चोल प्रशासन व्यवस्था का वर्णन करें

चोल प्रशासनिक व्यवस्था (Chola Administrative System)

दक्षिण भारत के इतिहास में चोल वंश का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है. चोल प्रशासन व्यवस्था ने अपने साम्राज्य को काफी दृढ़ता प्रदान की. चोलों की पहचान न केवल बड़ी-बड़ी विजयों के द्वारा, वरन उनके कुशल शासन प्रबंध से भी जाना जाता है. चोलों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली पक्ष उनकी शासन व्यवस्था थी. उन्होंने अपनी शासन व्यवस्था के कारण अपने साम्राज्य को सुदृढ़ किया. 

चोल प्रशासन व्यवस्था

चोल वंश के प्रशासनिक व्यवस्था 

1. केंद्रीय शासन

चोलों की शासन व्यवस्था राजतंत्रीय था. वे एक विशाल साम्राज्य पर शासन करते थे. चोल साम्राज्य लगभग संपूर्ण दक्षिण भारत पर फैला हुआ था. चोल साम्राज्य के अत्यंत विस्तृत होने के कारण चोल शासकों का अत्यधिक प्रभुत्व और सम्मान था. चोल शासक अपने सम्मान को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील भी रहते थे. चोल शासकों की एक से अधिक राजधानियां होती थी तथा अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि करने के लिए दान-दक्षिणा भी किया करते थे. दक्षिण भारत के अनेक मंदिरों में भी संबंधित शासक का नाम तथा उनके राजाओं की मूर्तियां स्थापित की गई है.

चोल शासक की मृत्यु होने के बाद उत्तराधिकारी के प्रश्न पर होने वाले संघर्ष को रोकने के लिए राजा अपने ही शासन काल में अपने उत्तराधिकारी घोषित कर देते थे. इससे राजा की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी को लेकर संघर्ष नहीं होती थी. इसके अलावा घोषित उतराधिकारी को शासक बनने से पहले ही अपने साम्राज्य के प्रशासन, राज्य के कार्य के प्रति काफी अनुभव हो जाता था क्योंकि उसे युवराज बनते ही राजा के प्रशासनिक कार्य में हाथ बँटाना होता था. चोल शासक प्रशासन और राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता था. शासक होने के बावजूद उसे क़ानून बनाने का अधिकार नहीं था. वह केवल सार्वजनिक प्रशासन अनियमितताओं और समाजिक सुधार कार्यो में आवश्यकता के अनुसार मौखिक आदेश दे सकता था. चोलों की केन्द्रीय प्रशासन में मंत्रीपरिषद नहीं होती थी. इनके स्थान पर वो कर्मचारियों की मदद से ही शासन करते थे. ये क्रमचारी ही समय-समय पर राजा को परामर्श भी देते थे. राजा इस बात का ध्यान रखते थे कि नौकरशाही स्थानीय संस्थाओं के क्रियाकलापों पर हस्ताक्षेप न कर सके, लेकिन स्वयं इन संस्थाओं के कारोबार की समय-समय पर जांच के द्वारा नियंत्रण रखते थे.चोल साम्राज्य के तत्कालीन अभिलेखों से पता चलता है कि चोल शासक केंद्रीय नियंत्रण और स्थानीय संगठनों के बीच में संतुलन रखते थे. इस वजह से व्यक्तियों और राज्य के बीच कोई विवाद नहीं होता था. इसके अतिरिक्त चोल शासक अपने साम्राज्य की शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियमित रूप से राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा करते रहते थे.

चोल प्रशासन व्यवस्था

2. सेना

चोल साम्राज्य में थल सेना तथा जल सेना दोनों होती थी. राजा इन सेनाओं का प्रधान होता था. चोल की सेना भी विभिन्न रेजिमेंट में संटी हुई थी. प्राप्त अभिलेखों से पता चलता है कि इन रेजिमेंटों की संख्या लगभग 70 थी. इनके नाम पार्थिव शेखर, समरकेसरि, विक्रमसिंह, दानतोंग, तायतोंग आदि रखे गए थे. प्राप्त अभिलेखों के वर्णन से पता चलता है कि चोल साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ उनकी सेना का भी विस्तार होते चला गया. थल सेना में मुख्य रूप से तीन अंग होते थे- हाथियों का कोर, घुड़सवार तथा पैदल सेना. इसके अलावा धनुर्धरों और असिधरों की भी रेजिमेंट होती थी. पूरे साम्राज्य में चोलों की छोटी-छोटी सैन्य छावनियां होती थी. सेनापति के पदों में ब्राह्मणों को रखा जाता था. सेना को समय समय पर युद्धाभ्यास कराया जाता था तथा उनको अनुशासन में रखा जाता था. युद्ध में चोल सेना धर्मयुद्ध के नियमों का प्रायः पालन नहीं करती थी. इस दौरान साधारण जनता, स्त्रियों और बच्चों को भी नुकसान पहुचाया जाता था. स्त्रियों को अपमानित कर अंग-भग भी किए जाते थे. धन के लालच में मंदिरों को भी लूटा और तोड़ा जाता था. चोलों के पास सुसंगठित नौ सेना भी थी. उनकी सेना में बड़ी संख्या में जहाज और नौकाएं थी. उन्होंने समुद्र पार करके कडारम और लंका पर भी विजय प्राप्त की थी.

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3. आर्थिक स्रोत

चोल साम्राज्य की मुख्य आर्थिक स्रोत भूमि कर था. भूमि कर उपज का एक तिहाई (1/3) होता था. इन करों को ग्राम सभा के माध्यम से एकत्र किया जाता था. भूमि कर को नकद या उपज किसी भी रूप में दिया जा सकता था. अकाल, बाढ़ एवं किसी प्रकार के आपदा की स्थिति में कर में छूट प्रदान की जाती थी. भूमि कर के अलावा व्यापारियों, सुनारो तथा बुनकरों पर भी विभिन्न कर लगाए गए थे. इसके अलावा खानों और वन संपदा से भी राज्य को धन प्राप्त होती थी. नदियों, तालाबों तथा बाजारों पर भी कर लगाए जाते थे. करों के मामलों में चोल शासक अत्यंत उदार थे. वे जनता की सामर्थ्य के अनुसार ही कर लेते थे. इन सबके अलावा युद्धों में लूटे गए धन से भी राज्य के राजस्व में वृद्धि होती थी. 

4. सार्वजनिक खर्च

चोल साम्राज्य के आय का एक बड़ा भाग थल तथा जल सेना पर किया जाता था. इसके अलावा सार्वजनिक हितों से संबंधित कार्यों पर भी काफी धन का खर्च होता था. चोल साम्राज्य में सड़कों, पुलों आदि पर भी अत्याधिक खर्च किया जाता था. चोल राजाओं ने बहुत से नहरों, कुओं और तालाबों का निर्माण कराया. उन्होंने नहरों से खेतों तक पानी पहुंचने के लिए भी उचित व्यवस्था की. वे मंदिरों को भी काफी दान देते थे.

चोल प्रशासन व्यवस्था

5. प्रांतीय शासन व्यवस्था

चोल साम्राज्य की सीमाएं काफी विस्तृत थी. अत: राजा के लिए संभव नहीं था कि वह अकेले इतने बड़े साम्राज्य का संचालन कर सके. इसीलिए उन्होंने साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रांतीय शासन व्यवस्था को लागू किया. इसके लिए उन्होंने अपने साम्राज्य को अनेक प्रांतों में विभाजित किया. इन प्रांतों को मंडल कहा जाता था. चोल शासक राजराज के अभिलेख से ज्ञात होता है कि तत्कालीन चोल साम्राज्य आठ मंडलों में बंटा हुआ था. प्रत्येक मण्डल को राजा के द्वारा नियुक्त गवर्नर संचालन करता था. गवर्नर का साथ देने के लिए उनके नीचे अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती थी. गवर्नर की सीधा संपर्क राजा से होता था. वह राजा की आदेश का पालन करते थे. 

6. स्वशासन व्यवस्था

यह चोल साम्राज्य की शासन प्रणाली की सबसे छोटी इकाई होती थी. यह शासन की ही हिस्सा होती थी. ग्राम सभा समितियों के द्वारा संचालित होती थी. इन समितियों के लिए सदस्यों का निर्वाचित किया जाता था. समिति के सदस्य बनने के लिए तय मापदंडों को पूरा करना होता था. इनका चुनाव ग्राम वासियों के द्वारा ही किया जाता था. इन ग्राम सभाओं के अधिकारी जरूरत पड़ने पर राजा से संपर्क कर सकते थे. यदि दो ग्राम सभाओं के बीच किसी प्रकार की मतभेद होती है तो राजा हस्तक्षेप करता था. इन्हीं ग्राम सभाओं की मदद से भूमि कर को जमा कर राजकोष में जमा किया जाता था. 

चोल प्रशासन व्यवस्था

7. न्याय व्यवस्था

चोल प्रशासन की न्याय व्यवस्था अत्यंत उच्च कोटि की थी. मुकदमों का निर्णय करने का अधिकार स्थानीय संस्थाओं को था. यदि इन संस्थाओं के द्वारा मुद्दों का निपटारा नहीं हो पा रहा हो तो अंतिम अपील राजा के पास की जा सकती थी. विभिन्न प्रकार के अपराधों के लिए अलग-अलग दंड निर्धारित की गई थी. व्यभिचार, चोरी, धोखेबाजी, हत्या आदि को गंभीर अपराध माना जाता था. किसी व्यक्ति के द्वारा अपराध हुआ है या नहीं इसकी छानबीन ग्राम सभाओं के द्वारा किया जाता था. जिन मुकदमों का कोई गवाह नहीं होता उनका फैसला दिव्य प्रथा के द्वारा किया जाता था.  किसी भी अपराधी को मृत्युदंड देने से पूर्व राजा की आज्ञा लेना आवश्यक था. 

इन बिंदुओं से स्पष्ट है कि चोल साम्राज्य की शासन प्रणाली अत्यंत सुलझी हुई तथा उच्च कोटि की थी. इन्हीं शासन व्यवस्था के आधार पर विशाल चोल साम्राज्य को सुचारू रूप से चलाया जाता था. 

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