आर्य कौन थे? आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में आप क्या जानते हैं?

आर्य कौन थे?

इतिहासकारों के अनुसार आर्य यूरोप तथा मध्य एशिया में रहने वाली एक ऐसी लड़ाकू समुदाय थी जो प्राय: धन लूटने के लिए दूसरे समुदाय अथवा साम्राज्यों पर आक्रमण करती रहती थी. इसी दौरान आर्यों ने भारत पर भी आक्रमण किया और उन में से बहुत से लोगों को यहाँ की जलवायु इतनी पसंद आई कि वे यहां पर स्थायी रूप से बस गए. आज भी भारत में आर्य समाज के वंशज निवास करते हैं.

आर्य कौन थे?

आर्यों के मूल निवास स्थान

आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में काफी विवाद है. अभी तक इस विषय पर पूर्णतया स्पष्ट नहीं हो पाई है. अनेक विद्वान इस विषय पर अलग-अलग दावा करते हैं. इतिहास, भाषा-विज्ञान, नस्ल, पुरातत्विक खोजों आदि के आधार पर अनेक विद्वान भारत, मध्य एशिया, उत्तरी ध्रुव, तिब्बत, पामीर का पठार, जर्मनी, दक्षिणी रूस, आदि स्थानों को आर्यों का मूल निवास स्थान होने का दावा करते हैं.

1. उत्तरी ध्रुव का सिद्धांत

बाल गंगाधर तिलक ने वैदिक संहिता के आधार पर उत्तरी ध्रुव को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया था. उनका मानना था कि आर्यों ने ऋग्वेद की रचना सप्त सैंधव प्रदेश में की थी. इसके एक सूक्त में दीर्घकालीन उषा की स्तुति मिलती है. यह दीर्घकालीन उषा उत्तरी ध्रुव की ओर इंगित करती है. जहां छह माह का दिन और छह माह की रात्रि होती है. महाभारत में वर्णित सुमेरु पर्वत जहां 6 महीने का दिन और 6 महीने की रात होती थी वह भी उत्तरी ध्रुव की ओर संकेत करता है. परंतु इस बात की ज्यादा प्रमाण नहीं है. इसी कारण अधिकांश व्यक्ति इस विचार से असहमत हैं. आलोचकों का कहना है कि यदि आर्य धुर्व प्रदेश को अपनी मातृभूमि मानते तो वे सप्त सिंधु प्रदेश को देवकृत योनि अर्थात देवताओं द्वारा निर्मित, न कहते. तिलक के द्वारा दिए गए मत का उदाहरण मात्र साहित्य पर आधारित है. साहित्य में अनुमान के आधार पर दृश्य का वर्णन किया जाता अत: इस मत को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.

आर्यों के मूल निवास स्थान

2. तिब्बत उद्गम:

स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान तिब्बत था. लेकिन उसने अपने इस मत के समर्थन के लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं करवाए. अत: इस कारण इस मत को भी समर्थन नहीं दिया जा सकता.

3. भारतवर्ष

बहुत से भारतीय विद्वानों ने यह दावा किया है कि आर्यों का मूल निवास स्थान भारत ही है. इस मत को स्वीकार करने वालों में श्री गंगानाथ झा, श्री डीएस त्रिवेदी, श्री एलडी कल्ल, श्री अविनाश चंद्र दास, डॉक्टर राजबली पांडे आदि हैं. श्री एलडी कल्ल ने कश्मीर और हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया. वहीं श्री अविनाश चंद्र ने सप्तसिंधु प्रदेश अर्थात पंजाब और गंगा यमुना तट के मैदानी भागों को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया. डॉक्टर राजबली पांडे ने मध्य देश अर्थात् उत्तर प्रदेश, बिहार आदि क्षेत्रों को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया. उसके अनुसार अयोध्या, प्रतिष्ठान और गया इसके मुख्य केंद्र थे. उसने अपने पक्ष के समर्थन में अनेक विद्वानों के विभिन्न तक प्रस्तुत किए. उनके अनुसार वैदिक साहित्य में किसी भी विदेशी देश का वर्णन नहीं किया गया. भाषा के आधार पर संस्कृत भाषा के कुछ शब्दों का यूरोपीय भाषाओं के कुछ शब्दों के साथ समानता होना यह प्रमाणित नहीं कर सकता कि आर्य भारत में यूरोप से आए थे. आर्यों में बलि प्रथा प्रचलित थी और बलि प्रथा का आरंभ उतरी पंजाब में हुआ था तथा वैदिक ग्रंथों में भारत की नदियों और पहाड़ों का ही वर्णन मिलता है. आर्यों ने स्वयं अपना निवास स्थान सप्तसिंधु प्रदेश बताया जो कि पंजाब की छह नदियों और सरस्वती के मध्य और निकट का प्रदेश था. ऋग्वेद में भी निरंतर इस प्रकार के विवरण प्राप्त होता है. इन विवरणों में उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में राजस्थान तथा पश्चिम में गंधार से पूर्व के गंगा तट के प्रदेश में सम्मिलित थे. परंतु फिर भी भारत को आर्यों का मूल निवास स्थान स्वीकार करना कठिन है, क्योंकि यदि भारत आर्यों का मूल निवास स्थान होता तो वे सर्वप्रथम संपूर्ण भारत में आर्य सभ्यता का विकास करते. आधुनिक समय में भी संपूर्ण दक्षिण भारत तथा उत्तर भारत के कुछ क्षेत्रों जैसे बलूचिस्तान में द्रविड़ अथवा अनार्य सभ्यता की प्रमुखता है. संभवत: भारत को आर्यों का मूल निवास स्थान मानना भारतीय विद्वानों के द्वारा उस प्रक्रिया के परिणाम है जो यूरोपीय विद्वानों के इस कथन के कारण आरंभ हुई कि आर्यों का मूल निवास स्थान यूरोप है.

आर्यों के मूल निवास स्थान

4. यूरोप से उत्पत्ति 

सर्वप्रथम फ्लोरेंस निवासी फिलिप्पो सेसेटी ने यूरोप को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया था. फ्लोरेंस सेसेटी 5 वर्षों तक (1583-1588 ई.) तक गोवा में रहा और यहाँ रहकर उसने संस्कृत और यूरोपीय भाषाओं के विभिन्न शब्द की समानता पर अध्ययन किया. 1786 ई.में सर विलियम जोंस ने बंगाल के एशिया समाज के एक बैठक में एक लेख पढ़कर विभिन्न भाषाओं की शाब्दिक समानताओं पर बल दिया. उन्होंने ग्रीक, लैटिन, गोथिक, केल्टिक, संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं की उत्पत्ति का स्रोत एक ही बताया. इस बात को सिद्ध करने के लिए उसने अनेक उदाहरण दिए. जैसे कि संस्कृत में पिता को पितृ, लैट्रिन में पेटर, ग्रीक में पैटर, अंग्रेजी में फादर और जर्मन में वटर कहते हैं. उसी प्रकार संस्कृत में मां को माता, अंग्रेजी मदर, लैट्रिन और ग्रीक में माटर और जर्मन में मुटर कहते हैं. इसी भाषा संबंधी समानता के आधार पर विभिन्न विद्वानों ने यूरोप को भारतीय आर्यों के के मूल निवास स्थान बताया. इसके बाद उन्होंने वनस्पति, भौगोलिक परिस्थितियों और नस्ल के आधार पर भी इस पक्ष का समर्थन किया. डॉ. पी गाइल्स ने पशु-पक्षियों तथा वनस्पतियों के आधार को लेकर यह कहा कि वैदिक ग्रंथों में वर्णित सभी वनस्पतियां और पशु-पक्षी भारत में प्राप्त नहीं होते. इस आधार पर उसने यूरोप में स्थित हंगरी, ऑस्ट्रिया, बोहेमिया, डेन्यूब नदी के घाटी को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया. परंतु टाइल्स के इस विचार को पूर्णतः स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि जिन वनस्पतियों का वर्णन वैदिक ग्रंथों में हुआ है, वे सभी यूरोपीय देशों में हैं अथवा उस समय रही हो, इसका कोई प्रमाण नहीं है.

आर्यों के मूल निवास स्थान

पिंका नामक एक विद्वान ने आर्यों की नस्ल एवं शारीरिक गठन के समानता के आधार पर जर्मनी और स्कैंडिनेविया को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया. परंतु उसके समर्थक भी अब उसके तर्कों दुर्बल मानकर नस्ल की विशेषताओं की समानता पर बल न देकर पुरातत्व संबंधी खोजों के आधार पर उसके पक्ष का समर्थन करते हैं. परंतु उनका दावा भी गलत साबित हो गया क्योंकि सिद्ध हो चुका है कि वे सभी वस्तुएं जो जर्मन और भारतीय आर्यों की समानता स्थापित करने हेतु बताई गई, वे जर्मनी में ही नहीं बल्कि दक्षिणी रूस, पोलैंड और यूक्रेन में भी प्राप्त हुई है. वहीं नेहरिंग नामक विद्वान ने वनस्पति की समानता के आधार पर दक्षिणी रूस को आर्यों का मूल निवास स्थान बताया है. ब्रेण्डस्टीन नामक विद्वान के अनुसार भारतीय आर्यों का मूल निवास स्थान यूराल पर्वत के दक्षिण में स्थित उत्तर-पश्चिमी खिरगीज का घास का मैदान था. पुरातत्व संबंधी खोजों के आधार पर गार्डन चाइल्ड ने दक्षिणी रूस अथवा स्कैंडिनेविया बताया.

5. मध्य एशिया

कुछ विद्वान ने आर्यों का निवास स्थान मध्य एशिया को बताया है. प्रोफ़ेसर मैक्स मूलर के अनुसार मध्य एशिया से चलकर आर्यों की एक शाखा इरान में बस गई और दूसरी शाखा भारत चली गई. वेदों और पारसी धार्मिक ग्रंथ अवस्ता के अध्ययन से ऐसा मालूम होता है कि आर्य एक लंबे समय तक ईरान में रहे होंगे क्योंकि उनके देवताओं का नाम इंद्र, वरुण नासत्य आदि के नाम से मिलते-जुलते हैं. उन्हीं ग्रंथों के अध्ययन करने से यह ज्ञात होता है कि आर्यों का मूल निवास स्थान ऐसा होना चाहिए जहां घोड़े और गाय रह सकते हो, क्योंकि ये पशु आर्यों के प्रमुख पशु थे. उनके अनुसार ऐसा स्थान मध्य एशिया ही ऐसा स्थान था. केएम पणिक्कर ने भी प्रोफेसर मैक्समुलर के विचारों का समर्थन किया है.

आर्यों के मूल निवास स्थान

6. पामीर का पठार

एडवर्ड मेयर के अनुसार आर्यों का मूल निवास स्थान पामीर का पठार था. पामीर से आर्यों की एक शाखा ईरान और भारत में बस गए जबकि दूसरी शाखा मेसोपोटामिया अर्थात सीरिया में तथा वहां से अन्य पश्चिमी देशों में फैल गई. बोगाज़कोई और एलअमर्ना से प्राप्त अभिलेखों के साक्ष्य से इस बात को प्रमाणित किया जाता है. मिस्टर ओल्डेनबर्ग और प्रोफेसर कीथ भी इस मत को स्वीकार करते हैं. परंतु गाइल्स ने इसका खंडन किया है क्योंकि उनका मानना था कि पामीर जैसा शुष्क, अनुपजाऊ और उबड़-खबड़ प्रदेश आर्यों का मूल निवास स्थान नहीं हो सकता.

7. अन्य मत

बहुत से विद्वान मानते हैं कि भारतीय आर्यों का मूल निवास स्थान दक्षिणी रूस था डॉ बीके घोष ने भी आर्यों का मूल निवास स्थान रूस को मानने पर ही जोर दिया. 

आर्यों के मूल निवास स्थान

इस प्रकार हम पाते हैं कि विभिन्न विद्वानों का भिन्न भिन्न मत है. इस कारण आर्यों के मूल निवास स्थान के बारे में निर्णय लेना असंभव है. लेकिन इन मतों के अनुसार हम ये निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आर्य सम्भवत: मध्य एशिया से लेकर दक्षिणी रूस तक बसे हुए थे. उनकी जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण तथा पशुओं के चरागाहों की तलाश में ईरान तथा भारतीय महाद्वीप की ओर बढ़ना शुरू किया. उन्होंने विभिन्न साम्राज्यों पर आक्रमण करके उनपर अपना अधिपत्य स्थापित किया और उन प्रदेशों में स्थायी रूप से बस गए.

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