गुप्तकालीन इतिहास के स्रोतों का उल्लेख कीजिए

गुप्तकालीन इतिहास

गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है. मौर्यों के पतन के पश्चात नष्ट हुई भारतीय राजनीतिक एकता को गुप्त शासकों ने पुनः अर्जित किया और लगभग संपूर्ण भारत को एक राजनीतिक क्षेत्र के अधीन कर एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना कर देश को विदेशी आक्रमणकारियों के हमले से बचाया और भारत की स्वतंत्रता को बरकरार बनाए रखा. इस युग में भारत ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, साहित्यिक और कला के क्षेत्र में व्यापक उन्नति की. गुप्त काल में हुई इस उन्नति को विदेशी लेखकों के द्वारा भी काफी सराहा गया.

गुप्तकालीन इतिहास के स्रोत

गुप्तकालीन इतिहास के स्रोत

गुप्तकलीन इतिहास कुछ जानने के साधनों को अनेक भागों में विभाजित किया जा सकता है. इनमें मुख्य रूप से साहित्यिक स्रोत, अभिलेख, स्मारक, मोहरें आदि शामिल हैं.

1. साहित्यिक स्रोत

गुप्त काल पर प्रकाश डालने वाली साहित्यिक सामग्री सामग्री प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है. इनमें पुराण भी प्रमुख हैं. पुराणों के द्वारा गुप्त काल पर व्यापक प्रकाश पड़ता है. पुराणों में विष्णु पुराण, वायु पुराण और ब्राह्मण पुराण गुप्तकालीन इतिहास जानने की दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है. कुछ समय पूर्व तक पुराणों को प्रमाणिक नहीं माना जाता था लेकिन आधुनिक विद्वानों के द्वारा पुराणों की ऐतिहासिकता को स्वीकार किया गया. पुराणों से गुप्तों के प्रारंभिक इतिहास  सीमा निर्धारण तथा सांस्कृतिक क्रियाकलापों के विषय में जानकारी मिलती है.

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गुप्त काल के विषय में काव्यों और नाटकों के द्वारा भी महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त होती है. इन नाटकों में मुख्य रूप वज्जिका नामक विदुषी के द्वारा लिखित नाटक कौमुदी महोत्सव, कालिदास द्वारा रचित रघुवंश और अभिज्ञानशाकुंतलम, विशाख दत्त के द्वारा रचित देवीचंद्रगुप्तम तथा मुद्राराक्षस, शूद्रक का नाटक मृच्छकटिक तथा कामसूत्र आदि से भी गुप्तकाल पर व्यापक प्रकाश पड़ता है. आर्यमंजुश्रीमूलकल्प नामक बौद्ध ग्रंथ से भी परिवर्ती गुप्त शासकों विषय में जानकारी प्राप्त होती है.

साहित्यिक स्रोतों में विदेशी यात्रियों का वृतांत भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. गुप्त काल तथा उसके बाद अनेक विदेशी यात्रियों में भारत की यात्रा की. इन्होंने अपने वर्णन में गुप्त काल से संबंधित अनेक तत्वों को उल्लेख किया है. इन विदेशी यात्रियों का वर्णन निष्पक्ष होने के कारण ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. इन यात्रियों में मुख्य रूप से फाह्यान, सुंग-युन, ह्वेनसांग, इत्सिंग तथा ग्यारहवीं शताब्दी के मुसलमान यात्री अलबरुनी जैसे विदेशी यात्री शामिल हैं.

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2. अभिलेख

गुप्त वंश के इतिहास के निर्माण में उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों से प्राप्त अभिलेखों से महत्वपूर्ण सहायता मिलती है. ये गुप्तकालीन अभिलेख शिलाओं, स्तंभों और ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण हैं. इन अभिलेखों की भाषा संस्कृत है. इन अभिलेखों में गुप्त शासकों की वंशावली, शासक तथा प्रशस्तिकर के नाम उत्कीर्ण हैं. अतः गुप्त अभिलेख सर्वाधिक प्रमाणित माने जाते हैं. अभिलेखों के प्राप्ति स्थल के आधार पर गुप्त साम्राज्य की सीमाओं का निर्धारण करने में सहायता मिलती है. ऐतिहासिक दृष्टि से प्रमुख गुप्त अभिलेख, समुद्रगुप्त का प्रयाग और एरण अभिलेख, चंद्रगुप्त की महरौली और उदयगिरी गुहा अभिलेख, कुमारगुप्त के मिलसद, गढ़वा तथा मंदसौर अभिलेख, स्कंदगुप्त के भीतरी तथा कहौम अभिलेख हैं.

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3. मुद्राएं

मुद्राओं से भी गुप्तकालीन इतिहास पर व्यापक प्रकाश पड़ता है.  भारतीय मुद्रा के इतिहास के दृष्टिकोण से गुप्त काल एक नवीन युग माना जाता है. गुप्त काल में स्वर्ण, चांदी और तांबे की मुद्राओं का निर्माण हुआ था. मुद्राओं की प्राप्ति के आधार पर साम्राज्य की सीमा का निर्धारण करने में सहायता मिलती है. मुद्राओं पर उत्कीर्ण चित्रों से सम्राटों की शारीरिक बनावट और उनके व्यक्तित्व के विषय में पता चलता है. कुछ मुद्राओं पर गुप्त शासकों को सिंह का शिकार करते हुए दिखाया गया है. इससे उसकी शक्ति और रूचि का पता चलता है. चंद्रगुप्त प्रथम की मुद्राओं पर उसकी पत्नी को कुमारदेवी का चित्र उत्कीर्ण होने से चंद्रगुप्त के लिच्छवियों से संबंध के विषय में जानकारी मिलती है.

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4. मुहरें

वैशाली से अनेक गुप्तकालीन मुहरें प्राप्त हुई है. इससे गुप्तकालीन प्रांतीय तथा स्थानीय शासन व्यवस्था के विषय में प्रकाश पड़ता है.

5. स्मारक

उत्खनन के परिणामस्वरूप गुप्तकाल की अनेक स्मारक और कलाकृतियों प्राप्त हुई है. इन से तत्कालीन धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति पर विशेष रूप से प्रकाश पड़ता है. इन स्मारकों से गुप्तकाल में हुई भारत की सांस्कृतिक उन्नति तथा राजा और प्रजा की धार्मिक भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है. गुप्तकालीन कलाकृतियों से गुप्त शासकों के धार्मिक सहिष्णुता होने के विषय में पता चलता है. गुप्तकालीन स्मारकों में मुख्य रुप  से भूमरा का शिव मंदिर, तिगवा का विष्णु मंदिर, नचना का पार्वती मंदिर, भीतरगांव का लाड़खान मंदिर आदि प्रमुख है. इससे गुप्तकाल से प्रारंभ हुई शिखर बनाने की परंपरा के विषय में पता चलता है. मंदिरों के अतिरिक्त गुप्तकालीन अन्य प्रमुख स्मारक स्कंदगुप्त की भीतरी स्तंभ, बुद्धगुप्त का गरुड़ स्तंभ, चंद्रगुप्त की महरौली लौह स्तंभ तथा शिवाजी, विष्णु और बुद्ध के अतिरिक्त दुर्गा, गंगा और यमुना आदि की मूर्तियां हैं. चित्रकला की दृष्टिकोण से अजंता और बाघ की गुफाओं के चित्र अनुपम है.

गुप्तकालीन इतिहास के स्रोत

इन से स्पष्ट है कि गुप्तकाल पर प्रकाश डालने वाले अनेक स्रोत उपलब्ध हैं. इनके आधार पर गुप्तकाल के प्रमाणिक इतिहास का निर्माण किया जा सकता है. इस प्रकार साहित्य, ग्रंथ, विदेशी यात्रियों का वृत्तांत, गुप्तकालीन अभिलेख और मुद्राएं, मुहरें एवं स्मारक गुप्तकालीन स्वर्णिम युग की झलक प्रदान करता है जो प्राचीन भारतीय इतिहास को विश्व की इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान प्रदान करती है.

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1 thought on “गुप्तकालीन इतिहास के स्रोतों का उल्लेख कीजिए”

  1. गुप्तकाल में आये महतावपूर्ण यात्री या उनके द्वार लिखी गयी पुस्तक

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