औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणामों का वर्णन करें

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

औरंगजेब की धार्मिक नीति ने मुग़ल साम्राज्य में हिन्दुओं के खिलाफ भय और आतंक का माहौल पैदा कर दिया. धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ हिन्दुओं की ओर से तीव्र प्रतिक्रिया होनी शुरू हो गई. इसके परिणामस्वरूप जगह जगह विद्रोह भी होनी शुरू हो गई.

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

औरंगजेब की धार्मिक नीति के खिलाफ विद्रोह

1. जाट कृषकों का विद्रोह

औरंगजेब की धार्मिक नीति से परेशान होकर आगरा के आसपास रहने वाले जाट कृषकों ने गोकुल की नेतृत्व में मुगल शासक औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह करना आरंभ कर दिया. उसके विद्रोह के तत्कालीन कारण फौजदार अब्दुल नबी का था जिसने औरंगजेब के आदेश पर हिंदू जनता पर अत्याचार करना आरंभ कर दिया. उसने सुप्रसिद्ध केशव देवी मंदिर को ध्वस्त कर दिया तथा उसके अवशेषों पर एक विशाल मस्जिद का निर्माण कराया. फौजदार अब्दुल नबी इस कार्रवाई के कारण जाटों में काफी गुस्सा था. अत: उन्होंने अब्दुल नबी का को मौत के घाट उतार दिया. अब्दुल नबी के मारे जाने के बाद औरंगजेब ने हसन अली को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया. उसने जाटों के नेता गोकुल को गिरफ्तार करके उसका वध कर दिया गया तथा उसके परिवार के लोगों को बलपूर्वक मुसलमान बना दिया गया.

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

गोकुल के मारे जाने के बाद कुछ समय के लिए मथुरा में शांति स्थापित हो गई, लेकिन मुगलों की लगातार चल रही दमनकारी नीति से परेशान होकर 1698 ई. में राजाराम के नेतृत्व में जाटों ने फिर से मुगलों के खिलाफ विद्रोह करना आरम्भ कर दिया. औरंगजेब ने इस विद्रोह का भी बलपूर्वक दमन कर दिया. राजाराम को पकड़कर उसका वध करवा दिया, लेकिन इसके बाद भी जाट चुप नहीं रहे. वे राजाराम के पुत्र चूड़ामणि के नेतृत्व में मुगलों के अत्याचार के खिलाफ अंत तक लड़ते रहे.

2. सतनामी समुदाय का विद्रोह

सतनामी समुदाय मुख्य रूप से नारनौल में निवास करने वाले ब्राह्मण समुदाय के साधु थे. वे लोग सादा जीवन व्यतीत करते थे. वे कृषि और व्यापार के द्वारा अपनी जीविका चलाते थे. जब औरंगजेब ने अपने शासनकाल में हिंदुओं पर अत्याचार होना शुरू कर दिया, तो इसका प्रभाव इन लोगों पर भी पड़ा. इसके बाद मुगल सम्राट औरंगजेब की धार्मिक असहिष्णुता की नीति के कट्टर विरोधी हो गए. अब सतनामी समुदाय ने मुगल सम्राट औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह करना आरंभ कर दिया. सतनामियों के विद्रोह करने के तत्कालीन कारण एक सतनामी और मुग़ल पहरेदार के बीच में नारनौल से निकट झड़प होना है. इस घटना में सतनामी घायल हो गया. अतः सतनामियों ने मिलकर उस मुग़ल पहरेदार को पकड़कर खूब पीटा और नारनौल के मस्जिद पर हमला करके उसको क्षति पहुंचाया. इस घटना की खबर आग की तरह फैलती चली गई और जल्द ही विद्रोह का रूप धारण कर लिया. स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि इस विद्रोह को दबाने के लिए स्वयं औरंगजेब को हस्तक्षेप करना पड़ गया. उसने एक विशाल मुग़ल सेना के साथ विद्रोह का दमन करने के लिए सतनामियों पर हमला कर दिया और क्रूरता के साथ उसके विद्रोह का दमन कर दिया.

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

3. सिखों का विद्रोह

मुगल सम्राटों के अत्याचार से सिख समुदाय भी अछूता नहीं था. सिख-मुग़ल  संघर्ष की शुरुआत जहांगीर के शासनकाल में ही शुरु हो चुका था क्योंकि शाहजहां खुसरो की सहायता करने के कारण जहांगीर ने 1606 ई. में सिख गुरु अर्जुन सिंह का वध करवा दिया था. शाहजहां के समय गुरु तेज बहादुर सिखों के गुरु बने औरंगजेब के शासनकाल में उसकी की धार्मिक नीति ने सिख-मुगल संघर्ष को और भी भड़का दिया. इस समय गुरु तेज बहादुर ने आनंदपुर अपना मुख्य केंद्र बनाया और औरंगजेब की हिंदू विरोधी नीति का विरोध करना शुरू कर दिया. इसपर औरंगजेब ने आनंदपुर पर आक्रमण कर दिया और गुरु तेज बहादुर को पकड़ लिया गया. उस पर इस्लाम इस्लाम धर्म स्वीकार करने का दबाव बनाया गया लेकिन उसने इंकार कर दिया. उसके इंतजार करने पर 1975 ई. में उसकी हत्या करवा दी गई. तेज बहादुर की हत्या के बाद सिखों का गुस्सा और भी भड़क गया. इसके बाद गुरु तेजबहादुर के पुत्र गुरु गोविन्द सिंह ने इस विद्रोह की कमान संभाली और मुगलों के खिलाफ विद्रोह को और ही तेज कर दिया. गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व के कारण ही सिख समुदाय एक सैन्य जाति के रूप में परिवर्तित हो गई.

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणाम

गुरु गोविंद सिंह ने बड़े साहस और वीरता के साथ मुगलों का सामना किया. इसके कारण आनंदपुर मुगलों का दबाव निरंतर बढ़ता चला गया. मुगलों के साथ युद्ध करते हुए गुरु गोविंद सिंह के 2 पुत्र मारे गए और दो पुत्रों को बंदी बना लिया गया. उन्हें 1705 ई. में दीवार में जिंदा चिनवा दिया गया. औरंगजेब के अत्याचारों के बाद भी सिखों का विद्रोह शांत नहीं हुआ. जिसके कारण औरंगजेब काफी परेशान हो गया. अत: वह गुरु गोविन्द सिंह से शांति समझौता करना चाहता था, लेकिन 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु हो गई. औरंगजेब की मृत्यु के बाद भी मुगलों के खिलाफ सिखों का संघर्ष जारी रहा. अंतत: मुगल साम्राज्य के पतन के लिए सिख विद्रोह का भी बहुत बड़ा योगदान रहा.

मूल्याङ्कन:

औरंगजेब की धार्मिक नीति के परिणामस्वरूप पूरे मुगल साम्राज्य में धार्मिक असहिष्णुता और अशांति का माहौल बन गया. इससे मुग़ल साम्राज्य की आंतरिक संरचना पूरी तरह कमजोर हो गई. इसने देश के विभिन्न हिस्सों में कई संघर्षों और युद्धों को जन्म दिया. सही मायने में कहा जाये तो औरंगजेब की धार्मिक नीति ने ही मुग़ल साम्राज्य के पतन की नींव तैयार कर दी थी.

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