अशोक के धम्म का स्वरूप (Nature of Ashoka’s Dhamma)
जब तक धम्म विस्तृत विश्लेषण नहीं किया जाता, तब तक धम्म के स्वरूप के बारे में सटीकता से व्याख्या नहीं की जा सकती है. यही कारण धम्म के स्वरूप को लेकर विद्वानों में अत्यधिक मतभेद है. अनेक इतिहासकारों ने धर्म के स्वरूप को लेकर भिन्न-भिन्न मतों का प्रतिपादन किया है.
1. धम्म एक राज धर्म है
धम्म को राजधर्म मानने वाले विद्वानों में फ्लीट सबसे प्रमुख है. उसके अनुसार धम्म को किसी भी प्रकार से बौद्ध धर्म नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इसमें न तो महात्मा बुद्ध का जिक्र है और न ही इसमें संघ को प्रमुख स्थान दिया गया है. यही कारण फ्लीट ने धम्म को अशोक का राजधर्म बताते हुए लिखा है कि अशोक के शिलालेख उद्देश्य बौद्ध धर्म अथवा किसी धर्म विशेष का प्रचार करना नहीं था, बल्कि सदाचारी राजा के कर्तव्य के अनुसार सभी धार्मिक संप्रदायों को ध्यान में रखते हुए दया तथा न्याय के साथ शासन करना था.
मत का खंडन
यद्यपि अशोक के धम्म (Ashoka’s Dhamma) के कुछ सिद्धांत राजधर्म से मिलते-जुलते हैं परंतु इस आधार पर उसे राजधर्म स्वीकार नहीं किया जा सकता है. फ्लीट के विरोध में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए जा सकते हैं:
- यदि धम्म अशोक का राजधर्म होता तो वह स्वयं ही उसका पालन करता और प्रजा से उसके पालन करने का आह्वान नहीं करता.
- रूम्मिनदेई अभिलेख के अनुसार अशोक महात्मा बुद्ध के जन्म के स्थान पर गया था तथा वहां उसने उसकी आराधना की. इससे स्पष्ट है कि धम्म का बौद्ध धर्म से कुछ न कुछ संबंध अवश्य था.
- अशोक के एक अन्य शिलालेख में सम्बोधि का वर्णन है. इससे भी धम्म और बौद्ध धर्म के बीच का संबंध में प्रमाणित होता है.
उपरोक्त तर्कों से फ्लीट के मत का खंडन हो जाता है. अतः इसे अशोक का राजधर्म स्वीकार नहीं किया जा सकता.
2. सार्वभौम
डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी, डॉ. स्मिथ तथा डॉ. आर. एस. त्रिपाठी जैसे विद्वान इस मत के प्रतिपादकों में प्रमुख हैं. इन विद्वानों के अनुसार अशोक का धम्म में विभिन्न धर्मों के प्रमुख विचार निहित हैं. इस कारण उन्होंने धम्म को सार्वभौम धर्म माना है. ये विद्वान यह प्रमाणित करने का प्रयास करते हैं कि अशोक का धम्म, बौद्ध धर्म अथवा उससे ही प्रभावित नहीं था. स्मिथ ने लिखा है कि इसका प्रमाण यह है कि अशोक अनेक स्थानों पर स्वर्ग का उल्लेख करता है, जबकि बौद्ध धर्म में स्वर्ग का कोई अस्तित्व ही नहीं है. अत: धम्म निश्चित रूप से अन्य धर्मों से भी प्रभावित था.
मत का खंडन
इन विद्वानों के इस मत को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि:
- बौद्ध ग्रंथों में अशोक को बौद्ध धर्म के रक्षक और प्रचारक कहा गया है.
- अशोक के समय में बौद्ध धर्म की उन्नति अपने चरम शिखर पर पहुंच गया था.
इन बातों से स्पष्ट है कि अशोक ने जिस धर्म का प्रचार किया था, वह बौद्ध धर्म से ही संबंधित था.
3. ब्राह्मण धर्म
कुछ विद्वान मानते हैं कि अशोक का धम्म, ब्राह्मण धर्म था. धम्म को ब्राह्मण धर्म मानने वाले विद्वानों में फादर हिरास प्रमुख हैं. उनके अनुसार अशोक के अंतिम समय तक उसका धर्म ब्राह्मण धर्म था.
मत का खंडन
- यदि अशोक ब्राह्मण था तो उनके अभिलेखों में यज्ञों और अन्य ब्राह्मण धार्मिक क्रियाकलापों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता?
- गार्गी संहिता नामक नामक ब्राह्मण ग्रंथ में अशोक की धम्म विजय का पालन करने के कारण आलोचना की गई. यदि अशोक ब्राह्मण होता तो उसकी आलोचना नहीं की जाती.
4. उपासक बौद्ध धर्म
इस मत के प्रतिपादकों में डॉ. भंडारकर, सेनार्ट, हुल्श आदि प्रमुख हैं. इन विद्वानों ने धम्म को बौद्ध धर्म से संबंध जोड़ने का प्रयास किया. सेनार्ट ने लिखा है कि अशोक की शिक्षा और बौद्ध धम्म पद में काफी समानता है तथा अशोक के लेखों में भी उस समय के बौद्ध धर्म की पूर्ण और सर्वांगीण चित्र है.
मत का खंडन
इस मत की आलोचना करते हुए थॉमसन ने लिखा है कि:
- यदि अशोक का धम्म, बौद्ध धर्म का ही नया स्वरूप था तो उसमें निर्वाण के स्थान पर स्वर्ग का उल्लेख क्यों किया गया है?
- इसके अतिरिक्त धम्म में चार आर्य सत्य व अष्टांगिक मार्ग का वर्णन क्यों नहीं किया गया है?
इस प्रकार विभिन्न मतों का अध्ययन करने के पश्चात हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बौद्ध धर्म के विषय में कुछ निश्चित रूप से कुछ कहना बहुत कठिन है. फिर भी धम्म, उपासक बौद्ध धर्म के निकट ही प्रतीत होता है. धम्म को उपासक बौद्ध धर्म प्रमाणित करते हुए भंडारकर ने लिखा है कि धम्म सब धर्मों में सामान्य रूप से विद्यमान साधारण कर्तव्यों का संग्रह न था बल्कि बौद्ध धर्म के द्वारा उपासक के लिए निर्धारित धार्मिक व्यक्तियों का संग्रह था.
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