चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियों का वर्णन करें

चन्द्रगुप्त द्वितीय

चंद्रगुप्त द्वितीय गुप्त वंश के महान सम्राटों में से एक है. वह समुद्रगुप्त का पुत्र तथा राम गुप्त का छोटा भाई था. वह राम गुप्त की मृत्यु के बाद गुप्त साम्राज्य की राज सिंहासन पर आसीन हुआ. उसने अपने वीरता और रणनीति से केबल पर गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया और एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की. चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत में राजनीतिक सांस्कृतिक और आर्थिक एकता स्थापित हुआ.

चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियों

चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियां

1. शकों पर विजय

चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल की सबसे प्रमुख घटना उसके द्वारा शकों पर विजय पाना था. यद्यपि समुद्रगुप्त ने भारत के विस्तृत भूभाग पर विजय प्राप्त की थी,  किंतु उनके विजयों का गुजरात और काठियावाड़ में शासन कर रहे शकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था. चंद्रगुप्त द्वितीय भारत से विदेशी राज्य को पूर्णतः समाप्त करना चाहता था. वाकाटकों के सहयोगी बन जाने के कारण चंद्रगुप्त द्वितीय के लिए शकों को परास्त करना और भी आसान हो गया था.

चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियों

चंद्रगुप्त द्वितीय की शकों पर विजय का अत्यधिक राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व है.  इस विजय के परिणामस्वरुप तीन शताब्दियों से भी पुराने विदेशी साम्राज्य का भारत के पश्चिम से खत्म हो गया. इसके अतिरिक्त इस विजय के परिणामस्वरुप गुप्त साम्राज्य की सीमाएं गुजरात, काठियावाड़ तथा पश्चिमी मालवा तक विस्तृत हो गया. इस विजय का राजनीतिक और सांस्कृतिक महत्व के अतिरिक्त आर्थिक महत्व भी है.  इस विजय के परिणामस्वरुप गुप्त साम्राज्य के अधीन भड़ौच का बंदरगाह भी आ गया.  इस बंदरगाह से ही भारत का पश्चिमी देशों से व्यापार होता था. इस बंदरगाह पर गुप्तों के नियंत्रण होने से आर्थिक लाभ के साथ-साथ उसकी ख्याति पश्चिमी देशों तक भी पहुंचने लगी.

2. गणराज्यों पर विजय

समुद्रगुप्त ने अपने विजय अभियान के द्वारा अनेक गणराज्यों पर विजय प्राप्त कर उन गणराज्यों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया था. लेकिन उसने उन गणराज्यों गुप्त साम्राज्य में कभी मिलाने का प्रयास नहीं किया था. लेकिन चंद्रगुप्त द्वितीय ने इन गणराज्यों पर पुन: विजय प्राप्त करके अपने गुप्त साम्राज्य में मिला लिया.

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3. बह्लीक विजय

महरौली स्तंभ लेख में कहा गया है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने सिंधु के पांच मुखों को पार कर बह्लीकों पर विजय प्राप्त की. डॉ. मजूमदार जैसे कुछ विद्वानों ने बह्लीक का समीकरण बैक्टीरिया से किया और उन्होंने चंद्रगुप्त को बैक्टीरिया पर विजय प्राप्त करने का श्रेय दिया. किंतु अनेक विद्वान इस मत से सहमत नहीं हैं. प्रोफेसर यू. एन. राय ने लिखा है कि बह्लीक विजय का तात्पर्य बह्लीक जाति से था जो कि उसे समय भारतवर्ष में एक महत्वपूर्ण सत्ता के रूप में शासन कर रही थी. प्रो. राय के विचार में बह्लीक उत्तरी कुषाणों को कहते थे जो किसी समय बैक्टीरिया के शासक रह चुके थे. महाभारत और रामायण से भी इस प्रमाण प्रस्तुत करते हुए डॉ. भंडारकर, डॉ. दिनेश चंद्रा एवं डॉ. दशरथ शर्मा ने प्रमाणित किया कि बह्लीक पंजाब का वह भाग था जो व्यास नदी के दोनों तटों के निकटवर्ती था. अत: चंद्रगुप्त द्वितीय ने इसी प्रदेश में उतरी-कुषाणों को परास्त किया होगा. चंद्रगुप्त द्वितीय ने इस विजय की स्मृति में व्यास नदी के समीप स्थित विष्णुपद नामक स्थान पर लौह स्तंभ (विष्णु ध्वज) की स्थापना की. कालांतर में इस लौह स्तंभ आनंगपाल अथवा फिरोज शाह तुगलक द्वारा अपने मूल स्थान से दिल्ली में स्थानांतरित किया गया.

4. पूर्वीं प्रदेशों पर विजय

महरौली स्तंभ लेख से चंद्रगुप्त द्वितीय के द्वारा पूर्वी प्रदेशों पर विजय के विषय में पता चलता है. ऐसा प्रतीत होता है कि रामगुप्त के शासन काल में उसकी दुर्लभता का लाभ उठाकर समुद्रगुप्त द्वारा पराजित बंगाल और अन्य पूर्वी प्रदेशों के शासकों ने एक संघ बना लिया था. चंद्रगुप्त द्वितीय ने इसी संघ को परास्त किया था. इस प्रकार इस विजय से संपूर्ण पूर्वी प्रदेश पर गुप्तों का आधिपत्य हो गया तथा ताम्रलिप्ति का महत्वपूर्ण बंदरगाह भी गुप्तों के अधीन हो गया.

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5. दक्षिणापत से संबंध

महरौली स्तंभ लेख में कहा गया कि चंद्र के प्रताप से दक्षिणी सागर सुगंधित हो उठा. इस आधार पर कुछ इतिहासकारों का विचार है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने दक्षिणापथ के राजाओं को भी परास्त किया था. किंतु इस मत को स्वीकार करना कठिन है क्योंकि अन्य स्रोतों से इनकी पुष्टि नहीं होती. चंद्रगुप्त के राज्य की सीमा अरब सागर और बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत थे. अतः यह संभव कि महारौली स्तंभ इसी की ओर संकेत करता हो.

6. अश्वमेध यज्ञ

काशी के निकट स्थित नगवा नामक स्थान से एक अश्व की मूर्ति प्राप्त हुई है. इस पर चन्द्रगु: उत्कीर्ण है. इस आधार पर कुछ इतिहासकारों का विचार है कि चंद्रगुप्त द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान करके अपने विजयों का उपरांत किया था, परंतु घोड़े की मूर्ति पर उत्कीर्ण शब्द का पाठ और उस नाम का चंद्रगुप्त द्वितीय से समीकरण संदिग्ध है.

7. साम्राज्य विस्तार

अपने विजयों के परिणामस्वरुप चंद्रगुप्त द्वितीय ने एक विशाल गुप्त साम्राज्य की स्थापना की. उसका राज्य पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तलहटी से दक्षिण में नर्मदा नदी तक विस्तृत था.

चन्द्रगुप्त द्वितीय की उपलब्धियों

मूल्यांकन

चंद्रगुप्त द्वितीय की गिनती प्राचीन भारत की महानतम शासकों में की जाती है. वह एक कुशल योद्धा और महत्वकांक्षी शासक था तथा अपने विजयों के द्वारा एक विशाल गुप्त साम्राज्य की स्थापना करने में सफल रहा. आर्यवर्त को एक राजनीतिक सूत्र में पिरोने का जो कार्य समुद्रगुप्त ने प्रारंभ किया था, उसे उसके महान पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय ने पूरा कर दिखाया. चंद्रगुप्त के दिग्विजय ने उत्तर भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बांधकर राष्ट्र को केवल राजनीति एकता प्रदान नहीं की, बल्कि आर्थिक समृद्धि के द्वार खोल दिए. गुजरात और काठियावाड़ को गुप्त साम्राज्य में मिला दिए जाने के कारण वहां के प्रसिद्ध बंदरगाहों से होने वाले आय से गुप्त साम्राज्य को समृद्ध करने लगी. इस प्रकार चंद्रगुप्त द्वितीय ने पश्चिमी भारत से विदेशी सत्ता को समाप्त करके भारत को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 

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