चालुक्यों की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन करें

चालुक्यों की सांस्कृतिक उपलब्धियां

चालुक्य वंश के शासकों ने अपने पराक्रम और योग्यता के बल पर एक विशाल चालुक्य साम्राज्य का निर्माण किया. उन्होंने लगभग 200 वर्षों तक शासन किया. इस अवधि में उनके कई महान शासक हुए जिन्होंने बहुत सी उपलब्धियां हासिल की. उनका राज्य आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न था. उनके पास अच्छे बंदरगाहों की सुविधाएं भी थी. इसके द्वारा उन्होंने विदेशों से भी व्यापारिक संबंध स्थापित कर रखे थे. उन्होंने न सिर्फ अपने साम्राज्य का विस्तार किया बल्कि सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दिए. 

चालुक्यों की सांस्कृतिक

चालुक्य शासक हिंदु धर्म के अनुयायी थे. उन्होंने अपने वैदिक रीति-रिवाजों के अनुसार कई यज्ञ कराए. उन्होंने अपने शासनकाल के दौरान बहुत से धार्मिक ग्रंथों की रचना तथा संलग्न की. पुलकेशी द्वितीय और बहुत से चालुक्य शासकों ने अश्वमेध और ताड्मेय यज्ञ कराए. उन्होंने पौराणिक हिंदु कथाओं के अनुसार बहुत से विष्णु तथा शिव मंदिरों का निर्माण कराए. इससे दक्षिण भारत में हिंदु धर्म की लोकप्रियता में काफी वृद्धि हुई. चालुक्य शासक धार्मिक दृष्टिकोण से काफी उदार थे. बहुत से चालुक्य शासकों जैन धर्मांवलंबियों की काफी मदद की. ऐहोल अभिलेख की रचना रविकृति जैन ने की थी. इसके लिए पुलकेशी द्वितीय ने उसे काफी सम्मान दिया. विजयादित्य और विक्रमादित्य ने भी जैन विद्वानों को उपहार स्वरूप कई गांव प्रदान किए. उस समय दक्षिण भारत में जैन धर्म काफी लोकप्रिय हुआ करता था. अतः जैन धर्मांवलंबियों की धार्मिक भावनाओं का ख्याल रखते हुए चालुक्य शासकों ने जैन धर्म प्रति उदार नीति अपनाई. उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति भी उदार नीति अपनाई. ह्वेनसांग के विवरण के अनुसार चालुक्योंके शासनकाल में बौद्ध-विहारों की संख्या 100 से अधिक तथा बौद्ध-भिक्षुओं की संख्या पांच हजार थी. इसके अतिरिक्त ह्वेनसांग ने चालुक्य राजधानी के अंदर तथा बाहर पांच अशोक स्तुपों का जिक्र किया. इसके अलावा बम्बई के थाना जिले में पारसियों को बसने की अनुमति देना और उनको अपने धर्म की पालन करने की स्वतंत्रता देना चालुक्य शासकों की धार्मिक उदारता को प्रदर्शित करता है.

चालुक्यों की सांस्कृतिक

चालुक्यों के शासनकाल में कला को भी बहुत प्रोत्साहन मिला. इनके शासनकाल में ललित कलाओं का काफी विकास हुआ. अजंता और एलोरा की गुफाएं चालुक्य शासनकाल में भी थी. इन गुफाओं में बने कुछ चित्र चालुक्यों के शासनकाल के प्रतीत होते हैं. एक चित्र में पुलकेशी द्वितीय के दरबार में इरानी राजदूत के स्वागत के दृश्य चित्रित किया गया है. चालुक्यों के शासनकाल में चट्टानों को काटकर कई मंदिरों का भी निर्माण किया गया. चालुक्यों ने अनेक गुहा मंदिरों तथा चैत्यहालों का निर्माण करवाया था. 634 ई. में मेगुति का शिव मंदिर बनाया गया. इस मंदिर में रविकृति के द्वारा लिखी गई पुलकेशी द्वितीय का अभिलेख है. ऐहोल के विष्णु मंदिर से चालुक्य कला के शानदार नमूनों का पता चलता है. बीजापुर में विजयादित्य ने एक शिव मंदिर का निर्माण कराया जिसे आज संगमेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है.  विजयादित्य की बहन ने लक्ष्मेश्वर नामक स्थान पर एक जैन मंदिर का निर्माण कराया. इसके अलावा उसकी पत्नी ने भी बीजापुर के पट्टदुकल लोकेश्वर मंदिर का निर्माण कराया जिसे विरूपाक्ष मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. विक्रमादित्य ने इसी विरूपाक्ष मंदिर के समीप त्रिलोकेश्वर नामक मंदिर का निर्माण किया. चालुक्य वास्तुकला की मुख्य विशेषता तत्कालीन कलाकारों के द्वारा आर्य एवं द्रविड़ दोनों शैलियों के एक समान विकसित करने का प्रयास था. इनके उदाहरण पापनाथ मंदिर (आर्य शैली) तथा विरूपाक्ष मंदिर (द्रविड़ शैली) हैं. 

चालुक्यों की सांस्कृतिक

इस प्रकार यह स्पष्ट  कि चालुक्य शासक धार्मिक उदारता की नीति पर चलते थे. उन्होंने मंदिरों के निर्माण तथा ललित कलाओं के विकास के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने अपनी संस्कृति की रक्षा और विकास के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया.

इन्हें भी पढ़ें:

Note:- इतिहास से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें. आपके प्रश्नों के उत्तर उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.

अगर आपको हमारे वेबसाइट से कोई फायदा पहुँच रहा हो तो कृपया कमेंट और अपने दोस्तों को शेयर करके हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि हम और अधिक आपके लिए काम कर सकें.  

धन्यवाद.

1 thought on “चालुक्यों की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन करें”

Leave a Comment

Telegram
WhatsApp
FbMessenger