इब्राहिम लोदी की पराजय के कारणों पर प्रकाश डालिए

इब्राहिम लोदी

सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद इब्राहिम लोदी दिल्ली की सिंहासन पर बैठा. हालांकि इब्राहिम लोदी एक योग्य और मेहनती शासक था लेकिन फिर भी उनका शासनकाल दिल्ली सल्तनत के लिए पतन का काल था. उसने अपने शासनकाल में कई सैन्य उपलब्धियां हासिल की, लेकिन पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर के साथ हुए युद्ध में इब्राहिम लोदी की पराजय ने हमेशा के लिए दिल्ली सल्तनत का पतन कर दिया.

इब्राहिम लोदी की पराजय

इब्राहिम लोदी की पराजय कारण

1. अमीरों और सूबेदारों का विद्रोह

इब्राहिम लोदी सत्ता संभालते ही अपने पिता की नीतियों का अनुसरण किया. पिता की भांति उसने हमेशा अमीरों और सुबेदारों का दमन करके उन्हें अपने नियंत्रण रखने का प्रयास किया. उनको अमीरों पर कोई विश्वास नहीं था. वह उनको हमेशा शक की नजर से देखता था. उसके दमनकारी नीतियों से त्रस्त होकर अमीरों और सूबेदारों ने सुल्तान के खिलाफ संघर्ष करना आरंभ कर दिया. अतः इब्राहिम लोदी ने शासनकाल का ज्यादातर समय में इनसे ही संघर्ष करते-करते बिता दिया. इसकी वजह से वह अपने सल्तनत को मजबूत करने की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दे सका.

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2. दौलत खां और आलम खां

इब्राहिम लोदी के निरंकुशता से तंग आकर पंजाब के सूबेदार दौलत खां और सिकंदर लोदी का भाई आलम खां उसे दिल्ली की सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए योजना बनाने लगा. इस योजना के अंतर्गत उन्होंने काबुल के शासक बाबर से मदद मांगी और उसको दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया. आलम खां इस काम के लिए काबुल गया. उन्होंने बाबर को इब्राहिम लोदी की हर खुफिया जानकारियां प्रदान की. बाबर ने भी दिल्ली सल्तनत की स्थिति को परखने के लिए अपने कुछ अमीरों को आलम खां के साथ भारत भेजा. इन अमीरों ने सियालकोट, लाहौर तथा इसके सीमावर्ती क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया. इन क्षेत्रों की कमजोर स्थिति को भांप कर उन्होंने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए हरी झंडी दिखा दी.

इब्राहिम लोदी की पराजय

3. सामरिक महत्व वाली युद्ध क्षेत्र

हरी झंडी मिलते ही बाबर ने भारत पर आक्रमण कर दिया. बाबर के द्वारा आक्रमण की सूचना पाकर इब्राहिम लोदी ने अपनी शक्तिशाली सेना के साथ कूच किया. बाबर की सेना लोदी की सेना की तुलना में अत्यंत कम थी. अतः बाबर ने महसूस किया कि उसकी सेना की दृष्टिकोण से सामरिक महत्व वाले स्थान पर ही युद्ध करने पर ही लोदी की विशाल  सेना को परास्त की जा सकती है. अतः उसने अपने लिए सामरिक महत्व वाले पानीपत के मैदान को युद्ध के लिए चुना.

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4. बाबर के द्वारा तोपखाने का प्रयोग

बाबर ने इस युद्ध में बड़े पैमाने पर तोपखाने का प्रयोग किया. तोपखाना इब्राहीम लोदी की सेना के लिए नयी हथियार थी.  इब्राहिम लोदी की सेना के पास तोपखाने का कोई काट भी नहीं थी. अतः तोपखाने के प्रयोग के द्वारा बाबर ने लोदी की विशाल सेना की कमर तोड़ दी. इब्राहीम लोदी की सेना को इससे भारी क्षति पहुंची और बड़ी संख्या में उसके सैनिक मारे गए. बचे-खुचे सैनिकों के हौसले पस्त हो गए और इधर-उधर बिखर गए. अब लोदी की सेना में इतनी ताकत नहीं बची थी कि वे बाबर की सेना का सामना कर सके.

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5. इब्राहिम लोदी की सेना में हाथियों का प्रयोग

इब्राहिम लोदी ने इस युद्ध में हाथियों का प्रयोग किया. युद्ध के दौरान हाथी तोपखाने की आवाज सुनकर बिदक गए और अपनी सेना को रौंदने लगे. इसके अलावा बाबर ने युद्ध में घोड़े का प्रयोग किया जो कि हाथियों की तुलना में काफी फुर्तीले थे. हाथियों के आकार होने के कारण उनको आसानी से निशाना भी बनाया जा सकता था तथा इनमें फुर्ती की कमी थी. अतः बाबर की फुर्तीले घुड़सवार सेना का सामने लोदी की हाथी नहीं कर पाए. इस भीषण युद्ध में इब्राहिम लोदी मारा गया. इसके साथ ही बाबर ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और इसी के साथ दिल्ली सल्तनत का हमेशा के लिए पतन हो गया.

इब्राहिम लोदी की पराजय

मूल्यांकन

दिल्ली सल्तनत के पतन का मुख्य कारण काफी हद तक इब्राहिम लोदी की निरंकुश शासन ही जिम्मेवार था. उसने अपने निरंकुश शासन के कारण अमीरों और सूबेदारों का दमन किया. इसी कारण वे इब्राहिम लोदी के खिलाफ हो गए. उसने कभी भी अपने दरबार के अमीरों के साथ मेल-मिलाप रखने का प्रयास नहीं किया. ऐसे में बाबर के साथ हुए युद्ध के दौरान इब्राहिम लोदी को इन अमीरों और सूबेदारों का साथ नहीं मिल पाया. 

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