ऋग्वैदिक काल के धार्मिक दशा
ऋग्वैदिक काल में भी लोग विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की उपासना किया करते थे. वेदों में भी विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं का उल्लेख मिलता है. मंत्रोच्चारण के द्वारा इन देवी-देवताओं की आराधना की जाती है. इन मन्त्रों का जिक्र वेदों में भी किया गया है.
1. आराधना एवं यज्ञ
ऋग्वैदिक काल में धर्म का बहुत ही बड़ा महत्व था. ऋग्वेद में पुरुष देवताओं की प्रधानता थी. इस समय सामाजिक और आर्थिक जीवन की तुलना में धार्मिक जीवन बहुत ही जटिल था. धार्मिक क्रियाकलापों में पूजा एवं यज्ञ का प्रमुख स्थान था. पूजा की पद्धति विभिन्न तरीकों से की जाती है थी. इनमें विभिन्न देवी-देवताओं की आराधना की जाती थी. ऋग्वैदिक काल के लोगों के द्वारा पूजा और यज्ञ करने का मुख्य उद्देश्य देवी-देवताओं से कुछ प्राप्त करने की होती थी. पूजा के क्रियाकलापों में पुरोहितों का स्थान होता था. वे यज्ञ के लिए बहुत ही आवश्यक माने जाते थे. उनके बिना यज्ञ संपन्न करना संभव नहीं होता था.
2. देवताओं के वर्दी वर्गीकरण
ऋग्वैदिक काल में लोग विभिन्न प्रकार के देवी-देवताओं की उपासना किया करते थे. लोग अलग-अलग प्रकार के देवी-देवताओं के शक्ति का आभास करते थे. वे उन्हीं के अनुसार उन देवी-देवताओं की सृष्टि कर दी. ऋग्वेद से हमें यह पता चलता है कि कुल 33 देवताओं का अस्तित्व था. इन देवी-देवताओं को भी तीन वर्गों में बांटा गया था:
- स्वर्ग के देवता:- स्वर्ग के देवताओं में मुख्य रूप से वरुण, मित्र, उषा, सावित्री, आदित्य, विष्णु, सूर्य आदि थे.
- वायुमंडलीय देवता:- इन देवताओं में मुख्य रूप से इंद्र, वायु, रूद्र, आपह, मारुत आदि थे.
- भूमि के देवता:- इनके अलावा बहुत से छोटे-बड़े देवी-देवता थे. इनमें विश्वकर्मा, पृथ्वी, अग्नि, बृहस्पति, अप्सरा, सोम, गंधर्व आदि के नाम से जाने जाते थे. ऋग्वेद में पशु-पूजा का उल्लेख नहीं मिलता है.
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3. धार्मिक दर्शन
ऋग्वैदिक काल के लोग स्वर्ग-नर्क पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे. हालांकि ऋग्वेद में स्वर्ग एवं नर्क का उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद के अनुसार स्वर्ग एक ऐसा स्थान है जहां आत्मा सुख से रहते हैं और नर्क ऐसा स्थान है जहां अंधेरा है. यहां गलत कार्य करने वालों को दंड मिलता है. ऋग्वेद के काल के लोग देवी-देवताओं से भयभीत नहीं थे. परंतु उन्हें अपना मसीहा के रूप में समझते थे. उन्हें विश्वास था कि वे उनका मदद करेंगे. आर्य निरंतर देवी-देवताओं को प्रसन्न करके से सुख-सुविधाएं, शक्ति, आयोग, संपत्ति आदि की इच्छा रखते थे. देवता में पुरुष देवता की प्रधानता थी. आर्यों में मूर्ति पूजा वर्जित था.
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