चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों का वर्णन करें

चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95)

चीन के इतिहास में अफीम युद्धों के बाद चीन- जापान यद्ध चीन के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित हुआ. इस युद्ध का मुख्य वजह जापान में साम्राज्यवादी भावना का विकास होना था. जापान से बढ़ते साम्राज्यवादी कदम के कारण चीन के हितों पर खतरा मंडराने लगा था. ऐसे में चीन और जापान के बीच युद्ध की शुरुआत हुई. इस युद्ध में चीन को करारी हार का सामना करना पड़ा.

चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों

प्रथम चीन- जापान युद्ध के प्रमुख कारण 

1. कोरिया की स्थिति

कोरिया की भौगोलिक स्थिति हमेशा चीन और जापान को अपनों ओर आकर्षित करती थी. कोरिया प्राचीन काल से ही जापान को विजेता राष्ट्र के रूप में देखता था और हर साल उसे उपहार प्रदान  करता था. दूसरी और चेन खुद को कोरिया का करद राज्य समझता था. कोरिया की जनता के मन में चीन के प्रति प्रेम और सद्भाव की भावना थी. वहीँ दूसरी ओर जापान के प्रति नफरत और घृणा की भावना थी. इसका वजह हिडेयोशी  के द्वारा कोरिया में बर्बर आक्रमण करना था. यूरोप के अन्य  प्रभाव को कोरिया तक पहुंचने में चीन और जापान दोनों ही बाधक थे. अत: कोरिया के लिए दोनों देश महत्वपूर्ण थे. लेकिन चीन और जापान दोनों ही कोरिया पर अपना-अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश में लगे हुए थे. ऐसे में दोनों के हितों में टकराव होने  लगे थे. 
चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों

2. जापानी हस्तक्षेप

जापान के द्वारा कोरिया में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करने के दो काराण थे- आर्थिक और राजनीतिक. मेइजी पुनर्स्थापना के बाद जापान में तेजी से औद्योगिक विस्तार हुआ. इसके लिए जापान को कच्चे माल और बाजार की आवश्यकता थी. इन दोनों आवश्यकताओं की पूर्ती कोरिया आसानी से कर सकता था. इधर जापान की जनसँख्या भी काफी तेजी से बढ़ती जा रही थी. अत: उनकी भोजन जरूरतों को कोरिया आसानी से कर सकता था क्योंकि कोरिया में बड़ी मात्रा में चावल की उत्पादन होती थी. राजनीतिक रूप से भी जापान के लिए कोरिया का बहुत ही बड़ा महत्व था. रूस की सीमायें कोरिया से मिलती थी. ऐसे में रूस आसानी से अपना प्रभाव कोरिया पर बढ़ा सकता था. ऐसे में जापान के लिए रूस बहुत बड़ा सरदर्द बन सकता था. इसी बीच रूस ने 1868 ई. में उसरी नदी पूर्वी भाग पर अपना अधिकार कर लिया और कोरिया के सीमा के पास एक बंदरगाह स्थापित कर ली. इधर रूस के बढ़ते प्रभाव को देखकर उसे रोकने के लिए इंग्लॅण्ड ने भी दक्षिण कोरिया के हैमिल्टन बंदरगाह पर अपना अधिकार कर लिया. कोरिया के निकट दूसरी महाशक्तियों के बढ़ते प्रभाव को देखकर जापान सशंकित हो उठा. कोरिया के निकट अन्य देशों के प्रभाव को रोकने के लिए वह युद्ध करने के लिए भी तैयार हो गया.  
चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों

3. जापान का कोरिया की स्वतंत्रता को मान्यता देना

1875 ई. में एक जापानी जहाज को कोरिया के निकट गोलीबारी करके नष्ट कर दिया गया. युद्ध की संभावनाओं को देखर जापान से एक प्रतिनिधि मॉडल 1876 ई. में वार्ता के लिए कोरिया पंहुचा. जापान के दबाव में आकर कोरिया को उसके साथ  करनी पड़ी. इस संधि के परिणामस्वरूप व्यापार करने के लिए जापान के लिए कोरिया के बंदरगाह खुल गए. जापान को राज्यक्षेत्रातीत अधिकार के साथ-साथ बहुत से व्यापारिक अधिकार प्राप्त हो गए. जापान से अपना दूतावास सियोल में स्थापित कर लिया. जापान का देखा-देखी ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी और इटली ने भी कोरिया से संधि कर ली. ऐसे में चीन का कोरिया में एकाकीपन ख़त्म हो गया.  जापान के द्वारा उठाये कदम के कारण कोरिया से चीन का प्रभाव ख़त्म सा हो गया और चीन जापान को अपना कट्टर प्रतिद्वंदी बना दिया. 
चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों

4. कोरिया में आंतरिक विद्रोह

1894 ई. में कोरिया में तोंगहाक विद्रोह हुआ. इस समय तक कोरिया के दो दल हुआ करते थे- एक चीन समर्थक और दूसरा जापान समर्थक. चीन समर्थक दल ने कैथोलिक धर्म प्रचारकों के विरोध में विद्रोह कर दिया. ये दल बुद्ध, काफूसियस और लाओजे के सिद्धांतों का प्रचार करती थी. इस समय कोरिया के भ्रष्ट सरकार से तंग आकर कोरिया की जनता ने भी विद्रोह में उनका साथ दिया. कोरिया की सरकार विद्रोह को दबाने में नाकाम रही और उसने चीन से मदद मांगी. चीन ने 1,500 सैनिकों की एक टुकड़ी भेज दी. इसकी खबर पाकर जापान ने कोरिया में चीन के प्रभाव बढ़ने के डर से 8,000 सैनिकों की टुकड़ी भेज दी. लेकिन जब तक दोनों की सेनाएं कोरिया पहुँचती तब तक विद्रोह शांत हो चुका था. इसी बीच जापान ने चीन के समक्ष कोरिया की सम्मिलित सुधर का प्रस्ताव रखा. लेकिन चीन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. चीन के द्वारा प्रस्ताव के इंकार करने पर  जापान नाराज हो गया और युद्ध करने का बहाना खोजने लगा.   
चीन और जापान के प्रथम युद्ध (1894-95) के कारणों

5. तात्कालिक कारण

25 जुलाई 1894 ई. को चीनी नौसेना के लिए रसद ले जा रही जहाज को जापानी नौसेना के बेड़े  ने नष्ट कर दिया. इससे क्रुद्ध होकर चीन ने 1 अगस्त 1894 ई. को जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी. 
इन बातों से स्पष्ट होता है कि चीन और जापान के बीच युद्ध कोरिया में अपना प्रभाव को स्थापित करने को लेकर था. इस युद्ध में चीन को हार का सामना करना पड़ा और युद्ध रोकने के लिए दोनों के बीच 17 अप्रैल 1895 ई. को शिमोन्स्की की संधि हुई. 

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