गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन का वर्णन करें

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति (Origin of Gurjara-Pratiharas)

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन भारतीय इतिहास के विलक्षण घटनाओं में से एक है. उज्जैन की गुर्जर प्रतिहार शाखा का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम था. इनके शासन काल के निश्चित तिथि ज्ञात नहीं है.  संभवत: उसने आठवीं शताब्दी के द्वितीय चतुर्थांश में शासन किया था. नागभट्ट के शासन काल के प्रमुख घटना उसके राज्य पर अरबों का आक्रमण था. ग्वालियर अभिलेख से यह जानकारी मिलती है कि नागभट्ट प्रथम ने शक्तिशाली और विशाल अरब सेना को परास्त किया. अरबी लेखक अलबिलादुरी के वर्णन से भी इस कथन की पुष्टि होती है. नागभट्ट प्रथम के बाद उज्जैन के सिंहासन में उसका भतीजा ककुस्थ आसीन हुआ.

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन

इसके शासनकाल का भी कोई उल्लेखनीय घटना ज्ञात नहीं है. उसका उत्तराधिकारी उसके छोटा भाई देवराज था. इसके बाद देवराज का पुत्र वत्सराज सिंहासन पर बैठा. वह गुर्जर-प्रतिहार वंश के प्रबल शासकों में से एक था. गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को दृढ़ता प्रदान करने का श्रेय वत्सराज को ही जाता है. वत्सराज एक महत्वकांक्षी शासक था. उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयत्न किया. ग्वालियर अभिलेख से इस बात की जानकारी मिलती है कि वत्सराज ने मध्य राजपूताना में शासन कर रहे भण्डिकुल को परास्त कर उस पर अधिकार कर लिया. इसकी पुष्टि ओसिया एवं दौलतपुर अभिलेख से होती है. 783 ई. में वत्सराज ने कन्नौज पर आक्रमण किया था और वहां पर विजय प्राप्त कर वहां के शासक इन्द्रायुद्ध को अपने सामांत शासक के रूप में नियुक्त किया.  वत्सराज के समकालीन बंगाल का शासक पाल वंशीय शासक धर्मपाल था. वह कन्नौज पर अधिकार करना चाहता था. जब वत्सराज ने कन्नौज पर अधिकार कर लिया तो धर्मपाल को सहन नहीं हुआ. अतः कनौज के प्रश्न पर वत्सराज और धर्मपाल के बीच युद्ध हुआ. इस युद्ध में वत्सराज की विजय हुई. इस प्रकार वत्सराज ने शक्तिशाली एवं विस्तृत साम्राज्य की स्थापना की. किंतु अपने शासन काल के अंतिम दिनों में उसे राष्ट्रकूट शासकों के हाथों पराजित होना पड़ा.

वत्सराज के पास बाद उसका पुत्र नागभट्ट द्वितीय शासक बना. नागभट्ट के शासक बनने के समय गुर्जर प्रतिहार साम्राज्य की स्थिति अत्यंत सोचनीय थी. परंतु नागभट्ट ने अपनी वीरता और पराक्रम के द्वारा अपने साम्राज्य को फिर से शक्तिशाली बनाया. उसने अपने शासनकाल में प्रतिहार साम्राज्य की राजधानी उज्जैन के स्थान पर कनौज को बनाया. ग्वालियर अभिलेख के अनुसार नागभट्ट द्वितीय ने आंध्र, सिंध, विदर्भ तथा कलिंग के राजाओं को अपने अधीन किया. इसके अलावा उसने मालव, किरात, तुरूष्क वत्स आदि पर्वतीय दुर्गों पर भी अपना अधिकार कर लिया. संजन और राधनपुर अभिलेख से इस बात की जानकारी मिलती है कि नागभट्ट द्वितीय को भी आरंभिक दिनों में राष्ट्रकूट शासक गोविंद तृतीय के आक्रमण का सामना करना पड़ा था. इन युद्धों में उनकी पराजय हुई थी. जब गोविंद तृतीय ने पाल शासक धर्मपाल पर आक्रमण किया तो उसी का लाभ उठाते हुए नागभट्ट द्वितीय ने कन्नौज नरेश चक्रायुध पर आक्रमण किया तथा उसे परास्त कर अपनी नई राजधानी कन्नौज को बनाया. चक्रायुध भागकर धर्मपाल के संरक्षण में पहुंचा, किंतु नागभट्ट ने उनका पीछा कर धर्मपाल को भी पराजित किया. इस प्रकार नागभट्ट द्वितीय ने एक शक्तिशाली प्रतिहार साम्राज्य की स्थापना की. 

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन

नागभट्ट द्वितीय के पश्चात उसका पुत्र रामभद्र शासक बना. वह एक कमजोर शासक था. उसके शासनकाल में अनेक प्रदेश स्वतंत्र हो गए. रामभद्र के बाद उसका पुत्र मिहिर भोज शासक बना. वह इस वंश का सबसे शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था. उन्हें ‘आदि वाराह’ तथा ‘प्रभास’ जैसी उपाधियों से नवाजा गया था. इनका वर्णन बहुत से अभिलेखों और साहित्यिक स्रोतों में मिलता है. मिहिरभोज ने राजा बनने के बाद सबसे पहले दस वर्षों तक अपने साम्राज्य की शक्ति और अपने प्रशासन को सुदृढ़ किया, उसके बाद अपने साम्राज्य के विस्तार की ओर ध्यान देना शुरू किया. उसने बुंदेलखंड, गुर्जरात्रा, गुहिल, कलचुरी, दक्षिण राजपुताना, सौराष्ट्र आदि पर विजय प्राप्त की. राजतरंगिणी और पहवा शिलालेख के अनुसार उसने उत्तर-पश्चिम के सतलज नदी के पूर्वी किनारों तक अधिकार कर लिया था.

पाली शासक देवपाल मिहिरभोज का समकालीन था. वह भी एक शक्तिशाली और महत्वकांक्षी शासक था. वह भी अपने साम्राज्य की विस्तार में लगा हुआ था. ऐसे में दोनों का टकराव हुआ. इस युद्ध में किसकी जीत हुई यह स्पष्ट नहीं है क्योंकि पाल और प्रतिहार के अभिलेखों में अपनी-अपनी विजय का उल्लेख है. लेकिन बादल अभिलेख के अनुसार इस युद्ध में देवपाल की विजय हुई. इतिहासकार विभिन्न अभिलेखों में लिखे के साक्ष्यों के अनुसार अनुमान लगाते हैं कि संभवतः दोनों के बीच दो युद्ध हुआ था, जिसमें पहले युद्ध में देवपाल तथा दूसरे युद्ध में मिहिरभोज की विजय हुई थी. मिहिर भोज और राष्ट्रकूट शासक उनके मध्य भी संघर्ष हुआ था इसमें मिहिर भोज को पराजय होना पड़ा. लेकिन बाद में मिहिरभोज ने इस पराजय का बदला लिया और राष्ट्रकूट शासक कृष्णा द्वितीय को अपनी सीमाओं में वापस जाने पर विवश किया. इस प्रकार उसने विभिन्न विजयों के द्वारा न केवल विशाल साम्राज्य की स्थापना की बल्कि अपने पिता के शासनकाल में कमजोर हो चुके प्रतिहार साम्राज्य को भी दृढ़ता प्रदान की.

मिहिर भोज के बाद उसका पुत्र महेंद्र पाल शासक बना. वह भी अपने पिता के समान वीर एवं महत्वकांक्षी था. उसने भी अपने साम्राज्य का ना केवल विस्तार किया बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी कन्नौज का मान सम्मान और उन्नति को चरम सीमा तक पहुंचाया. महेंद्र पाल का पुत्र भोज द्वितीय था. उसके शासन काल के किसी घटना का विवरण नहीं मिलता है. इसके पश्चात महीपाल प्रथम ने सिहासन संभाला. उसने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अनेक विजय प्राप्त की. महिपाल के शासनकाल के अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट शासक कृष्णा तृतीय ने उसपर आक्रमण किया तथा महिपाल को परास्त किया. इसके परिणाम स्वरुप बुंदेलखंड के कालंजर एवं चित्रकूट उसके हाथों से निकल गए.

गुर्जर-प्रतिहार वंश का पतन (Decline of Gurjara-Pratihara dynasty)

महीपाल के बाद प्रतिहार वंश में ऐसा कोई योग्य शासक नहीं हुआ जो कन्नौज साम्राज्य की गौरव को बनाए रख सके. महीपाल के पश्चात इस वंश में अनेक शासक आए लेकिन वे अपनी अयोग्यता और दुर्बलता के कारण अपने विशाल साम्राज्य को संगठित नहीं रख सके.गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन

गुर्जर प्रतिहार वंश के पतन के कारण

1. महिपाल के बाद इस वंश का कोई भी शासक उनके जैसा शक्तिशाली एवं महत्वकांक्षी नहीं था. इस कारण प्रतिहारों की शक्ति कमजोर होती चली गई.

2. दक्षिण के शक्तिशाली राष्ट्रकूट शासकों के निरंतर उत्तरी अभियानों से गुर्जर-प्रतिहार साम्राज्य को बहुत क्षति पहुंची. इसका सामना गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक नहीं कर सके.

3. प्रतिहार साम्राज्य की दुर्बलता का फायदा उठा कर उनके सामंत चंदेल शासकों ने अपना स्वतंत्र राज्य बुंदेलखंड में स्थापित किया तथा वह प्रतिहार साम्राज्य पर अधिकार करने के प्रयास में लगे रहे.

4. विजयपाल एवं राज्यपाल (995-1017 ई.) के शासन के दौरान उनकी दुर्बलता का लाभ उठाते हुए चालुक्यों ने गुजरात-काठियावाड़ में अपना स्वतंत्र राज्य की स्थापना की. इसी दौरान अन्य वंशों ने भी अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली. इस कारण प्रतिहार साम्राज्य का विघटन होता चला गया.

5. राज्यपाल और त्रिलोचनपाल के शासनकाल में महमूद गजनवी ने कन्नौज पर आक्रमण किया. राज्यपाल युद्ध से डरकर भाग गया जिसके कारण क्रोधित होकर चंदेल शासक विद्याधर ने उसकी हत्या कर दी और त्रिलोचनपाल को अपने अधीन शासक नियुक्त किया. 1020 ई. में महमूद ने पुनः कन्नौज पर आक्रमण किया. त्रिलोचनपाल ने वीरतापूर्वक इस आक्रमण का सामना किया पर अपने साम्राज्य की सुरक्षा करने में नाकाम रहा.

गुर्जर-प्रतिहारों की उत्पत्ति और पतन

इस प्रकार गुर्जर प्रतिहार वंश के एक शक्तिशाली साम्राज्य का पतन हो गया प्रतिहार साम्राज्य के शक्तिशाली राजाओं ने अपने विजय अभियान के द्वारा शक्तिशाली और विशाल साम्राज्य की स्थापना की उन्होंने आक्रमणकारियों का भी मुकाबला किया लेकिन माही पाल के बाद आने वाले शासक अयोग्य सिद्ध हुए जिनके कारण वे अपने साम्राज्य को आक्रमणकारियों से सुरक्षा करने में नाकाम रहे और इस शक्तिशाली राज वंश का पतन हो गया.

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