कन्नौज पर अधिकार करने का प्रयत्न किया. इस समय कन्नौज में गहड़वाल वंश के शक्तिशाली राजा जयचंद शासन कर रहा था. मुहम्मद गोरी ने 1194 ई में जयचंद पर आक्रमण किया. दोनों की सेनाओं के बीच चंदावर के मैदान में घमासान युद्ध हुआ. इस युद्ध में गोरी की सेना पराजय होने वाली ही थी कि अचानक जयचंद को एक तीर लगा. जिसकी वजह से उसकी युद्ध भूमि में ही मृत्यु हो गई. उसकी मृत्यु होते ही जयचंद की सेना युद्ध भूमि से भाग खड़ी हुई. इसके बाद मुहम्मद गोरी मंदिरों को तोड़कर उसे अपार संपत्ति लूटा और उसके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया.
11. बयाना एवं ग्वालियर पर अधिकार
मुहम्मद गोरी ने 1195-96 ई में बयाना तथा ग्वालियर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया.
12. गुजरात पर आक्रमण
1195 ई. में गौरी की सेना ने अजमेर के महर कबीले पर आक्रमण किया. किंतु इस युद्ध में चालुक्यों ने महरों की मदद की और गोरी की सेना को हार का सामना करना पड़ा. इसके बाद उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ने गजनी से विशाल सेना प्राप्त कर 1197 में गुजरात पर आक्रमण किया और उसने चालुक्य राजा भीम द्वितीय की राजधानी अन्हिलवाड़ पर अधिकार कर लिया. पर 1201 ई. में भीम ने पुनः गुजरात पर अधिकार कर लिया.
13. अन्य आक्रमण
मोहम्मद गौरी की सेना ने अपने सैनिक अभियान निरंतर जारी रखे. धीरे-धीरे उन्होंने बदायूं नाडोल, कालिंजर, खुजराहो, बिहार और बंगाल के कुछ भूभाग उन पर अपना अधिकार कर लिया. मुहम्मद गोरी धन को लूटने के साथ-साथ भारतीय साम्राज्य पर अपना राज्य स्थापित करना चाहता था. इसमें उसे कुछ हद तक सफलता भी मिली. मुहम्मद गौरी की मृत्यु 1206 ई में उसके किसी अज्ञात शत्रु के द्वारा कर दी गई.
उसकी सफलता के कारण
मुहम्मद गोरी की सफलता का मुख्य कारण उनकी सेना का युद्ध विद्या में काफी निपूर्ण होना है. वे निरंतर अपनी युद्ध कलाओं में बदलाव लाते थे. वे नई- नई युद्ध शैलियों का निर्माण करते थे. उनके पास अनुभवी सैनिक होते थे. उनके पास शक्तिशाली अश्व सेना होती थी. उनके द्वारा युद्ध में इस्तेमाल किए जानेवाले घोड़े उच्च नस्ल के होते थे. ये दुश्मनों को हारने के लिए छल- कपट, और हर प्रकार के उचित अनुचित तरीकों का इस्तेमाल करती थी. इसके विपरीत भारतीय राजाओं के पार अपनी सेना नहीं होती थी. युद्ध में वे सामंतों की सेना का उपयोग करती थी. ये सैनिक भाड़े पर लड़ते थे. इसीलिए राजा या सेनापति के प्रति इनकी स्वामिभक्ति नहीं होती थी. ये प्रशिक्षित भी नहीं होते थे और इनके पास युद्ध का कोई ख़ास अनुभव नहीं होता था. ये केवल धर्मयुद्ध पर विश्वास करते थे. इसीलिए वे भागती दुश्मन की सेना पर कभी हमले नहीं करती थी.
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