आजीविक संप्रदाय
आजीविक सम्प्रदाय प्राचीन भारत का एक धार्मिक सम्प्रदाय था. यह बौद्ध और जैन धर्म के समकालीन था. इसके मुख्य संस्थापक मक्खलि गौशाल थे. मक्खलि गोशाल पहले जैन धर्म के संस्थापक महावीर के शिष्य थे, लेकिन बाद में दोनों के बीच मतभेद हो जाने के बाद उसने अलग आजीवक संप्रदाय की स्थापना की.
आजीविक संप्रदाय, बौद्ध और जैन धर्म से अलग संप्रदाय थी, लेकिन फिर भी कुछ हद तक जैन धर्म से प्रभावित मानी जाती है. इसका मुख्य वजह मक्खलि गोशाल का जैन धर्म के संस्थापक महावीर के शिष्य होना था. मक्खलि गोशाल ने कठिन तपस्या कर तीर्थंकर की उपाधि प्राप्त की थी. उसने लगभग 16 वर्षों तक अपना जीवन श्रावस्ती में बिताया. इसके बाद एक लंबी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु लगभग 500 ई.पू. में हो गई. उसकी शिक्षाएं लगभग 2000 वर्षों तक प्रभावी रही. उसका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मालाबार तट, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु थे.
आजीविक संप्रदाय को मौर्य सम्राटों के संरक्षण प्राप्त था तथा इस संप्रदाय का अनुसरण मुख्य रूप से साधारण वर्ग के लोगों के द्वारा किया जाता था. यज्ञ एवं बहुदेववाद के प्रति अविश्वास, श्रम की निष्फलता एवं नियति पर पूर्ण अवस्था एवं अणु सिद्धांत इस संप्रदाय के प्रमुख सिद्धांत थी.
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