अंग्रेजी में पंजाब पर किस प्रकार अधिकार किया वर्णन करें

पंजाब के ब्रिटिश साम्राज्य में विलय (Merger of Punjab into the British Empire)

जब तक महाराजा रणजीत सिंह जीवित थे, तब तक पंजाब की ओर नजर उठाकर देखने की अंग्रेजों की कभी हिम्मत नहीं हुई थी, लेकिन उसकी मृत्यु के बाद अंग्रेजों की बुरी नजर पंजाब टिक गई. महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद उसके द्वारा स्थापित विशाल साम्राज्य बिखर गया क्योंकि उत्तराधिकारी के लिए उनमें आपसी युद्ध छिड़ गई थी. इसके कारण साम्राज्य में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई. ऐसी स्थिति का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने पंजाब विजय की योजना बनाने लगे. इसी बीच सेना ने बालक दलीप सिंह को अपनी मां के संरक्षण में  5 साल तक गद्दी पर बैठाया था लेकिन अंग्रेजों के पंजाबी पर अधिकार करने की तैयारी को देखते हुए दोनों के बीच युद्ध होना युद्ध की आशंका बढ़ती चली गई.

अंग्रेजी में पंजाब पर किस प्रकार अधिकार किया वर्णन करें

अंग्रेजों ने लगातार पंजाब पर अधिकार करने के लिए अपनी सैन्य तैयारी करनी शुरू की. उनके सैन्य गतिविधियों को देखकर सिख सैनिकों ने भी उनका सामना करने के लिए अपनी तैयारियां शुरू कर दी. उन्होंने अंग्रेजों की तैयारियों को नाकाम करने के लिए दिसंबर 1845 ई. को सतलुज नदी को पार करना आरंभ कर दिया.  अंग्रेज पहले ही इसी अवसर की तलाश में थे. अतः वे सिख सैनिकों के सतलुज नदी पार करने की सूचना पाते ही लॉर्ड हार्डिंग में 13 दिसंबर 1845 ई. को सिखों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी.

युद्ध की घटनाएं

सिख सेना लाल सिंह के नेतृत्व में सतलुज नदी पार करके फिरोजपुर की ओर बढ़ी दूसरी ओर अंग्रेजी सेना सर ह्यूगफ के नेतृत्व में लुधियाना की ओर बढ़ी. फिरोजशाह से 20 मील दूर मुदकी नामक स्थान पर दोनों सेनाओं का सामना हुआ. सिखों के लगभग 40,000 सैनिक थे, जबकि अंग्रेजों के 11000 सैनिक ही थे. सिख सैनिकों ने बड़ी वीरता से लड़ी, लेकिन सेनापति लाल सिंह के युद्ध स्थल से भाग जाने के कारण सिख सेना को पराजय का सामना करना पड़ा. इस युद्ध से सिखों को काफी हानि हुई.

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इस युद्ध में जीत हासिल करने के बाद अंग्रेजी सेना सतलुज नदी से 12 मील दूर स्थित फिरोजशाह की ओर बढ़ी. फिरोजशाह में भी सिख और अंग्रेजी सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ. यहां भी सिखों ने पूर्ण उत्साह से अंग्रेजों का सामना किया लेकिन यहां भी सिख सेनापति तेज सिंह ने अपनी सेना को छोड़कर युद्ध स्थल से भाग गया. इस कारण सिखों को फिर से पराजय का मुंह देखना पड़ा. इस विषय पर इतिहासकारों को मानना है कि यदि सिख नेतृत्व इस प्रकार का धोखा न देता तो युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता. इस युद्ध में लगभग 8,000 सिख सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए तथा उनकी 73 तोपें भी लूट ली गई. इस युद्ध में अंग्रेजों को भी नुकसान झेलना पड़ा. उनके लगभग 700 सैनिक मारे गए तथा 1,721 घायल हुए.

जनवरी 21 जनवरी 1846 ई. को रणजोड़ सिंह मजीठिया ने सतलज नदी पार करके लुधियाना में मौजूद अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में अंग्रेजों की हार हुई, लेकिन अंग्रेजों को शीघ्र ही सहायता मिली और उन्होंने आगे बढ़कर 28 जनवरी 1846 ई. को आलीवाल नामक स्थान पर सिखों को पराजित किया.

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इसके बाद 10 फरवरी 1846 ई. को सबराओ नामक स्थान पर अंग्रेजों और सिखों के मध्य फिर से एक भीषण युद्ध लड़ा गया. यह युद्ध उनके बीच अंतिम एवं निर्णायक युद्ध था. इस युद्ध में भी सिखों ने अपने वीरता पूर्वक अंग्रेजों का सामना किया लेकिन कुछ सिख सेना नायकों के विश्वासघात के कारण सिखों को इस युद्ध में भी हार का सामना करना पड़ा. इस युद्ध के विषय में व्हीलर का कहना है कि ब्रिटिश कालीन भारत के इतिहास में लड़े जाने वाले युद्धों में सबराओ का युद्ध सबसे भीषण था. सिख सैनिक जहां अपने सम्मान की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने को तत्पर थे, अन्य सिख नायक विश्वासघात पर उतर आए थे. इस युद्ध में सिखों को अपार क्षति हुई. उनके लगभग 10,000 सैनिकों का वध कर दिया गया. सेनापति शामसिंह अटारीवाला युद्ध स्थल में ही मारा गया. इस युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद अंग्रेजों ने विशाल सेना को लेकर सतलज नदी पर किया तथा 20 फरवरी 1846 ई. को उसने लाहौर पर अपना पूरा अधिकार स्थापित कर लिया.

अंग्रेजी में पंजाब पर किस प्रकार अधिकार किया वर्णन करें

अब सिख पूरी तरह पराजित हो चुके थे लेकिन लॉर्ड हार्डिंग ने इस समय पंजाब का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय नहीं किया. उन्होंने सिखों के साथ मार्च 1840 ई. को लाहौर संधि कर ली. लेकिन कुछ समय पश्चात बदली परिस्थितियों के कारण इन संधियों में बदलाव किया गया और दिसंबर 1846 ई. में फिर से भैरोवाल की संधि की गई. इस संधि के पश्चात पंजाब का ब्रिटिश साम्राज्य में पूर्ण विलय हो गया.

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