इटली की एकीकरण में गैरीबाल्डी की योगदान का वर्णन करें

इटली की एकीकरण में गैरीबाल्डी की योगदान

इटली के एकीकरण में गैरीबाल्डी का भी बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान था. इनका जन्म 1807 ई. में हुआ था बचपन से ही उनके मन में देशभक्ति की भावना थी. देश के लिए कुछ करने की भावना से वह मैजिनी की गुप्त संस्था यंग इटली का सदस्य बन गया. सन 1833 ई. में मैजिनी के साथ मिलकर उसने इटली में गणतंत्र स्थापित करने का प्रयत्न किया, लेकिन इसमें वे असफल रहे. उनको बंदी बना लिया गया और उनको मृत्युदंड दिया गया. लेकिन गैरीबाल्डी वहां से किसी तरह भागकर दक्षिण अमेरिका चला गया.

इटली की एकीकरण में गैरीबाल्डी की योगदान

दक्षिण अमेरिका में वह 14 वर्ष तक प्रवासी जीवन व्यतीत करता रहा तथा गुप्त रूप से दक्षिण अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेता रहा. 1848 ई. में मैटरनिख के पतन के बाद सार्डीनिया और ऑस्ट्रिया के बीच युद्ध शुरू हुआ. इस युद्ध में गैरीबाल्डी ने अपने तीन हजार सैनिकों के साथ सार्डीनिया के ओर से लड़ा. इस युद्ध में सार्डीनिया के शासक अल्बर्ट को ऑस्ट्रिया के साथ संधि करने पड़ी, लेकिन गैरीबाल्डी ने युद्ध जारी रखा. इसके बाद गैरीबाल्डी ने 1849 ई. में हुई रोम की क्रांति में भी भाग लिया और मैजिनी के साथ मिलकर उसपर अधिकार कर लिया और रोम में रोमन गणराज्य की स्थापना की. रोम में गणतंत्रात्मक शासन की स्थापना होते देखकर यूरोपीय देशों के कैथोलिक इसाई ने फ्रांस पर पोप की सहायता करने का दबाव बनाया. जनता के दबाव में आकर नेपोलियन रोम की रक्षा के लिए फ्रांसीसी सेना भेजी. गैरीबाल्डी ने फ्रांसीसी सेना का डटकर मुकाबला किया लेकिन उनको हार का सामना करना पड़ा और उसे फिर से अमेरिका भागना पड़ गया. इस बार वह 6 वर्षों तक अमेरिका में रहा. फिर वह इटली आकर कैपोरा नामक टापू में रहने लगा. वहां 1856 ई. में उसकी मुलाकात कैवूर से हुई. कैवूर से मिलकर उसने इटली की एकीकरण के लिए अपने गणतंत्र वादी विचारधारा को बदल दिया और दोनों के बीच संधि हो गई. कैटल बी ने इस समझौते के विषय में लिखा है कि यदि यह समझौता नहीं होती और उनके बीच मतभेद बना रहता तो संभवतः इटली में एकता कायम नहीं होती और उसकी नाव मंझधार में ही डूब गई होती. 

इटली की एकीकरण में गैरीबाल्डी की योगदान

गैरीबाल्डी के द्वारा इटली के एकीकरण का अभियान का वास्तविक काल 1860 ई. से आरंभ होता है. दरअसल 1860 ई. में सिसली की जनता ने अपने शासक के विरुद्ध विद्रोह प्रारंभ कर दिया. सिसली के शासक अत्यंत निरंकुश और प्रतिक्रियावादी व्यक्ति था. यहां का विद्रोही नेता क्रिस्पी सिसली के शासक के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. उसने गैरीबाल्डी से मदद मांगी. गैरीबाल्डी उसकी मदद करने के लिए तैयार हो गया और युद्ध के लिए जेनेआ में स्वयंसेवकों को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू कर दिया. 11 मई 1860 ई. अपने 10 हजार स्वयंसेवकों के साथ सिसली द्वीप के पश्चिमी किनारे पर उतर गया. कई दिनों की घमासान युद्ध के बाद उसने सिसली  अधिकार कर लिया. सिसली पर अधिकार करने के बाद उसने नेपल्स पर भी अधिकार करने का निश्चय किया. 19 अगस्त 1860 ई. को उसने समुद्र पार कर नेपल्स पर हमला कर दिया. इस आक्रमण से घबराकर वहां का राजा फ्रांसिस द्वितीय नेपल्स छोड़ कर भाग गया. हेजन ने फ्रांसिस द्वितीय के इस प्रकार  भागने की घटना को आधुनिक इतिहास का रोमांचकारी घटना कहा है. इसके बाद उसने नेपल्स पर भी अधिकार कर लिया. इसके बाद वह अपनी जीती हुई भूमि विक्टर इमानुएल को दे दी. यह उसका एक महान त्याग था. कैवूर की मृत्यु के बाद 1867 ई. गैरीबाल्डी ने अपने पुत्र के साथ मिलकर फिर से रोम पर आक्रमण किया, लेकिन उनको पराजय का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद उसने अपना शेष जीवन कैपरेरा टापू में व्यतीत किया और 1882 ई. में उनकी मृत्यु हो गई. इटली के एकीकरण के लिए इतिहास में उसके द्वारा दिए गए इस महान योगदान को हमेशा याद किया जाता है. 

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