उत्तर वैदिक काल की राजनीतिक स्थिति
उत्तर वैदिक कालीन साहित्यों से तत्कालीन राजनीतिक स्थिति पर भी एक व्यापक प्रकाश पड़ता है.
1. शक्तिशाली राजतंत्र का उदय
उत्तर वैदिक काल की मुख्य विशेषता शक्तिशाली राजतंत्रों का उदय होना है. इस समय तेजी से साम्रज्यवाद की भावना विकास होने लगी थी. प्रत्येक राज्य अपनी-अपनी सीमाओं का विस्तार करने में लगी हुई थी. नए हथियारों का का निर्माण होना शुरू हो गया. नतीजतन सैन्य शक्ति बढ़ती चली गई. बढ़ती हुई सैन्य शक्ति के कारण राजाओं का आपसी टकराव भी बढ़ने लगा था. उत्तर वैदिक कालीन साहित्य ऐतरेय ब्राह्मण में भौज्य, स्वराज्य, पारमेष्ठ्य, राज्य, महाराज्य,अधिपत्य और सार्वभौम जैसे राज्यों के होने का उल्लेख है.
2. राजा का अधिकार
उत्तर वैदिक कालीन साहित्यों से दौरान ऐसा प्रतीत होता था कि राजा का जन्म युद्ध करने के लिए ही हुआ था. राजा वंशानुगत होता था लेकिन कभी-कभी वैदिक साहित्यों से यह भी पता चलता है कि कभी-कभी राजा का निर्वाचन भी किया जाता था. इसी काल में धीरे-धीरे राजा का पद पैतृक होते चला गया. राजा का मुख्य दायित्व दुश्मनों से प्रजा की रक्षा करने की होती थी. इस काल में साम्राज्यों के लगातार विस्तार होने के कारण राजाओं की शक्ति में भी लगातार वृद्धि होती चली गई.
3. प्रशासनिक पदाधिकारी
उत्तर वैदिक काल में ऋग्वैदिक काल के अपेक्षा राजा की मदद के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि हुई. अधिकारयों की संख्या में वृद्धि राज्यों के सीमाओं के विस्तार होने के कारण हुई. ऋग्वैदिक काल में राज्य छोटे-छोट होते थे इसीलिए प्रशासनिक अधिकारीयों की संख्या कम होती थी. लेकिन उत्तर वैदिक काल के दौरान जैसे साम्राज्य का विस्तार होना हुआ, प्रशासनिक व्यवस्था को संभालने के लिए पदाधिकारियों की संख्या भी बढ़ता चला गया. प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रशासन को विभिन्न भागों में बांटा गया. इन विभागों में मुख्य रूप से वित्त विभाग,निरीक्षण विभाग, सेना विभाग, स्थानीय शासन विभाग आदि होते थे. प्रत्येक भागों में अलग-अलग अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी.
4. सभा एवं समिति
सभा एवं समितियां मुख्य रूप से राजा पर नियंत्रण करने के लिए रखने के लिए स्थापित की गई थी ताकि राजा मनमानी ना कर सके और उसकी निरंकुशता पर प्रतिबंध लग सके. ऋगवेदक काल में सभा एवं समिति काफी शक्तिशाली हुआ करती थी. लेकिन उत्तर वैदिक काल में राज्यों की सीमाओं में विस्तार हो जाने के कारण इन संस्थाओं का प्रभाव कम हो गया था.
5. न्याय प्रशासन
उत्तर वैदिक काल में न्याय प्रशासन की व्यवस्था भी थी. इस व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी राजा होता था. न्याय कार्य में राजा की मदद करने के लिए अन्य अधिकारी भो होते थे. न्यायाधीश को स्थपति कहा जाता था. इस काल में चोरी, डकैती, व्यभिचार, हत्या, धोखाघड़ी जैसे अपराध होते थे. इस समय छोटे-छोटे अपराधों के लिए भी कठोर दंड दिया जाता था. ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रामवादिनी नामक अधिकारी न्याय कार्य करता था. न्याय करने के लिए दिव्य प्रथा प्रचलित थी.
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