आजीविक संप्रदाय के संस्थापक
पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल तथा पकुधकच्छायन आजीवक संप्रदाय के प्रमुख संस्थापक थे. इनमें से मुख्य संस्थापक मक्खलि गौशाल थे. इनके जीवन वृतांत के बारे में काफी अस्पष्ट जानकारियां उपलब्ध है. भगवती सूत्र के अनुसार वह मक़्खलि नामक एक चित्रदर्शक के पुत्र थे. इनका जन्म गौशाला में होने के कारण इनके नाम के आगे गोशाल जुड़ गया. बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अपने जीवन की शुरुआत में मक्खलि गौशाल एक दास हुआ करते थे. लेकिन बैशम ने इन दोनों बातों को आप प्रमाणिक माना. उसके अनुसार महाभारत में वर्णित एक प्रसंग उसके लिए अधिक प्रमाणित है. इस प्रसंग के अनुसार मक्खलि गोशाल अपने जीवन में बार-बार असफल हुए. फिर अंत में वह अपने पालतू बैलों की मृत्यु से निराश होकर उसने जीवन की सत्यता को स्वीकार कर ली और इच्छा मुक्त होकर अमरत्व को प्राप्त हो गए. जैन ग्रंथों के अनुसार मक्खलि गोशाल ने 24 वर्षों तक घोर तपस्या की. इन वर्षों में से 6-7 वर्ष का समय उन्होंने महावीर के साथ बिताया था. लेकिन यह विवरण भी गोशाल के लिए अप्रमाणिक माना गया.
इन तमाम विवरणों में से सबसे स्पष्ट प्रमाण इस बात की मिलती है कि मक्खलि गौशाल ने काफी कठिन तपस्या करके तीर्थंकर की उपाधि प्राप्त की. उसने अपने जीवन के लगभग 16 वर्ष का समय श्रावस्ती में बिताया. इसके बाद एक लंबी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु लगभग 500 ई. पू. आसपास हुई. उनकी शिक्षाएं लगभग 2000 वर्षों तक लोगों के बीच प्रभाव बनाए रखा. मक्खलि गौशाल का कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मालाबार तट, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं तमिलनाडु क्षेत्र थे.
इन्हें भी पढ़ें:
- आजीविक संप्रदाय क्या है?
- भक्ति आंदोलन के प्रभावों का वर्णन करें
- बौद्ध धर्म के प्रचार के कारणों पर प्रकाश डालिए
Note:-इतिहास से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें. आपके प्रश्नों के उत्तर यथासंभव उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.
अगर आपको हमारे वेबसाइट से कोई फायदा पहुँच रहा हो तो कृपया कमेंट और अपने दोस्तों को शेयर करके हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि हम और अधिक आपके लिए काम कर सकें.
धन्यवाद.