सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों को नगर निर्माण योजना की कला में महारत हासिल थे. सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के अध्ययन करने पर आज भी उस नगर की भव्यता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. इस महान सभ्यता की नगर योजना के बारे में हमें हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल सुरकोतदा आदि स्थानों की खुदाई के बाद मिले इस सभ्यता के अवशेषों से पता चलता है. हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नगर का निर्माण में काफी समानताएं पाई गई है. दोनों नगरों की पश्चिम दिशा में 9 से 15 मीटर ऊंचा और 360×180 वर्ग मीटर क्षेत्रफल का गढ़ था जो दीवार से सुरक्षित था. इसमें सार्वजनिक भवन भी बनाए गए थे. उससे पूर्व की ओर नगर का निर्माण किया गया था. इनमें से प्रत्येक नगर का क्षेत्रफल कम से कम 1 वर्ग मील था. दोनों नगर निर्माण कला की दृष्टि से अद्वितीय थे. इन नगरों की स्वच्छता का विशेष प्रबंध किया गया था.

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

डॉक्टर ए.डी. पुसालकर के अनुसार मोहनजोदड़ो के अवशेषों को देखने वाला दर्शक आज भी इन प्राचीन नगरों की भव्यता, स्वच्छता एवं नगर निर्माण की कला को देखकर आश्चर्यचकित रह जाता है. दोनों नगरों की मुख्य सड़कें 2.70 मीटर से 10.20 मीटर चौड़ी थी. ये सड़कें कहीं कहीं आधे मील तक सीधी थी. सड़कें एक-दूसरे को समकोण बनाकर काटती थी. इसके कारण नगर विभिन्न भागों में बंटे हुए थे. इन प्रत्येक भागों में छोटी-छोटी गलियां थी. इन गलियों के दोनों ओर मकान बने हुए थे. प्रत्येक गली में एक सार्वजनिक कुंआ होता था. कोई भी मकान मुख्य सड़क को ढक नहीं सकता था. हर मकान से गंदे पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण किया था. मकानों की नालियाँ मुख्य सड़क की नाली में आकर मिलती थी. मुख्य सड़कों की नालियां ईंटों से ढकी हुई थी. इन नालियों की सफाई आसानी से की जा सके तथा इन नालियों का गंदा पानी नगर से बाहर आसानी से जा सके, इसका उचित प्रबंध किया गया था. सड़क के किनारे कुछ स्थानों पर कूड़ेदान की भी व्यवस्था की गई थी. सड़क किनारे बहुत से दीप स्तंभों के मिलने से यह ज्ञात होता है कि सड़क के किनारे रोशनी का भी प्रबंध किया गया था.

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

सिंधु घाटी के निवासियों की भवन निर्माण कला सादा और उपयोगी थी. सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी बड़े-बड़े मंदिर और समाधियों नहीं बनाते थे. मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मकान बनाने के लिए केवल ईटों का प्रयोग किया गया था. इन ईटों का आकार 51.43 सेंटीमीटर × 26.27 सेंटीमीटर × 6.35 सेंटीमीटर के आकार की हुई होती थी. इसके अलावा 27.94 सेंटीमीटर×13.97 सेंटीमीटर×6.35 सेंटीमीटर की ईटों का भी प्रयोग किया जाता था. यहाँ से प्राप्त सबसे छोटी ईंट का आकार 24.13 सेंटीमीटर×11.05 सेंटीमीटर×5.08 सेंटीमीटर का था.

सिंधु घाटी सभ्यता के समकालीन मिश्र की सभ्यता में पक्की ईंटों का प्रयोग नहीं किया गया था. मेसोपोटामिया में भी पकी ईंटों का सीमित मात्रा में ही प्रयोग किया गया था. सिंधु घाटी सभ्यता के मकान मुख्यतया दो मंजिला का होता था. कुछ दो से अधिक मंजिल के मकानों के अवशेष भी मिले हैं. प्रत्येक मकानों में 4 या 6 कमरों के अतिरिक्त एक रसोई घर भी होता था. ऐसा प्रतीत होता है कि बड़े मकानों में संभवत 30 कमरे तक होते थे. ऐसे मकान आंगन के चारों ओर होते थे. प्रत्येक मकान में स्नानघर भी होता था. इसमें तो खड़े होकर स्नान किया जा सकता था. मकानों की छतें मुख्य रूप से लकड़ी की होती थी. मकानों में खिड़कियां होती थी और ऊपर की मंजिल पर जाने के लिए सीढ़ियां भी होती थी. दरवाजे दीवारों के बीच में ना होकर कोने में बनाए जाते थे. मकानों के प्रवेश द्वार सड़क अथवा गली की तरफ होती थी. लोथल में सिर्फ एक ही ऐसा मकान मिला है जिसका दरवाजा मुख्य सड़क की तरफ खुलता था. दरवाजे लकड़ी के बने होते थे. इन दरवाजों का आकार 3 फीट से 7 फीट चौड़े होते थे. सभी मकानों में कुएं होते थे. मकान छोटे और बड़े सभी प्रकार के बनते थे. मोहनजोदड़ो में पाई गई सबसे बड़ी इमारत का क्षेत्रफल 69×24 वर्ग मीटर है जो संभवतः एक महल रहा होगा. वहां एक ऐसी इमारत की भी एक अवशेष मिली है जो संभवत एक सभा गृह होगा. उसका क्षेत्रफल लगभग 750 वर्ग मीटर है. हड़प्पा में पाई गई सबसे बड़ी इमारत एक अनाज का गोदाम है जिसका क्षेत्रफल 51.41 वर्ग मीटर है. ये इमारत छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ है. दोनों नगरों में कुछ ऐसे घरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनका क्षेत्रफल 6×3.6 वर्ग मीटर है. ऐसा लगता था कि ये घर मजदूरों के रहने के लिए बनाए गए थे. सिंधु घाटी में किरथर पहाड़ियों के निकट कुछ स्थानों पर पत्थर से बने हुए मकान और छोटे दुर्गों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं.

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

मोहनजोदड़ो की प्रमुख विशेषताएं यहां प्राप्त विशाल स्नानागार है. स्नानागार का संपूर्ण क्षेत्रफल 54×32 वर्ग मीटर है. इस स्नानागार में बने तालाब का क्षेत्रफल 11.88 मीटर लंबा 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है. स्नानागार के किनारे उत्तर और दक्षिण दिशा में सीढ़ियां बनी हुई है. इसके चारों ओर चबूतरे और बरामदे हैं. इसके बगल में कपड़े बदलने के लिए भी कमरे बनाए गए थे. स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों से बनी हुई है. बरामदे के पीछे तीन तरफ गलियारे एवं कमरे बने हुए हैं. पानी को निकालने तथा तालाब को भरने का भी प्रबंध किया गया था. यहां पर बगल में कई अन्य स्नानगृह भी बने हुए हैं जहां गर्म पानी से नहाने की व्यवस्था थी. मुख्य स्नानगार के छ:प्रवेश द्वार हैं. डॉ. मैके के अनुसार स्नानगार का प्रयोग पुजारी करते थे और तालाब का प्रयोग नागरिकों के द्वारा किया जाता था. परंतु यह स्पष्ट नहीं है कि इन तालाब का प्रयोग केवल स्नान के लिए किया जाता था या धार्मिक महत्व के लिए.

राजस्थान के कालीबंगा में भी सिंधु घाटी सभ्यता से मिलती-जुलती नगर के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इस नगर में भी पश्चिम दिशा में ऊंची स्थल पर एक सुरक्षा गढ़ और पूर्व की ओर नीचे स्थल पर नगर का निर्माण किया गया था. नगर की सुरक्षा के लिए 7 मीटर मोटी मिट्टी की ईंटों की दीवार बनाई गई थी. गढ़ स्थल और सुरक्षा दीवार दोनों दो भागों में बैठे हुए थे. गढ़ स्थल के दक्षिणी भाग में एक कुआं, स्नानगृह और संभवतः पूजा स्थल थे. उस के उत्तरी भाग में निवास गृह थे जो संभवतः वहां के निवासियों के शासक वर्ग के थे. कालीबंगा में नगर की सुरक्षा के लिए कच्ची मिट्टी से बनी हुई दीवार भी बनाई गई थी. इनमें प्रवेश दो द्वार भी बनाया गया था. एक प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में नदी की ओर खुलती थी और दूसरे द्वारा का इस्तेमाल गढ़ में प्रवेश करने के लिए था. प्राप्त अवशेषों का अध्ययन करने से पता चलता है कि सुरक्षा का भी उचित प्रबंध था. सड़कें चौड़ी थी, सफाई और रोशनी का उत्तम प्रबंध था. मकान बनाने के लिए पकी ईंटों का प्रयोग किया गया था और इसके अतिरिक्त सार्वजनिक इमारतें भी बनाए गए थे.

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

खंभात की खाड़ी के निकट लोथल नामक स्थान पर भी इस सभ्यता का अवशेष पाया गया. संभवतः यहाँ बंदरगाह हुआ करता था जहां से विदेशों से सामान आयात और निर्यात किया जाता था. इस नगर के पूर्व की ओर डॉकयार्ड भी बनाया गया था जो उत्तर से दक्षिण तक 216 मीटर लंबा और 37 मीटर चौड़ा था. दीवार 1.2 मीटर ऊंची थी जो कि पक्की ईंटों से बनी हुई थी. डॉकयार्ड को एक जलमार्ग के द्वारा मोगावो नदी से मिलाया गया था जो उस काल में उसके बहुत निकट बहती थी. इस नदी के माध्यम से जहाजों से सामान को नाव के द्वारा डाॅकयार्ड तक लाने ले जाने की सुविधा होती थी. डाॅकयार्ड के पश्चिम की ओर एक ऐसा स्थान था जहां मिट्टी की ईंटों से बने हुए कमरे थे और उसके ऊपर लकड़ी का बना हुआ एक बड़ा कमरा था. इसका प्रयोग संभवतः गोदाम घर के लिए किया जाता था.

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना

गुजरात के अहमदाबाद से 270 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में स्थित सुरकोतदा नामक स्थान में भी इस सभ्यता के नगर के अवशेष प्राप्त हुए हैं. इस नगर में गढ़ का निर्माण और सुरक्षा व्यवस्था कालीबंगा के समान ही थी. गढ़ और नगर दोनों की सुरक्षा के लिए दीवारें बनाए गए थे. उनमें प्रवेश द्वार भी थे. वहां सुरक्षा के लिए बनी हुई दीवारों में ही ईंटों के अलावा पत्थरों का प्रयोग किया गया था. इस के नगर निर्माण की एक अन्य विशेषता भी थी. मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा में दुर्ग और नगर एक-दूसरे से अलग-अलग थे, परंतु यहां इनको मिला दिया गया था. यद्यपि दुर्ग और नगर के प्रवेश द्वार अलग-अलग थे. दूर्ग की सुरक्षा के लिए बनाई गई दीवार साढ़े 4 मीटर ऊंची उठी हुई थी.

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1 thought on “सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना का वर्णन करें”

  1. सिन्दु सभ्यता की नगर नियोजन व्यवस्था का वणन किजिए

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