आजीविक संप्रदाय क्या है?

आजीवक संप्रदाय

आजीवक संप्रदाय, मक्खलि गोशाल के द्वारा स्थापित एक प्राचीन भारतीय संप्रदाय था. मक्खलि गोशाल पहले महावीर के शिष्य थे, लेकिन बाद में दोनों के बीच मतभेद हो जाने के बाद उसने अलग आजीवक संप्रदाय की स्थापना की. आजीविक संप्रदाय को मौर्य सम्राटों के संरक्षण प्राप्त था तथा इस संप्रदाय का अनुसरण मुख्य रूप से साधारण वर्ग के लोगों के द्वारा किया जाता था. यज्ञ एवं बहुदेववाद के प्रति अविश्वास, श्रम की निष्फलता एवं नियति पर पूर्ण अवस्था एवं अणु सिद्धांत इस संप्रदाय के प्रमुख सिद्धांत है. दुर्भाग्यवश इस संप्रदाय के विचारधाराओं को भ्रामक रूप में प्रस्तुत किए जाने के कारण इन्हें धर्म और दार्शनिक विचारों की परंपरा में उचित स्थान नहीं मिल पाया.

आजीवक संप्रदाय

आजीविक संप्रदाय के संस्थापक

पूरण कस्सप, मक्खलि गोशाल और पकुधकच्छायन आजीविक संप्रदाय के संस्थापक थे. इनमें मक्खलि गोशाल सबसे प्रमुख थे. इनके जीवन वृतांत के बारे में स्पष्ट जानकारियां नहीं मिलती है, परंतु इनके जीवन विचार की जानकारियां बहुत से बौद्ध ग्रंथों  जैन ग्रंथों तथा कुछ तमिल ग्रंथों जैसे कि मणिमेखलै, नीलकेशी तथा चिवआनचित्तयार आदि से प्राप्त होते हैं. कहा जाता है इनका जन्म गौशाला में हुआ था. यही कारण  इनके नाम के आगे गोशाल लग गया. मक्खलि गोशाल ने कठिन तपस्या कर तीर्थंकर की उपाधि प्राप्त की थी. उसने लगभग 16 वर्षों तक अपना जीवन श्रावस्ती में बिताया. इसके बाद एक लंबी बीमारी के बाद उसकी मृत्यु लगभग 500 ई.पू. में हो गई. उसकी शिक्षाएं लगभग 2000 वर्षों तक प्रभावी रही. उसका कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मालाबार तट, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु थे.

आजीवक संप्रदाय

आजीवक संप्रदाय के तत्व

आजीवक संप्रदाय में मुख्य रूप से सात तत्व- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, सुख, दुख तथा जीव हैं. ये सात में तत्व अपरिवर्तनशील हैं. इन्हें परिवर्तन करने की सोचना एक कल्पना मात्र है. इन तत्वों में जीव की व्याख्या आत्मा के रूप में की गई है. इसे भी खंडित नहीं किया जा सकता. यह संप्रदाय प्रकृति की अटल सत्य पर आधारित थी और यह यज्ञ और बलि का समर्थन बिल्कुल नहीं करती थी.

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