प्राचीन काल में भारतीयों में इतिहास लेखन प्रवृत्ति का अभाव था. ऐसा मानने वालों में मुख्य रूप से फ्लीट, एलफिंस्टन, स्मिथ, डॉ मजूमदार, डॉ आर एस त्रिपाठी, डॉक्टर हीरानद शास्त्री तथा लोएस डिकिंसन जैसे इतिहासकार हैं. इन इतिहासकारों का मानना है कि तत्कालीन भारतीय में अपने देश की घटनाओं के तथ्यपरक दृष्टिकोण में रुचि नहीं थी.

प्राचीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में इन विद्वानों की अवधारणा को पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वर्तमान समय में ऐसे बहुत से भारतीय प्राचीन ग्रंथ हमारे बीच में है जिनसे हमें प्राचीन भारतीय इतिहास की भी व्यापक जानकारियां मिलती है. वास्तविकता यह है कि प्राचीन काल में भी भारतीय ने वर्तमान जीवन के महत्व को सदा ही समझा है. प्राचीन काल से ही अब तक भारतीयों में इतिहास की अवधारणा से नकारा नहीं जा सकता है. अगर ऐसा नहीं होता तो प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक ग्रंथ समय व समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते.

इतिहास की भारतीय अवधारणा
1. इतिहास युग चक्र है:- भारतीय अवधारणा के अनुसार इतिहास निरंतर चलने वाला एक युग चक्र है मनुष्य का जीवन सुख दुख का निर्धारण भी इसी चक्कर से होता है.
2. अवतारवाद:- भारतीय अवधारणा के अनुसार धर्म के द्वारा एवं सद्गुणों वाले मनुष्य के दुखों की जब पराकाष्ठा हो जाती है, तो ईश्वर का धरती पर अवतार के रूप में अवतरण होता है. यदि इससे धार्मिक अवधारणा को अलग करके देखें तो अवतार को महापुरुष के रूप में देखा जा सकता है.
3. कर्म सिद्धांत:- भारतीय इतिहास की अवधारणा में कर्म का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. इसमें जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है, वैसा उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है. जीवन के चार आश्रम एवं वर्ण-विभाजन का आधार कर्म ही है. कर्म का सिद्धांत पलायनवाद से बचाता है तथा इतिहास को एक निश्चित दिशा प्रदान करता है.
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इतिहास के स्वरूप एवं महत्व का वर्णन कीजिए
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