क्रीमिया युद्ध (1854 – 56) के कारणों की विवेचना करें

क्रीमिया युद्ध (1854 – 56)

18 वीं शताब्दी में पूर्वी समस्या गंभीर रूप धारण करने लगी थी. ऐसी परिस्थितियों के उत्पन्न होने के तीन कारण थे- तुर्क की घटती शक्ति, बाल्कन प्रदेश में छोटे-छोटे स्वतंत्र इसाई राज्यों की स्थापना और तुर्की की घटती शक्ति का यूरोपीयशक्तियों पर प्रभाव तथा उनपर हस्तक्षेप करने की कोशिश. 19 वीं शताब्दी के शुरूआत में रूस की नजर कुस्तुंतुनियां पर थी. धीरे-धीरे वह काले सागर के दक्षिणी तट की ओर बढ़ते जा रहा था. ऑस्ट्रिया रूस की कदम का विरोध कर रहा था. इधर रूस के कदम से इंग्लैंड के व्यापार पर भी असर पड़ने वाला था. अतः उसने भूमध्यसागर के व्यापार तथा कुस्तुंतुनियां की रक्षा करने के लिए कदम उठाने की सोची. युद्ध को रोकने की भरपूर कोशिश की गई पर युद्ध रोकी न जा सकी. 1854 ई. में युद्ध शुरू हो गया. इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए.

क्रीमिया युद्ध

क्रीमिया युद्ध (1854 – 56) के इस युद्ध के कारण

1. तुर्की की सुलतान की अयोग्यता

तुर्की का सुल्तान एक अयोग्य व्यक्ति था. उसके शासनकाल में तुर्की और भी कमजोर होता चला गया. उसकी कमजोर शासन व्यवस्था, अन्य धर्म के लोगों के खिलाफ अनादर और अत्याचारी नीतियों ने जनता में असंतोष बढ़ाती चली गई. उसके शासनकाल में लोग खुलकर मनन-चिंतन करने लगे थे कि बाल्कन प्रदेश पर किसका अधिकार होगा. अतः उसकी दुर्बलता भी क्रीमिया युद्ध का कारण बनी.

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2. जार निकोलस प्रथम का स्वार्थ

रूस का जार निकोलस प्रथम अत्यंत ही महत्वकांक्षी व्यक्ति था. वह तुर्की की कमजोर स्थिति का लाभ उठाकर वह उसपर कब्जा करना चाहता था. लेकिन रूस ये भी जानता था कि यूरोपीय देश उसे ऐसा करने नहीं देंगे. उसे यूरोपीय देशों में से केवल इंग्लैंड की चिंता थी. अतः उसने 1844 ईं. में इंग्लैंड को तुर्की के कुछ भाग कीट, साइप्रस और मिश्र देकर बाकी प्रदेश को अपने अधीन में करने का प्रस्ताव इंग्लैंड के सामने रखा. रूस ने कहा कि तुर्की साम्राज्य अधिक दिनों तक चल नहीं सकता है. उसे सहारा भी दिया जाए तो उसकी हालत नहीं सुधरने वाली है. लेकिन इंग्लैंड, तुर्की को मिटाने के पक्ष में नहीं था. अतः उसने रूस के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया.

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3. नेपोलियन तृतीय की महत्वाकांक्षा

इस समय फ्रांस में नेपोलियन महान का भतीजा नेपोलियन तृतीय शासक था. वह अपने चाचा नेपोलियन महान की तरह महान शासक बनना चाहता था. अतः उसने तुर्की के मामलों में रूचि लेना शुरू कर दिया. 1774 ई. में हुए एक संधि के अनुसार तुर्की ने फ्रांस को रोमन भिक्षुओं का संरक्षण बना दिया था. तुर्की ने रूस के साथ दूसरी संधि करके उसे ग्रीक चर्च का संरक्षक बना दिया. अतः फ्रांस और रूस दोनों ही तुर्की पर अपना-अपना आधिपत्य जमाने की फिराक में थे. इसके अतिरिक्त रूस और फ्रांस के बीच कटु संबंध भी था. रूस का जार नेपोलियन तृतीय को फ्रांस का असली शासक नहीं मानता था. इसीलिए वह फ्रांस को भाई के साथ पर मित्र के रूप में संबोधित करता था. ये बात नेपोलियन तृतीय ने अपना अपमान समझा और रूस के जार को सबक सिखाने का मौका खोजने लगा था. 

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4. फ्रांस और इंग्लॅण्ड की मित्रता

इंग्लैंड, फ्रांस और रूस दोनों को तुर्की के लिए खतरा मानता था क्योंकि दोनों तुर्की पर कब्जा करना चाहते थे. विशेषकर अगर तुर्की पर अगर रूस कब्जा कर लेता है तो उसके उपनिवेशों पर खतरा हो सकता था. अतः इंग्लैंड ने फ्रांस से दोस्ती कर ली. इसे देखकर रूस युद्ध की तैयारी करने लगा.

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5. धार्मिक कारण

रूस के द्वारा धार्मिक कारणों से तुर्की पर कब्जा करने की कोशिश फ्रांस और इंग्लैंड भांप गए थे. अतः तुर्की के सुल्तान पर दबाव बनाकर नेपोलियन तृतीय ने यरूशलेम की ताला-कुंजी रोमन पादरियों को दिलवा दिया. रूस युनानी चर्च का संरक्षक था और वह स्वयं इसपर अधिकार करना चाहता था. अतः रूस इस बात से भड़क गया और तुर्की के सुल्तान को पत्र भेजा और कहा कि उस पवित्र स्थान को यूनानियों को लौटा दे और रूस को यूनानियों का संरक्षक मान ले. तुर्की के सुल्तान रूस के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया जिससे वह और भड़क गया और युद्ध की तैयारी में जुट गया.

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