इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध लिखिए

इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध

19वीं  सदी के आरंभ में इटली अनेक छोटे-छोटे राज्य में बंटा हुआ था. हर राज्य में अलग-अलग कानूनें थी, लेकिन अलग-अलग राज्य में बंट जाने के बावजूद इटली वासियों के मन में अभी भी एक इटली की भावना खत्म नहीं हुई थी. जनता के मन में राष्ट्रीयता की भावना की ज्वाला अभी भड़क रहे थी. उनके मन में संपूर्ण इटली को एक सूत्र में बांधने की की थी. अतः समय-समय पर इटली वासियों के द्वारा इटली के एकीकरण के प्रयास होते रहे. इटली के एकीकरण के प्रयास करने के बावजूद सफलता नहीं मिल पा रही थी क्योंकि इसके रास्ते में बहुत सी बाधाएं आ रही थी.

इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध

इटली का एकीकरण करने के लिए जनता के द्वारा किए गए प्रयास को दो हिस्सों में बांटा गया है:

एकीकरण का पहला प्रयास (1815 ई.-1850 ई.)

1815 ई. से 1850 ई. के बीच इटली वासियों के द्वारा इटली को एक करने की कई कोशिशें की गई. 1815 ई. तक इटली में स्वेच्छाचारी राजाओं का शासन स्थापित हो चुका था. उनकी मनमानी से इटली की जनता काफी दुखी और त्रस्त हो चुकी थी. इन सब से छुटकारा पाने के लिए वर्ष 1815 ई. के बाद इटली में आंदोलन होना शुरू हो गया. सर्वप्रथम नेपोलियन ने इस दिशा में प्रयास करना आरंभ किया. उसके प्रयास से जनता में जागृति आने लगी थी. परिणामस्वरूप जगह-जगह बहुत से गुप्त समितियां स्थापित की गई. इन समितियों में कार्बोनरी समितियां सबसे प्रमुख थी. इन समितियों का मुख्य रूप से दो उद्देश्य थे- पहला विदेशियों को इटली से बाहर निकालना तथा दूसरा वैधानिक स्वतंत्रता की स्थापना करना. कार्बोनरी डायलॉग में लगभग सभी वर्गों के लोग शामिल थे.

1820 ई. में स्पेन में क्रांति हुई. इस क्रांति की आग इटली तक पहुंच गई. इटली में सर्वप्रथम 1820 ई. में नेप्लस में विद्रोह हुआ. लेकिन ऑस्ट्रिया ने इस विद्रोह को दबा दिया. नेपल्स के बाद लोम्बार्डी पीडमाण्ट में भी कार्बोनरी संस्था के नेतृत्व विद्रोह आरंभ हो गए. इस विद्रोह का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध युद्ध तथा पीडमाण्ट में संविधान की स्थापना करना था. लेकिन नेपल्स के विद्रोह को दबाने के बाद वापस लौटती ऑस्ट्रिया की सेना ने भी पीडमाण्ट के विद्रोह को भी दबा दिया. इस प्रकार यह विद्रोह असफल हो गया और जनता में निराशा छा गई.

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1830 में फ्रांस में क्रांति हो गई. इस क्रांति की आग इटली तक पहुंच गई. इसके प्रभाव से पर्मा, मोडेना एवं पोप के राज्य में विद्रोह होने शुरू हो गए. इटली के कई राज्यों के शासकों को जान बचाकर भागना पड़ा. लेकिन मेटरनिख ने इस विद्रोह को क्रूरता पूर्वक दमन कर दिया. ऑस्ट्रिया की सेना के हस्तक्षेप से भागे हुए शासकों को फिर से सत्ता पर बैठा दिया गया. इस विद्रोह में भाग लेने के कारण मैजिनी को छह माह कैद तथा विदेशों में निर्वासित जीवन जी बिताना पड़ा.

1831 से 1848 ई. तक इटली में लगभग शांति छाई रही. लेकिन इटली के देशभक्त अंदर ही अंदर क्रांति की तैयारी करते रहे और सही अवसर की तलाश में थे. इसी बीच 1848 में फ्रांस में क्रांति हो गई. इस क्रांति की आग इटली तक भी पहुंच गई और यहां भी राष्ट्रीय स्वतंत्रता का युद्ध आरंभ हो गया. सबसे पहले ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में विद्रोह हो गया. जिससे मैटरनिख का पतन हो गया. इसके पश्चात अन्य राज्यों में विद्रोह की आग भड़क उठी. सिसली, नेपल्स तथा टस्कनी राज्यों में भी विद्रोह आग की तरह भड़कती चली गई. ऑस्ट्रिया  सेना को हर जगह हार का सामना करना पड़ रहा था. इसी बीच पीडमाण्ट के राजा चार्ल्स अल्बर्ट ने घोषणा की कि सभी का केवल एक कर्तव्य है कि ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ दे. उसने भी 23 मार्च 1848 ई. में ऑस्ट्रिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी. इससे इटली की जनता में जोश उमड़ पड़ा और सारा इटली उसके झंडे के नीचे आ गया. ऑस्ट्रिया सेना जगह- जगह परास्त हो रही थी. लेकिन इटली की जनता प्रारंभिक विजयों  का फायदा ना उठा सकी क्योंकि धीरे-धीरे इटली के राज्यों की आपसी एकता खत्म हो गई. सर्वप्रथम पोप ने इस युद्ध से हाथ खींच लिया. इसके बाद नेपल्स के राजा ने पॉप का अनुसरण किया. टस्कनी ने भी मदद देने से पीछे हट गया. इसके बाद पीडमाण्ड का राजा अल्बर्ट अकेला पड़ गया और उसे विवश होकर विगेबैनी की संधि करनी पड़ी. इस प्रकार 1848 ई. की आंदोलन असफल हो गई.

इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध

इटली की स्वतंत्रता संग्राम समाप्त होने के बाद निरंकुश शासकों ने इटली के देशभक्तों का दमन करना आरंभ कर दिया. इन्हीं दिनों में मैजिनी इटली वापस आ गया. उसी के नेतृत्व में पोप की राजधानी रोम में विद्रोह हो गया. इससे घबराकर पोप रोम छोड़कर भाग कर नेपल्स के राजा फर्डिनेंड के पास चला गया. 1849 ई. में रोम में गणतंत्र की स्थापना की गई. फ्लोरेंस और टस्कनी में भी इसी तरह गणराज्य स्थापित हो गया. इस गणतंत्रात्मक प्रवृत्ति के प्रसार से अल्बर्ट घबरा गया और ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया. ऑस्ट्रेलिया ने उसे बुरी तरह परास्त किया जिसके कारण वह दुखी होकर अपने पुत्र को सिहासन सौंपकर देश से बाहर निकल गया. इसी समय फ्रांस के राष्ट्रपति नेपोलियन तृतीय ने पोप का पक्ष लेते हुए कैथोलिक दल के आग्रह पर पोप की सहायता के लिए अपनी सेना भेज दी. सेना ने रोम में प्रवेश करके पोप को पुनः सिंहासन पर बैठा दिया और मैजिनी इंग्लैंड भाग गया.

इटली के एकीकरण का दूसरा चरण (1850-70 ई.)

इटली के एकीकरण का दूसरा चरण अत्यंत महत्वपूर्ण था. इस समय के दौरान इटली में अनेक ऐसे नेताओं का आविर्भाव हुआ, जिन्होंने अंततः इटली को एक राष्ट्र के रूप में परिणत करने में सफलता प्राप्त की. इन नेताओं में गैरीबाल्डी का बहुत बड़ा महत्वपूर्ण योगदान रहा. इनका जन्म 1807 ई. में इटली के नीस नामक नगर में हुआ था. बचपन से ही उसमें स्वदेश के प्रति लगाव था. शुरुआत में वह तरुण इटली का सदस्य बन गया. 1833 ई. में मैजिनी के साथ मिलकर उसने इटली में गणतंत्र स्थापित करने का असफल प्रयास किया. जिसके कारण उसे मृत्युदंड दिया गया था. लेकिन वह किसी तरह बचकर दक्षिण अमेरिका भाग गया. वह 14 वर्ष तक प्रवासी जीवन व्यतीत करता रहा. मेटरनिख के पतन के बाद 1848 ई. में सार्डीनिया तथा ऑस्ट्रेलिया के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में गैरीबाल्डी ने अपने 3 हजार सहयोगियों को साथ लेकर सार्डीनिया की ओर से लड़ा. लेकिन जुलाई 1848 ई. में सार्डिनिया के राजा अल्बर्ट को ऑस्ट्रिया के संधि करनी पड़ी. मगर गैरीबाल्डी ने युद्ध जारी रखा. 1849 ई. में रोम की क्रांति में भी गैरीबाल्डी ने भाग लिया जिसके परिणामस्वरूप रोम में मेजिनी के नेतृत्व में रोमन गणराज्य की स्थापना हुई. जब नेपोलियन तृतीय की सेना ने पोप की सहायता के लिए फ्रांसीसी सेना भेजी तो गणराज्य की रक्षा हेतु गैरीबाल्डी ने डटकर फ्रांसीसी सेना का मुकाबला किया. लेकिन उसको हार का सामना करना पड़ा तथा उसे विवश होकर अमेरिका भागना पड़ा. इस बार वह 6 वर्ष तक अमेरिका में रहा. 1854 ई. में पुन: इटली आकर कैपोरा  टापू में रहने लगा. 1856 ई. में कैवूर से उसकी मुलाकात हुई. उसने कैवूर से समझौता कर अपने गणतंत्र वादी विचार बदल दिया. अतः इटली में गणतंत्रवादी और वैधानिक राजसत्ता में समझौता हो गया.

इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध

गैरीबाल्डी के वास्तविक काल 1860 ई. से प्रारंभ होता है. 1860 ई. में उसने सिसली को स्वतंत्र कराया. सिसली में इस समय अत्यंत निरंकुश तथा प्रकृति प्रतिक्रियावादी शासक था. उसके विरुद्ध सिसली की जनता ने विद्रोह कर दिया. यहां के विद्रोहियों के नेता क्रिस्पी था. उसने सहायता के लिए गैरीबाल्डी को आमंत्रित किया. गैरीबाल्डी ने 11 मई 1860 ई. को अपने सैनिकों के साथ सिसली द्वीप के पश्चिमी किनारे पर उतर गया. इस समय नेपल्स के राजा के 24 हजार सैनिक सिसली में ही मौजूद थे तथा नेपल्स में एक लाख से अधिक सैनिक थे. कई दिनों के घमासान युद्ध के बाद गैरीबाल्डी ने पूरे सिसली द्वीप पर अधिकार कर लिया और 5 अगस्त 1860 इमानुएल द्वितीय की अधीनता में अपने को सिसली का शासक घोषित किया. सिसली द्वीप पर अधिकार करने के बाद गैरीबाल्डी ने नेपल्स पर भी अधिकार करने का निश्चय किया. समुद्र पार कर 19 अगस्त 1860 ई. को गैरीबाल्डी ने नेपल्स पर भी अधिकार कर लिया. वहां का सम्राट फ्रांसिस द्वितीय नेपल्स छोड़कर भाग गया. 

21 अक्टूबर 1860 ई. को नेपल्स एवं सिसली की जनता में जनमत संग्रह कराया गया. इन राज्यों की जनता ने भारी बहुमत से सार्डीनिया- पीडमाण्ट में मिलने की इच्छा व्यक्त की. अतः नेपल्स एवं सिसली पीडमाण्ट राज्य में मिला लिए गए. कुछ दिन पश्चात उम्ब्रिआ तथा मार्चेज के प्रदेश में जनमत संग्रह कराने के बाद सार्डीनिया- पीडमाण्ट राज्य में मिला लिए गए. 7 नवंबर 1807 ई. को सम्राट इमानुएल ने नेपल्स में प्रवेश किया. गैरीबाल्डी ने इसका का विरोध नहीं किया और उसने अपने सब अधिकारों को त्याग कर विक्टर इमानुएल को राजा घोषित किया.

इस समय तक केवल रोम और वेनिशिया ही इटली से बाहर रह गया था. इमानुएल  इन राज्यों को इटली मिलाने के लिए अवसर की प्रतीक्षा करने लगा. 1866 ई. में बिस्मार्क ने ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. इस युद्ध में विक्टर इमानुएल ने 1866 ई. की बिस्मार्क के साथ की गई संधि के अनुसार प्रशा का साथ दिया. ऑस्ट्रेलिया को दो मोर्चों पर युद्ध करना पड़ा. एक ओर प्रशा तथा दूसरी ओर इटली. सेडोवा के युद्ध में ऑस्ट्रिया को भयंकर पराजय का मुंह देखना पड़ा. विवश होकर ऑस्ट्रेलिया को प्रशा के साथ संधि करनी पड़ी जिसके कारण उसे वेनिशिया को खाली करना पड़ा और वेनिशिया को भी सार्डीनिया-पीडमाण्ट  राज्य में मिला दिया गया.

इटली के एकीकरण पर एक संक्षिप्त निबंध

1867 ई. में एक बार पुन: गैरीबाल्डी और उसके पुत्र ने मिलकर रोम पर आक्रमण किया लेकिन उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा. 1870 ई. में फ्रांस एवं प्रशा के माध्यम युद्ध हुआ. इसमें फ्रांसीसी सम्राट नेपोलियन को हार का मुंह देखना पड़ा था. फ्रांस को युद्ध में उलझा देखकर इमानुएल ने अवसर का फायदा उठाया और उसने तुरंत रोम पर आक्रमण करके उसे अपने अधिकार में कर लिया. इसके बाद रोम में भी जनमत संग्रह कराया गया. विक्टर इमानुएल को 40 हजार से भी अधिक मत मिले जबकि पोप को केवल 46 मत मिले. अतः रोम को भी सार्डीनिया-पीडमाण्ट राज्य में मिलाकर संयुक्त इटली की राजधानी बनाई गई. इस प्रकार इटली का एकीकरण कार्य पूरा हुआ.

इस प्रकार एक लंबे संघर्ष के बाद इटली का एकीकरण पूरा हुआ. 1856 ई. में कैवूर ने एक बार कहा था कि मुझे पूरा यकीन है कि इटली एक दिन एक राष्ट्र से बनेगा और रोम उसकी राजधानी होगी. उसके ये कथन अंततः सही साबित हुए. इटली के एकीकरण में मैजिनी के नैतिक बल, गैरीबाल्डी के पराक्रम तथा कैवूर की कूटनीति एवं इमानुएल की व्यावहारिक समझदारी से इटली का एकीकरण का सपना 1870 ई. में आखिरकार पूरा हो गया.

इन्हें भी पढ़ें:-

1. फ्रांस की क्रांति के लिए उत्तरदायी राजनितिक कारणों पर प्रकाश डालिये

2. प्रथम बाल्कन युद्ध के कारण और युद्ध की घटनाओं की व्याख्या करें 

3. फ्रांस की क्रांति का इंग्लैंड पर क्या प्रभाव पड़ा?

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