चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था का वर्णन करें

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था का वर्णन

मौर्यकाल में भारतीय इतिहास में पहली बार एक विशाल और शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना हुई. मौर्यों की शासन प्रणाली  विशाल मौर्या साम्राज्य को एकसूत्र में बंधे रखने में बहुत ही सफल सिद्ध हुई. मौर्यों की शासन व्यवस्था के बारे में कौटिल्य के अर्थशास्त्र, अशोक के शिलालेख, मैगस्थनीज के इंडिका और बहुत से यूनानी रचनाओं में विस्तृत उल्लेख मिलता है. चन्द्रगुप्त मौर्या से अपने गुरु चाणक्य की मदद से मौर्या शासन व्यवस्था की स्थापना की. 

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था

1. केंद्रीय प्रशासन

केंद्रीय प्रशासन में मुख्य रूप से तीन भाग होते थे. इसमें राजा, मंत्री परिषद तथा विभागीय व्यवस्था थे. राजा शासन का सर्वोच्च होता था. राजा खास गुणों से संपन्न होना चाहिए.  अर्थशास्त्र में चाणक्य ने लिखा है “राजा का जो शील होता वही प्रजा का भी होता है. यदि राजा परिश्रमी और उन्नतशील हो तो प्रजा भी उन्नतशील हो जाती है. राजा दुर्व्यसनी हो तो प्रजा भी वैसे ही हो जाती है.” अतः चाणक्य ने इस बात पर जोर दिया कि किसी साम्राज्य के राजा में दैवीय बुद्धि, शक्ति, दृढ इच्छाशक्ति, फैसले लेने की क्षमता जैसे गुण होने चाहिए। राजा को अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त हुए रहना चाहिए. मौर्य काल में राज्य की संपूर्ण शक्ति राजा के हाथ में ही थी, लेकिन मंत्रिपरिषद और परंपराओं के द्वारा राजा को अंकुश रखा जाता था ताकि राजा अपनी मनमानी ना कर पाए. राजा के मुख्य रूप से तीन कर्तव्य होते थे शासन संबंधी, न्याय संबंधी और सैन्य व्यवस्था. राजा स्वयं अपने अधिकारियों की नियुक्ति करता था. देश की सुरक्षा संबंधी मामलों में मामलों को खुद ही देखता था. न्यायाधीश के रूप में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.  इसके साथ-साथ सैन्य संचालन स्वयं ही करता था. राजा की दिनचर्य कठोर होती थी. वह हमेशा अपने प्रजा के हित में काम करते रहता था. अपनी सुरक्षा का भी हमेशा ध्यान रखता था. वह हमेशा अपने शयनकक्ष बदलते रहता था. राजा की सेवक-सेविका राजा के भोजन में जहर ना दे दे इन बातों की पूरी निगरानी की जाती थी. राज्य में विद्रोह ना हो इस बात का खास ध्यान रखा जाता था. 

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था

मौर्य साम्राज्य अत्यंत विशाल होने के कारण अकेले राजा इनका संचालन नहीं कर सकता था. अत: उसने अपनी मदद के लिए मंत्री परिषद का गठन किया. इसमें पर्याप्त संख्या में सदस्यों की नियुक्ति की जाती थी. इन सदस्यों में बुद्धिमान, इमानदारी, स्वामीभक्त, जैसे गुण होने अनिवार्य होते थे. चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्रिपरिषद में सामान्यत: 12 से 20 सदस्य होते थे. आवश्यकता अनुसार मंत्रियों की संख्या तय की जाती थी. इन मंत्रिपरिषद के सदस्यों का काम राजा को विषम परिस्थितियों में सलाह देना होता था. लेकिन राजा मंत्रिपरिषद के सदस्यों की सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं थे. मंत्री परिषद के ज्यादातर कार्यों को गुप्त रखा जाता था. इसके अलावा मंत्रिपरिषद और राजा के द्वारा लिए गए द्वारा निर्णयों के कार्यों को करने के लिए अलग-अलग विभागों की व्यवस्था की जाती थी.इन अलग-अलग विभागों का संचालन करने के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी. विभागों में भी उपविभाग हुआ करते थे. इनमें अधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी.

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2. प्रांतीय प्रशासन

मौर्य साम्राज्य अत्यंत विशाल होने के कारण राजधानी से ही संपूर्ण देश को संचालित करना असंभव था. अत: प्रशासन ने देश के अन्य हिस्सों को संचालन करने के लिए प्रांतीय शासन व्यवस्था भी लागू किया। मौर्य शासकों में अपने साम्राज्य को 6 प्रांतों में विभक्त किया. इन प्रांतों को चक्र कहा जाता था. इन चक्रों का संचालन करने के लिए राजवंश से ही लोगों का चुनाव किया जाता था. इन चक्रों पर राजा का ही पूर्ण नियंत्रण रहता था. मौर्य काल में प्रांतीय प्रशासन में ग्राम प्रशासन सबसे छोटी इकाई होती थी. इसका अधिकारी ग्रामिक कहलाता था. उनका निर्वाचन गांव वासियों के द्वारा ही किया जाता था. प्रांतीय प्रशासन का अन्य इकाई नगर प्रशासन होता था. नगर प्रशासन का उच्च अधिकारी को नागरिक कहा जाता था. मौर्य काल में नगर व्यवस्था अत्यंत सुव्यवस्थित थी.इसके द्वारा हर प्रकार की सुविधाएं आदि का देख-रेख किया जाता था.

3. न्याय प्रशासन

मौर्य साम्राज्य की न्याय प्रशासन अत्यंत सुव्यवस्थित एवं उच्च कोटि की थी. न्याय के लिए अनेक न्यायालय होते थे. इसके सबसे ऊपर राजा का न्यायालय होता था तथा उनके फैसले अंतिम एवं सर्वमान्य होते थे. न्यायालय का सबसे छोटी इकाई को ग्रामिक कहा जाता था. ग्रामिक, ग्राम सभा के माध्यम से संचालन होते थे. राजा का न्यायालय अपने नीचे के सभी न्यायालय के निर्णय उनको बदल सकता था. ग्राम सभा एवं राजा के न्यायालय के अलावा बाकी सभी न्यायालय दो प्रकार के होते थे-धर्मीस्थीय एवं कंटकशोधन न्यायालय. धर्मीस्थीय न्यायालय में तीन धर्मस्थ होते थे जिनको धर्म का पूर्ण ज्ञान होता था. ये न्यायालय विवाह-मोक्ष, उत्तराधकार,गृह संबंधि मामले, क्रय-विक्रय, कृषि, ॠण, सड़क, धरोहर, मानहानि, हिंसा आदि के मामलों का निपटारा करता था. कंटकशोधन न्यायालय में फौजीदारी मामलों का निर्णय होता था. इस प्रकार के न्यायालय के अध्यक्ष प्रदेष्टा कहलाते थे. इनकी संख्या तीन होती थी.

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था

मेगास्थनीज और यूनानी लेखकों के साहित्यों से पता चलता है कि मौर्य साम्राज्य का दण्ड व्यवस्था बहुत कठोर थी. चाणक्य के अनुसार अपराधी को उसके अपराध के आधार पर दण्ड मिले, न ज्यादा न कम. छोटे अपराधों के लिए आर्थिक दण्ड तथा गंभीर अपराधों के लिए अंग-भंग और मृत्युदंड थी. कहा जाता है कि इस दंड व्यवस्था के कारण मौर्य साम्राज्य में अपराध बहुत ही कम होती थी. 

4. राजस्व प्रशासन

राजस्व प्रशासन मौर्य साम्राज्य का बहुत ही महत्वपूर्ण भाग थी. किसी भी राज्य को चलाने के लिए धन की अत्यंत जरूरत पड़ती है. अतः मौर्य साम्राज्य के शासकों ने कोष को हमेशा भरने पर ध्यान दिया. मौर्य साम्राज्य में  आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था.आयात और निर्यात कर भी लिया जाता था. इसके अलावा न्यायालय के द्वारा अर्थदंड से भी राज्य को आय मिलती थी. राजकोष की देखभाल के लिए अनेक अधिकारी नियुक्त किए जाते थेमौर्य साम्राज्य में गबन करने वालों के लिए प्राण दंड का नियम निर्धारित था.

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5. गुप्तचर व्यवस्था

मौर्य साम्राज्य की गुप्तचर व्यवस्था अत्यंत ही सुदृढ़ थी. गुप्तचरों  में स्त्री-पुरुष दोनों में होते थे. स्त्रियों में दासी, भिक्षुणी, वैश्या आदि को गुप्तचर के रूप में नियुक्त किया जाता था. इस गुप्तचरों का काम छोटी-छोटी सूचनाओं को भी राजा तक पहुंचाना होता था. गुप्तचरों  के काम पर निगरानी रखने के लिए भी गुप्तचर रखे जाते थे.

6. सैन्य प्रशासन

चंद्रगुप्त मौर्य का सैन्य प्रशासन अत्यंत शक्तिशाली अवश्य संगठित था. इन्हीं शक्तिशाली सैन्य शक्ति के बल पर उन्होंने नंद राजा और सेल्यूकस जैसे शक्तिशाली राजाओं को परास्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने सैन्य सेना को छह भागों में विभक्त किया गया था- पैदल सेना, नौसेना, अश्व सेना, रथ सेना, गज सेना, और सैन्य सामग्रियों को लाने ले जाने वाली सेवा विभाग. चंद्रगुप्त मौर्य की सेना विभिन्न प्रकार के हथियारों से सुसज्जित थी.  इन हथियारों में मुख्य रूप से तलवार, भाला, धनुष-बाण, कटार आदि थे. इसके अलावा सर्वतोभ्रद नामक एक ऐसा यंत्र था जिसके जिसकी मदद से शत्रु सेना पर पत्थरों की वर्षा की जाती थी. उन्होंने अस्त्र-शस्त्र के निर्माण के लिए बहुत से कारखाने कारखानों का निर्माण कर रखा था. सेना का सर्वोच्च अधिकारी सेनापति होता था. राज्य की ओर से सैनिकों को पर्याप्त मात्रा में सुविधाएं उपलब्ध होती थी. सैनिकों को नियमित रूप से वेतन मिलता था तथा घायल सैनिकों के इलाज के लिए पर्याप्त संख्या में वैद्य हमेशा तत्पर रहते थे.

चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन व्यवस्था

7. लोकहित के कार्य

मौर्य साम्राज्य शासक ने जनता की सुख सुविधाओं का भी अत्यधिक ख्याल रखते थे. उन्होंने सिंचाई के लिए उचित व्यवस्था किए थे. इसके अलावा भूमि की उर्वरा शक्ति तथा उपज बढ़ाने की ओर अत्यधिक ध्यान दिए. उन्होंने सड़कों का निर्माण कराया. सड़क के किनारे पेड़ लगवाये. यात्रियों की सुविधा के लिए प्याऊ और धर्मशाला का निर्माण कराया. जगह जगह औषधालयों का निर्माण कराया गया. महामारी रोकने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था उपलब्ध थी. शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य किए. आपातकालीन संकट से निपटने के लिए भी पर्याप्त प्रबंध थे. अग्नि, महामारी बाढ़, से सुरक्षा के इंतजाम थे. अनाथ बच्चों वृद्ध और असहाय लोगों की देखरेख भी साम्राज्य के द्वारा ही की जाती थी.

इन बातों से स्पष्ट है कि विशाल मौर्या साम्राज्य  की शासन व्यवस्था अत्यंत सुदृढ़ थी. इस प्रभाशाली और सुसंगठित शासन व्यवस्था की रुपरेखा चन्द्रगुप्त मौर्या से अपने प्रधानमंत्री चाणक्य की मदद से तैयार की. मौर्यकालीन शासन व्यवस्था की प्रशंसा यूनानी तथा देश- विदेश के लेखकों में अपनी रचनाओं में की है. 

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