इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है, क्यों?

दिल्ली सल्तनत की स्थापना

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई. को कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा की गई थी. वह पहले मोहम्मद गोरी का गुलाम हुआ करता था. वह अपनी अपनी वीरता और पराक्रम के बल पर मोहम्मद गोरी का ह्रदय जीत लिया और गोरी के भारतीय साम्राज्य का शासक बन गया. गोरी की मृत्यु के बाद उसने दिल्ली सल्तनत को स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में स्थापना की.

दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक

दिल्ली सल्तनत की स्थापना कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा की गई थी, लेकिन फिर भी दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक नहीं माना जाता है. इसका मुख्य कारण यह था कि कुतुबुद्दीन ऐबक के द्वारा भले की स्वतंत्र दिल्ली सल्तनत की स्थापना की गई थी, परन्तु उसके शासनकाल में दिल्ली को स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में किसी ने स्वीकार नहीं किया. उसका सम्पूर्ण शासनकाल बाहरी शत्रुओं और साम्राज्य के अंदरूनी हालातों से निपटने में ही बीता. कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की अंदरूनी हालात बिलकुल अस्थिर थी. दिल्ली सल्तनत के अमीर और खिलजी सरदार उसकी अधीनता स्वीकार करने में अपना अपमान समझते थे. इसीलिए वे किसी भी सूरत में अपना सुलतान मानने को तैयार नहीं थे. कुतबुद्दीन ऐबक ने इन समस्याओं को सुधारने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रहा क्योंकि वह अपने साम्राज्य को यल्दौज, कुबाचा और अलीमर्दान जैसे बाहरी शत्रुओं से भी साम्राज्य की सुरक्षा करने के व्यस्त रहा. इस प्रकार कुतुबुद्दीन ऐबक की सारी जिंदगी इन्हीं समस्याओं से जूझते हुए ही बीत गई और वह दिल्ली सल्तनत को पूरी तरह स्वतंत्र साम्राज्य की पहचान दिलाने में नाकाम रहा.

इल्तुतमिश जब दिल्ली सल्तनत की सत्ता संभाली तो सबसे पहले उसने दिल्ली सल्तनत के अस्तित्व पर आने वाले हर खतरे से निपटने की योजना बनाई और उसने अंतत: उसने अपने प्रयास से दिल्ली सल्तनत को एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में स्थापित करने में सफलता हासिल की.

इल्तुतमिश के कार्य

1. साम्राज्य के अंदरूनी हालात पर नियंत्रण करना

इल्तुतमिश ने जब साम्राज्य की सत्ता संभाली तो सबसे पहले उसने साम्राज्य की अंदरूनी हालात सुधारने पर ध्यान दिया. इसके लिए उसने गुलामों में से अपने विश्वासपात्र 40 गुलामों को चुना. 40 गुलामों के समूह को चालीस मंडल कहा जाता था. इल्तुतमिश ने उनको साम्राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया और प्रत्येक को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई. इससे दिल्ली सल्तनत का प्रशासन सुचारू रूप से चलने लगा. इससे धीरे-धीरे दिल्ली सल्तनत के अंदरूनी हालात ठीक होने लगी. इससे अमीरों और खिलजी सरदारों की मनमानियों पर भी धीरे धीरे अंकुश लगता गया और साम्राज्य में स्थिरता आने लगी.

इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक मानने का कारण (2)

2. बाहरी शत्रुओं का दमन 

कुतुबुद्दीन ऐबक के शासन काल के समय यल्दौज और कुबाचा जैसे उसके प्रबल शत्रु दिल्ली सल्तनत पर अपना नियंत्रण रखना चाहते थे. 4 साल की अल्पकाल के शासनकाल में कुतुबुद्दीन ऐबक इन्हीं बाहरी शत्रुओं से अपने साम्राज्य की सुरक्षा करने में व्यस्त रहा.
कुतुबुद्दीन की मृत्यु के बाद जनता की मांग के पर इल्तुतमिश ने उसके अयोग्य पुत्र आराम शाह को युद्ध में पराजित करके दिल्ली सत्ता का नियंत्रण अपने हाथों में लिया. इस समय इल्तुतमिश भी इतना मजबूत नहीं था कि वह इनसे सीधा मुक़ाबला कर सके. अत: उसने परिस्थितियों के अनुसार सही मौकों का फायदा उठाकर यल्दौज और कुबाचा पर हमला लिए और इनको खत्म कर दिल्ली साम्राज्य को इनसे होनेवाले खतरे को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया.

3. बंगाल की चुनौती 

बंगाल का शासक अली मर्दान कुतुबुद्दीन ऐबक का सामंत हुआ करता था लेकिन ऐबक की मृत्यु के बाद वह खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। इसके बाद वह अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए खिलजी सरदारों का दमन करने लगा. इस पर खिलजी सरदारों ने उसकी हत्या कर दी. फिर उसके स्थान पर हिसामुद्दीन इवाज को बंगाल का शासन शासक बनाया गया. इवाज ने भी कामरूप, तिरहुत और जाजनगर जैसे हिंदू राज्यों को जीतकर अपनी शक्ति काफी बढ़ा लिया था. इस समय तक इल्तुमिश पश्चिमी सीमा परयल्दौज, कुबाचा और मंगोलों के आक्रमण के भय से बंगाल के मामले में कुछ कर नहीं पा रहा था. इल्तुतमिश को जैसे ही यल्दौज और कुबाचा के खतरों से छुटकारा मिला, उसने अपना सारा ध्यान बंगाल की समस्या की ओर दिया. वह बंगाल को फिर से दिल्ली सल्तनत के अधीन लाना चाहता था. अतः अपनी विशाल सेना लेकर बंगाल की ओर रुख किया. इसकी विशाल सेना को देखकर युद्ध करना उचित नहीं समझा. अत: दोनों के बीच समझौता हो गया इस संधि के तहत बिहार पर इल्तुतमिश का अधिकार हो गया. इल्तुतमिश के दिल्ली वापस लाउने के बाद इवाज ने फिर से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और बिहार पर भी अधिकार कर लिया.

इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक मानने का कारण (2)

इवाज के द्वारा बिहार पर फिर से अधिकार करने की खबर पाकर इल्तुतमिश काफी क्रोधित हो उठा. वह अपने पुत्र नसीरुद्दीन की नेतृत्व में 1226 ई. को इवाज पर हमला करने के लिए एक विशाल सेना भेजी. इस समय इवाज अपने सैन्य अभियान पर राजधानी लखनौती से बाहर गया हुआ था. नसीरुद्दीन ने लखनौती पर अधिकार कर लिया. इवाज के लौटने पर दोनों के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में इवाज मारा गया. इस प्रकार इल्तुतमिश ने बंगाल पर अपना नियंत्रण बनाए रखा.

4. पंजाब पर अधिकार

जलालुद्दीन मंगबरनी पर जब मंगोलों ने आक्रमण किया तो वह पराजित होकर भागकर भारत आया था. भारत आकर उसने पंजाब पर अधिकार कर लिया.  जब वह भारत से वापस लौटने लगा तो उसने सैफुद्दीन करलु पंजाब का शासक सैफुद्दीन करलुग को पंजाब का शासक नियुक्त करके चला गया. इसके बाद सैफुद्दीन ने पंजाब के अन्य भागों में शासन कर रहे खोखरों से मित्रता कर ली. सैफुद्दीन और खोखरों के कारण से पंजाब में काफी अव्यवस्था फैल गई. अत: इल्तुतमिश ने अपनी शक्तिशाली सेना को वहां की स्थिति सुधारने के लिए पंजाब भेजा. इल्तुतमिश की सेना ने खोखरों का दमन किया और पंजाब के अनेक भागों पर अधिकार कर लिया.

इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक मानने का कारण (2)

5. हिंदुओं पर विजय

मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद अनेक हिंदू शासकों ने फिर से अपनी शक्ति को संगठित किया. उन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक की परेशानियों काफी फायदा उठाया. इल्तुतमिश भी अपने शासनकाल के प्रारंभ में निरंतर परेशानियों से घिरा रहने के कारण इन हिंदू राजाओं की ओर ध्यान ना दे सका. 1225 ई. के बाद इल्तुतमिश ने इन राज्यों पर अधिकार करने का प्रयास किया. 1226 ई. में इल्तुतमिश ने रणथंबोर प्राधिकार कर लिया तथा 1287 ई. में मंडोर राज्य पर आक्रमण करके विजय प्राप्त की. 1230 ई. में उसने अनेक हिंदू राज्य पर आक्रमण कर किया तथा उन पर विजय प्राप्त की. इन राज्यों में मुख्य रूप से जालौर, अजमेर, बयाना, सांभर आदि थे. इसके बाद 1231 ई. इल्तुतमिश ने ग्वालियर पर आक्रमण किया. उस समय वहां का शासक मंगल देव ने लंबे समय तक इल्तुतमिश का सामना किया, लेकिन अंततः पराजित होकर उसे ग्वालियर से भागना पड़ा. इसके बाद ग्वालियर पर इल्तुतमिश का अधिकार हो गया. ग्वालियर के विजय से उत्साहित होकर इल्तुतमिश ने कालिंजर दुर्ग पर आक्रमण किया. कालिंजर का राजा दुर्ग छोड़ कर भाग गया तथा कालिंजर पर इल्तुतमिश अधिकार हो गया. लेकिन उसका अधिकार अस्थायी रहा क्योंकि कुछ समय बाद कालिंजर के चन्देलों ने पुन: दुर्ग पर पूरा अधिकार कर लिया. इसके बाद इल्तुतमिश ने नागदा के गुहिलोतों और गुजरात के सोलंकियों पर अधिकर करने का प्रयास किया, परंतु असफल रहा. इसके बाद इल्तुतमिश ने मालवा पर भी आक्रमण किया और भिलसा के दुर्ग एवं नगर पर अपना अधिकार कर लिया.

6. दोआब पर अधिकार

इल्तुतमिश अपने शासन के प्रारंभिक समय में कठिनाइयों में फंसा हुआ था. इसका फायदा उठाकर बदायूं, कन्नौज, बनारस, कटिहार आदि प्रदेश स्वतंत्र हो गए. बाद में अपनी स्थिति दृढ़ करने के बाद इल्तुतमिश ने इन राज्यों पर फिर से आक्रमण किया और उन पर विजय प्राप्त कर उन पर अधिकार कर लिया. इसके बाद उसने बहराइच पर भी आक्रमण करके वहां अधिकार कर लिया. इसी बीच अवध में विद्रोही होना शुरू हो गया. विद्रोहियों के साथ घमासान युद्ध और संघर्ष के बाद उसने अवध पर फिर से अधिकार करने में सफलता प्राप्त की.

7. खलीफा से सम्मान की प्राप्ति

इल्तुतमिश ने खलीफा से अपने राज्य को वैज्ञानिक मान्यता प्रदान किए जाने का निवेदन किया. बग़दाद के तत्कालीन खलीफा अल इमाम मुस्तासिर बल्ला ने इल्तुतमिश के निवेदन को स्वीकार करते हुए उसे दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित किया तथा उसे नासिर-अमीर-उल-मौमनीन की उपाधि से विभूषित किया. इल्तुतमिश का अंतिम अभियान बामियान का था. अभियान में जाते समय रास्ते में ही उसके अस्वस्थ हो जाने के कारण वापस लौटना पड़ा. 30 अप्रैल 1236 ई. को उसकी मृत्यु हो गई.

न बातों से पूरी तरह स्पष्ट है कि इल्तुतमिश ने कुतुबुद्दीन के द्वारा स्थापित दिल्ली सल्तनत को अपनी योग्यता, कूटनीति और बहादुरी से पूरी तरह एक स्वतंत्र साम्राज्य के रूप में स्थापित करने में सफलता प्राप्त की. यही कारण उसे दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक कहा जाता है.

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3 thoughts on “इल्तुतमिश को दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक माना जाता है, क्यों?”

  1. सुलतान इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत टका वास्तविक संस्थापक था क्या आप सहमत है

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