चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियों का वर्णन करें

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

घटोत्कच की मृत्यु के बाद उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम शासक बना. गुप्त अभिलेख से यह पता चलता है कि चंद्रगुप्त प्रथम ही गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था. उसकी उपाधि महाराजाधिराज की थी. यह सार्वभौमिक उपाधि इस बात का प्रमाण है कि चंद्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश का प्रथम शक्तिशाली और स्वतंत्र राजा हुआ. उसने अपने प्रयासों से गुप्त राजशक्ति के विकास का द्वारा उन्मुक्त कर अपने उत्तराधिकारी और अपने पुत्र समुद्रगुप्त के लिए साम्राज्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया.  लेकिन दुर्भाग्यवश चंद्रगुप्त प्रथम का कोई व्यक्तिगत अभिलेख या प्रशस्ति उपलब्ध नहीं है जिसके द्वारा उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त किया जा सके. यही कारण उनकी उपलब्धियों और तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं के विषय में बहुत ही कम जानकारियां उपलब्ध है.

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

1. नवीन सम्वत की स्थापना करना

चंद्रगुप्त प्रथम के समय की सबसे प्रमुख घटना राज्यारोहण के समय उसके द्वारा एक नवीन सम्वत की स्थापना करना था जो कि गुप्त सम्वत के नाम से जाना जाता है. चंद्रगुप्त ने इस सम्वत की स्थापना 319-20 ई. में की थी.

2. चंद्रगुप्त के शासनकाल

चंद्रगुप्त के शासनकाल की 2 मुहरें (नालंदा मुहर और  गया मुहर) मिली है. ये मुहरें क्रमशः 5 गुप्त सम्वत और 9 गुप्त सम्वत की है. इन मुहरों के आधार पर यह कहा जाता है कि समुद्रगुप्त 324 ई. में शासन कर रहा था. अतः चंद्रगुप्त प्रथम ने 324 ई. तक ही राज्य किया होगा. यद्यपि कुछ विद्वानों ने इन मोहरों की प्रमाणिकता पर संदेह व्यक्त किया है और उन्होंने चंद्रगुप्त प्रथम के शासनकाल 335 ई. तक माना है. परंतु इन के बारे में कोई सटीक प्रमाण नहीं होने के कारण ऐसा मानना तर्कसंगत नहीं है. अतः चंद्रगुप्त प्रथम का शासन काल 324 ई.  तक ही माना जाता है.

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

3. वैवाहिक संबंध

चंद्रगुप्त के शासनकाल के सबसे प्रमुख घटना उसका लिच्छवी राजकुमारी के साथ विवाह होना था. इस विवाह की पुष्टि प्रयाग प्रशस्ति से होती है जिसमें समुद्रगुप्त को महादेवी कुमार देवी के गर्भ से उत्पन्न तथा लिच्छवि दौहित्र अर्थात लिच्छिवियों का नाती कहा गया है. चंद्रगुप्त प्रथम और कुमार देवी के इस विवाह का राजनीतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है. विवाह के परिणामस्वरुप ही चंद्रगुप्त प्रथम सम्राट बन सका तथा महाराजाधिराज की उपाधि धारण करने में सफल हुआ. किंतु एलान नामक विद्वान का विचार है कि इस विवाह का वास्तविक महत्व वस्तुतः सामाजिक है. उसके अनुसार लिच्छवि रक्त पर समुद्रगुप्त के घमंड करने के कारण लिच्छवियों की कुलीनता थी. परंतु एलन के इस निष्कर्ष को मनाना कठिन है क्योंकि लिच्छवि किसी उच्च जाति के नहीं थे. इसके विपरीत राजनीतिक शक्ति के रूप में लिच्छवियों की महत्ता महात्मा बुद्ध के समय से ही चली आ रही थी. अतः इस कारण समुद्रगुप्त ने प्रयाग प्रशस्ति में लिखी हुई लिच्छवि-दौहित्र कहलाने में खुद को गर्व अनुभव किया होगा. 

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

चंद्रगुप्त प्रथम के शासनकाल में गुप्तों की शक्ति और वैभव की जो असीमित वृद्धि हुई, उसमें इस विवाह का भी प्रमुख योगदान था. डॉ. राय का विचार है कि कुमार देवी के समय में लिच्छवियों के राज्य का गणतंत्रात्मक संगठन बहुत कुछ विघटित हो गया था और उसके स्थान पर उसने स्वतंत्र राजतंत्रात्मक स्वरूप धारण कर लिया था. यही कारण है कि राजकन्या कुमार देवी पैतृक आधार पर लिच्छवि राज्य की स्वामिनी बन गई तथा शादी के बाद लिच्छवियों का संपूर्ण अधिकार क्षेत्र चंद्रगुप्त प्रथम का हो गया. डॉ. अल्तेकर का विचार है कि लिच्छवि राज्य के गुप्त साम्राज्य में विलीन हो जाने पर भी गुप्त शासन पर लिच्छवियों का प्रभाव कुछ समय तक छाया रहा. संभवत: इसी कारण राजा-रानी प्रकार की मुद्राएं प्रचलित की गई होगी. इन मुद्राओं के आधार पर कुछ विद्वानों का विचार है कि संभवत: कुछ समय तक चंद्रगुप्त प्रथम और कुमार देवी ने संयुक्त रूप से शासन किया होगा.

4. सिक्के 

चंद्रगुप्त प्रथम और कुमार देवी के इस विवाह की जानकारी विशेष प्रकार के स्वर्ण मुद्राओं से होती हैं. इन मुद्राओं को लिच्छवी-प्रकार, विवाह-प्रकार अथवा राजा-रानी प्रकार की मुद्राएं कहा जाता है. इस प्रकार की अब तक 25 मुद्राएं प्राप्त हुई है. इन मुद्राओं के मुख्य भाग पर चंद्रगुप्त प्रथम एवं उसकी रानी कुमार देवी का चित्र नाम सहित उत्कीर्ण है. इन मुद्राओं के पृष्ठ भाग पर धराशाई सिंह अथवा सिहासन पर पीठ पर सुभासीन देवी की आकृति उत्कीर्ण है तथा इसी ओर लिच्छवय: लेख भी प्राप्त है. 

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

5. साम्राज्य विस्तार

चंद्रगुप्त प्रथम ही गुप्त वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था. चंद्रगुप्त प्रथम ने सर्वप्रथम गुप्त साम्राज्य का विस्तार करने का प्रयत्न किया. कुमार देवी से विवाह करने के कारण उसे लिच्छवियों के वैशाली राज्य उसे प्राप्त हो गया. पुराणों और प्रयाग प्रशस्ति से चंद्रगुप्त प्रथम के राज्य विस्तार के विषय में प्रकाश पड़ता है.  इन स्रोतों से यह ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त का राज्य पश्चिम में प्रयाग जनपद से लेकर पूर्व में मगध अथवा बंगाल के कुछ भागों तक व दक्षिण में मध्यप्रदेश के दक्षिण पूर्वी भागों तक विस्तृत था.

चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियाँ

6. उत्तराधिकारी 

चंद्रगुप्त प्रथम की मृत्यु के बाद उसका पुत्र समुद्रगुप्त शासक बना. समुद्रगुप्त एक महान शासक और योद्धा हुए. उसने अपने सैन्य अभियानों के द्वारा एक विशाल और शक्तशाली गुप्त साम्राज्य की स्थापना की. उसकी विजयों और उपलब्धियों के कारण उसे भारत का नेपोलियन भी कहा जाता है.

इन्हें भी पढ़ें:

Note:- इतिहास से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें. आपके प्रश्नों के उत्तर यथासंभव उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.

अगर आपको हमारे वेबसाइट से कोई फायदा पहुँच रहा हो तो कृपया कमेंट और अपने दोस्तों को शेयर करके हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि हम और अधिक आपके लिए काम कर सकें.  

धन्यवाद.

1 thought on “चन्द्रगुप्त प्रथम की जीवन तथा उपलब्धियों का वर्णन करें”

Leave a Comment

Telegram
WhatsApp
FbMessenger