अकबर को राष्ट्रीय सम्राट क्यों माना जाता है?

राष्ट्रीय सम्राट अकबर 

जिस समय अकबर ने मुग़ल साम्राज्य की सत्ता अपने हाथों में लिया था. उस समय उसके राज्य में विभिन्न धर्म, जाति और संप्रदाय के लोग रहते थे. उनके बीच में किसी प्रकार की एकता नहीं थी और प्रत्येक संप्रदाय एक-दूसरे से घृणा करती थी. इसके अलावा उस समय उसके राज्य का आकार छोटा था. अत: अकबर ने भारत के विशाल भूभाग पर अधिकार करके एक विशाल मुग़ल साम्राज्य की स्थापना की. उसने अपनी नीतियों से न सिर्फ अपने विशाल साम्राज्य को एक सूत्र में पिरोया बल्कि उसने भारत के सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक विषमताओं के बीच एकता स्थापित करने में सफलता प्राप्त की. यही कारण उसे राष्ट्रीय सम्राट की संज्ञा दी जाती है.

राष्ट्रीय सम्राट
अकबर को राष्ट्रीय सम्राट मानने के कारण

1. राजनीतिक एकता स्थापित करना 

1556 ई. में अकबर मुग़ल साम्राज्य की राजसिहांसन पर आसीन हुआ. उस समय उसका राज्य बहुत छोटा था. उसकी आंतरिक स्थिति भी बहुत ख़राब थी. हेमू तथा अन्य सरदार लगातार उसके राज्य पर अधिकार करने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन अकबर ने अपनी वीरता और सूझबूझ से अपने छोटे से राज्य को अपने शत्रुओं से रक्षा करने में सफलता प्राप्त की. धीरे-धीरे खुद को दृढ़ किया और दिल्ली और आगरा को सशक्त बनाया. इसके बाद उसने उत्तर भारत के राजाओं को परास्त कर अपने राज्य का विस्तार किया. इसके बाद उसने सम्पूर्ण उत्तर भारत को जीतकर उसे एक राजनीतिक सूत्र में पिरोकर अपने साम्राज्य की स्थिति को दृढ़ किया. उत्तर भारत को जीतने के बाद उसने दक्षिण भारत की ओर अपना अभियान चलाया. उसने दक्षिण भारत के कुछ राज्यों को जीतकर उसपर अपना प्रभुत्व स्थापित किया.

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विशाल मुग़ल साम्राज्य को स्थापित करने के बाद अकबर ने अपने साम्राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने की ओर ध्यान दिया क्योंकि इतने बड़े साम्राज्य को बिना सुदृढ़ प्रशासन व्यवस्था के सुचारु रूप से चलना मुमकिन नहीं था. उसने सम्पूर्ण मुग़ल साम्राज्य में एक ही सामान क़ानून व्यवस्था लागू किए. इस प्रकार उसने सफलतापूर्वक अपने साम्राज्य में राजनैतिक और प्रशासनिक एकता स्थापित किया.

2. धार्मिक एकता स्थापित करना 

अपने साम्राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक एकता प्रदान करने के बाद वह अपने साम्राज्य को धार्मिक एकता प्रदान करने की दिशा में काम करना आरम्भ कर दिया. उसने जब मुग़ल साम्राज्य की सत्ता संभाली थी तब उसके राज्य में रहने वाले विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों में किसी प्रकार की प्रेम और मित्रता की भावना नहीं थी. वे परस्पर एक दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते थे. अत: अकबर ने इनके बीच प्रेम और एकता की भावना को जागृत करने का प्रयास किया. इसके लिए उसने सल्तनतकालीन शासकों की तरह कट्टर इस्लामी नीतियों का पालन करने के बजाय धार्मिक सहिष्णुता का पालन किया. उसने हिन्दुओं पर अत्याचार नहीं किया. उसने सभी धर्मों के लोगों को अपनी इच्छानुसार पूजा करने तथा अपने अपने पूजा स्थलों का निर्माण करने की छूट दी. उसने राजपूत कन्याओं से शादी करके धार्मिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया. उसने अपनी हिन्दू पत्नियों पर किसी प्रकार की धार्मिक प्रतिबन्ध नहीं लगाया. अकबर ने हिन्दू और मुस्लिमों के बीच की खाई को पटाने के लिए एक नवीन धर्म की स्थापना की. इस नवीन धर्म को दीन-ए-इलाही कहा जाता है.

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अकबर ने धार्मिक भेदभाव को मिटने के लिए सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोगों के लिए उन्नति के सामान मार्ग प्रशस्त किए. उसने अनेक राजपूतों को साम्राज्य के उच्च पदों पर बैठाया. किसी पद के लिए धार्मिक भेदभाव को ख़त्म कर दिया. इस प्रकार अकबर ने अपने साम्राज्य में धार्मिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया.

3. सामाजिक एकता स्थापित करना 

अकबर के द्वारा भारत में सामाजिक एकता स्थापित करने का वितरण किया गया. अकबर के शासन से पूर्व हिंदुओं और मुसलमानों में अत्यधिक वैमनस्यता था तथा वे एक-दूसरे को घृणा और द्वेष की भावना से देखते थे. अकबर ने अनेक कानूनों को बनाकर समाज में एकरूपता लाने का प्रयत्न किया. उसने 1563 ई. में तीर्थ यात्रा कर को ख़त्म कर दिया. इसके अगले ही वर्ष अकबर ने जजिया कर को भी ख़त्म कर दिया. अकबर का यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण था क्योंकि जजिया कर केवल हिंदुओं से लिया जाता था. इससे हिंदू खुद को अपमानित महसूस करते थे. अकबर के द्वारा जजिया कर को हटा लिए जाने से हिंदू और मुसलमान प्रशासन की दृष्टि में एक सामान हो गए. इसके अलावा अकबर ने हिंदू समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त कराया तथा उनमें सुधार किए. उसने गौ-वध, सती प्रथा तथा बाल विवाह को भी बंद कर दिया. बलपूर्वक धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अकबर के इन प्रयासों से हिंदू और मुसलमान के बीच घृणा और द्वेष धीरे-धीरे ख़त्म होने लगा.

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4. आर्थिक एकता स्थापित करना 

अकबर के शासनकाल में मुगल साम्राज्य में स्थायित्व उत्पन्न हुआ. अकबर ने देश के व्यापार की ओर प्रयाप्त ध्यान दिया. इसके कारण जनता को वैदेशिक तथा आंतरिक व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन मिलने लगा. इस कारण धीरे-धीरे मुग़ल साम्राज्य आर्थिक रूप से संपन्न होने लगा. देश की जनता भी समृद्धि की ओर बढ़ने लगी. लोगों के आर्थिक रूप से संपन्न होने से जनता के बीच से आपसी द्वेष की भावना ख़त्म होने लगी. अकबर के पूरे साम्राज्य में एक सामान कर व्यवस्था लागू की. सम्मान अधिकार मिलने के कारण अलग – अलग संप्रदाय तथा धर्म के लोगों के मन में राष्ट्रीयता की भावना का भी तेजी से विकास होने लगा.

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5. सांस्कृतिक एकता स्थापित करना 

अकबर ने अपने साम्राज्य में सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का भी प्रयास किया. उसने सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों को विभिन्न भाषाओँ में अनुवाद करने के लिए लोगों को प्रोत्साहन किया. अकबर के इन प्रयासों के परिणामस्वरूप बहुत से फ़ारसी ग्रंथों को हिंदी में तथा हिंदी ग्रंथों को फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया गया. इससे हिंदी और फ़ारसी लोग एक-दूसरे के धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने लगे. इससे दोनों सम्प्रदायों के लोगों को एक-दूसरे की संस्कृतियों के बारे में जानने लगे. अकबर ने हिन्दू बच्चों के लिए भी शिक्षा की उचित प्रबंध कराया, जिससे हिन्दू और मुस्लिमों के बीच पारस्पारिक सम्बन्ध बढ़े. अकबर के शासनकाल में बने भवनों में भी हिन्दू और मुस्लिम कला के द्वारा अकबर के इस प्रयास की स्पष्ट छाप दिखाई देती है.

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