चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति क्या थी?

चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति

चीन और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए दो युद्ध हुए. इन युद्धों को प्रथम और द्वितीय अफीम युद्ध के नाम से जाना जाता है. इन युद्धों के बाद चीन को अंग्रेजों के साथ नॉन किन की संधि (1842 ई.) तथा तिंतसीन की संधि (1854 ई.) करनी पड़ी. इन संधियों के बाद अंग्रेजों को चीन में व्यापार करने के लिए असीमित अधिकार प्राप्त हो गए. इसके बाद इंग्लैंड ने चीन के व्यापारिक बंदरगाह पूरी तरह अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया.

चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति

चीन में इंग्लैंड को इस तरह के अधिकार मिलते देख अमेरिका, जापान, फ्रांस, रूस तथा अन्य यूरोपीय देशों के कान खड़े हो गए. अब वे भी चीन में इस तरह के व्यापारी के अधिकार हासिल करने की कोशिश करने लगे. इस के बाद रूस, जापान तथा अन्य यूरोपीय देश चीन के साथ बहुत से व्यापारिक संधि स्थापित कर लिए. इस वक्त तक अमेरिका स्पेन के गृहयुद्ध में व्यस्त था. जैसे ही अमेरिका स्पेन के गृहयुद्ध में विजय हुआ, उसे प्रशांत महासागर के फिलिपाईन द्वीप समूह पर पर अधिकार प्राप्त कर लिए. इस समय अमेरिका में औद्योगिकरण कर परिणामस्वरूप उसे कच्चे माल की प्राप्ति तथा उनसे निर्मित उत्पादों के बेचने के लिए बाजारों की काफी आवश्यकता महसूस होने लगी थी. ऐसे में उसे अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए चीन एक अच्छे विकल्प के रूप में नजर आया. अतः अमेरिका भी रूस, जापान तथा अन्य यूरोपीय देशों की भांति चीन में अपना एकाधिकार स्थापित करने का मौका खोजने लगा. अतः अमेरिका ने अपने  उद्देश्य की पूर्ति के लिए 6 सितंबर 1899 ई. को जर्मनी, रूस, फ्रांस, इंग्लैंड, इटली और जापान को उन्मुक्त द्वार नीति में सहमति प्राप्त करने हेतु एक प्रस्ताव भेजा.

चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति

इस प्रस्ताव में मुख्य रूप से निम्नलिखित बातों का जिक्र था

1. चीन के बंदरगाहों में संधियों के माध्यम से जो व्यापारिक अधिकार विदेशी राज्यों को प्राप्त है, वह यथावत बने रहेंगे चाहे अब वह बंदरगाह किसी भी विदेशी राज्य के पट्टे पर हो या उसके प्रभाव क्षेत्र में हो.

2. अपने पट्टे पर लिए हुए अर्थात प्रभाव क्षेत्र के प्रदेश में जो आयात और निर्यात की सीमा शुल्क दरें निर्धारित है, उनका समादर किया जाए.

3. पट्टे पर लिए बंदरगाहों में आने वाले विदेशी जहाजों से अपने जहाजों की अपेक्षा कोई देश अधिक बंदरगाह खर्च नहीं लेगा.

4. सभी देशों के लिए तट कर की दरें समान होगी. इस तट कर की वसूली चीनी सरकार करेगी.

5. अपने क्षेत्र की रेलों पर अन्य विदेशी व्यापारियों के माल पर उससे अधिक किराया नहीं लेगा जो कि वह अपने देश के नागरिकों से लेता है.

चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति

अमेरिका के द्वारा उन्मुक्त द्वार की नीतियों के लिए लाई गई प्रस्ताव के सभी बिंदुओं पर ध्यान देने से ये बात स्पष्ट हो जाती है कि ये नीति व्यवसायिक स्वार्थ की नीति थी. इसमें कहीं भी चीन की क्षेत्रीय अखंडता एवं राजनीतिक स्वतंत्रता की बात की चर्चा नहीं की गई थी. वास्तव में इस नीति के पीछे का मुख्य उद्देश्य केवल इतना ही था कि अमेरिका को भी चीन में वो व्यापारिक सुविधा मिल जाए जो अन्य देश उठा रहे हैं. अमेरिका भी चीन में अपने व्यापारिक हित के लिए रेल मार्गों का निर्माण तथा अन्य व्यापारिक क्षेत्र में एकाधिकार प्राप्त करना था. 

अमेरिका का चलाया गया दांव निशाने पर लगा. उसके इस प्रस्ताव को ब्रिटेन इस शर्त पर मान लिया कि यदि अन्य देश भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लेते हैं तो वह इस भी इसे मान लेगा. फ्रांस, इटली, जापान तथा जर्मनी ने अमेरिका के इस प्रस्ताव को मान लिए क्योंकि इसमें उनकी भी हितें जुड़ी हुई थी. केवल रूस ने इस प्रस्ताव पर अनमाना सा रूख अपनाया, पर उनके द्वारा इस्तेमाल की गई भाषा के प्रयोग करने का अंदाज देखकर यह निष्कर्ष  निकाल लिया गया कि रूस ने भी इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इस प्रकार अमेरिका ने उन्मुक्त द्वार की नीति पर यूरोप तथा अन्य शक्तियों की सहमति प्राप्त कर ली और चीन पर अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित कर लिया. इसी के साथ चीन के आर्थिक शोषण में एकाएक वृद्धि होती चली गई और चीन को पतन के कागार पर लाकर खड़ा कर दिया. इसके कारण चीन की जनता में असंतोष की भावना पनपने लगी. चीन के एक वर्ग ने अपने देश की इस स्थिति के लिए मंचू प्रशासन तथा विदेशी शक्तियों को दोषी मानने लगा. 

चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति

इस प्रकार हम देखते हैं कि अमेरिका ने चीन पर अपने प्रभाव को स्थापित करने के लिए एक नीति का अनुपालन किया. इस नीति को ही इतिहास में उन्मुक्त द्वारा की नीति अथवा खुले द्वार की नीति के नाम से जाना जाता है. इसी नीति के परिणामस्वरूप ही चीन में लूट-खसोट की युग की शुरुआत हुई और चीन का आर्थिक शोषण प्रारंभ हो गया. अतः यह बात स्पष्ट है कि अमेरिका के द्वारा लाई गई उन्मुक्त द्वार की नीति चीन के हित में ना होकर यह केवल अमेरिका के हितों लिए ही थी.

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इन्हें भी पढ़ें:-

  1. नानकिंग की संधि की प्रावधानों का उल्लेख करें
  2. तिन्तसीन की संधि के प्रावधानों का वर्णन करें 
  3. ताइपिंग विद्रोह के असफलता के क्या कारण हैं?

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2 thoughts on “चीन में उन्मुक्त द्वार (खुले द्वार) की नीति क्या थी?”

  1. उन्मुक्त द्वार की नीति बनाने में किस की मुख्य भूमिका थी

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