ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति का वर्णन कीजिए

ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति

ऋग्वेद आर्यों का सबसे प्राचीनतम ग्रंथ है. इनसे प्राचीन भारतीय राजनीति, सामाजिक तथा धार्मिक व्यवस्था का पता चलता है. ऋग्वेद काल की सामाजिक स्थिति इस प्रकार  हैं:

1. पारिवारिक जीवन

ऋग्वैदिक काल में परिवार समाज का एक महत्वपूर्ण इकाई हुआ करता था. प्रत्येक परिवार में एक मुखिया हुआ करता था जो कि सबसे ज्यादा उम्र वाला होता था. परिवार के अन्य सदस्यों को उसकी आज्ञा का पालन करना होता था. इसके अलावा घर में गृह पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी. घर के सारे कामों का उत्तरदायित्व उन्हीं पर होता था. इस समय पुत्र न होने पर गोद लेने की भी प्रथा थी. इस काल में अतिथियों का बहुत ही सम्मान किया जाता था. इनका उचित आदर-सत्कार किया जाता था. पुत्र का जन्म शुभ माना जाता था.

ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति

2. मनोरंजन

ऋग्वैदिक काल में विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधनों का भी इस्तेमाल किया जाता था. उनके मनोरंजन के साधन मुख्य रूप से संगीत, नृत्य, जुआ, शिकार आदि हुआ करता था. वैदिक कालीन लोग संगीत प्रेमी भी होते थे. शिकार खेलना राज वर्ग का प्रमुख मनोरंजन का साधन था.

ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति

3. भोजन

ऋग्वैदिक काल में दूध से बनी वस्तुओं का विशेष महत्व था. वे दूध से घी, पनीर आदि बनाते थे. अन्य भोजन वस्तु में भी दूध से निर्मित पदार्थों का उपयोग किया करता था. इस समय के लोग शाकाहारी और मांसाहारी दोनों प्रकार के होते थे. वे साग-सब्जियों के अलावा भेड़, बकरी, बैल आदि के मांस को भी खाते थे. गाय को पवित्र माना जाता था. इसीलिए उसका गोश्त नहीं खाया जाता था. इस समय मदिरापान का भी अत्यधिक प्रचलन था. हालांकि ऋग्वेद में मदिरापान को अपराध प्रेरक बताया गया है.

ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति

4. वेशभूषा एवं प्रसाधन

ऋग्वैदिक काल के लोगों की वेशभूषा साधारण थी. वे मुख्य रूप से सूती, ऊनी तथा रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते थे. इसके अलावा मृग की छाल का भी प्रयोग किया जाता था. उनके दो प्रकार के वस्त्र होते थे- एक शरीर के ऊपरी भाग में पहनने वाले वस्त्र और दूसरा शरीर के निचले भाग में पहनने वाला वस्त्र. विवाह के समय स्त्री एक विशेष प्रकार के वस्त्र धारण करती थी जिसे वधू कहा था जाता था. इस समय स्त्री और पुरुष दोनों आभूषण का उपयोग करते थे.

5. औषधियों का ज्ञान

ऋग्वैदिक कालीन लोगों को औषधियों का अच्छा ज्ञान था. ऋग्वेद में विभिन्न प्रकार के औषधियों के बारे में बताया गया था. वे औषधियों के रूप में मुख्य रूप से जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया करते थे. ऋग्वेद में शल्य चिकित्सा का भी उदाहरण मिलता है.

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6. शिक्षा

वैदिक काल में भी शिक्षा का बहुत बड़ा महत्व था. वे विद्यार्थियों को गुरुओं के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए भेजा करते थे. इस समय शिक्षा का मुख्य उद्देश्य धार्मिक और साहित्यिक शिक्षा प्रदान करना था जिससे उसके संस्कृति का प्रचार-प्रसार हो सके. हालांकि बहुत से  इतिहासकारों का मानना है कि इस समय लोगों को लिखने का ज्ञान नहीं था.

7. जाति प्रथा

ऋग्वेद में कहीं भी वैश्य, शूद्र जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है. इससे इतिहासकार यह निष्कर्ष निकालते हैं कि उस समय संभवत: वर्ण व्यवस्था नहीं थी. इस समय केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय शब्दों का प्रयोग होता था. इतिहासकारों का मानना है कि इस समय वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी. जो भी धार्मिक क्रियाकलाप में योगदान देता था उसे ब्राह्मण तथा जो युद्ध में भाग लेता था उसे क्षत्रिय कहा जाता था.

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8. विवाह एवं स्त्रियों की दशा

इतिहासकारों के अनुसार ऋग्वैदिक काल में बाल विवाह प्रचलन नहीं था. उस समय भाई-बहन, पिता एवं पुत्री, मां-पुत्र के बीच परस्पर विवाह निषेध था. वैदिक समाज में विवाह एक धार्मिक और पवित्र कार्य समझा जाता था. विवाह के बिना जीवन को अपूर्ण माना जाता था. उस समय लड़के और लड़कियों को अपने पसंद के जीवनसाथी चुनने की आजादी थी. वैदिक समाज में स्त्रियों की दशा सम्माननीय थी. वह अपने पति पर आजीवन आश्रित रहती थी. इस समय कन्या जन्म अशुभ माना जाता था.

ऋग्वैदिक काल के सामाजिक स्थिति

वैदिक काल के सामाजिक स्थिति को जानने के लिए वेद बहुत ही विश्वसनीय स्रोत हैं. इनसे हम तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक, पारंपरिक रीति रिवाजों आदि के बारे में जान सकते हैं.

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