छठी शताब्दी ई. पू. के पूर्व के पौराणिक इतिहास का वर्णन कीजिए

छठी शताब्दी ई. पू. के पूर्व के पौराणिक इतिहास

छठी शताब्दी ई. पू. के पूर्व के इतिहास को जानने के लिए मुख्य साधन पुराण है. इस कारण हम इस समय के इतिहास को पौराणिक इतिहास के नाम से जानते हैं. हमें थोड़ी सहायता रामायण और महाभारत से भी प्राप्त होती है. वेदों से भी हमें कुछ तथ्यों की पुष्टि करने के साधन उपलब्ध हो जाते हैं परंतु इस समय की इतिहास को जानने का मूल स्रोत पुराण ही है. जिस स्थिति में हमें पुराण प्राप्त हुई है उनसे यह अनुमान लगाया गया कि उनकी रचना गुप्त काल से पहले नहीं हुई थी. ऐसी स्थिति में जिस इतिहास को हम पुराणों से जानने का प्रयत्न करते हैं, उनमें से अधिकांश की रचना कम से कम 3000 वर्ष का है. समय-समय पर पुराण का स्वरूप बदलता रहता है. इसके कारण उसका सर्वमान्य स्वरूप कौन सा है यह आज स्पष्ट नहीं है. इसके अतिरिक्त पुराणों में बहुत कुछ ऐसा है जो केवल धार्मिक दृष्टिकोण से लिखा गया है. ऐसी स्थिति में उसके आधार प्राचीन इतिहास को समझना बहुत कठिन है और उसे पूर्णतया विश्वास ने स्वीकार करना संभव नहीं है. परंतु यह मानना भी सही नहीं होगा कि पुराण पूरी तरह गलत है. इनमें बहुत सी बातें सत्य पर आधारित है. संभवत: विभिन्न शासकों द्वारा अपनी वंशावली और अपने इतिहास को सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया था. सूत नामक अधिकारी को राजाओं, देवताओं और ऋषियों की वंशावली को सुरक्षित रखने का दायित्व सौंपा गया था. उन्हीं अधिकारियों और कुछ व्यक्तिगत प्रयासों के द्वारा उस समय के इतिहास को सुरक्षित रखा गया. इन्हीं इतिहासों के संकलन को बाद में पुराणों के रूप में की गई.

छठी शताब्दी ई. पू. के पूर्व के पौराणिक इतिहास

विभिन्न विद्वानों के विचारों और धर्म-ग्रंथों के आधार पर ई पू छठी शताब्दी का इतिहास

1. प्रलय से पूर्व का इतिहास

वायु पुराण के अनुसार आनंद ब्रह्म पिता और संसार का शासक था. आनंद ने वर्ण व्यवस्था स्थापित की. प्रत्येक वर्ण के कर्तव्य निश्चित किए और विवाह की रीति को आरंभ किया. उसका यह नियम शीघ्र नष्ट हो गया, परंतु उसके उत्तराधिकारी मनु स्वयंभू ने इन्हें पुनः स्थापित किया. मनु एक महान शासक था. उसने अपने समस्त शत्रुओं का नष्ट किया और संपूर्ण संसार का स्वामी बन बैठा. उसकी राजधानी सरस्वती नदी के निकट थी. स्वयंभू के दूसरे पुत्र उत्तानपाद का पुत्र ध्रुव था जिसने विष्णु को प्रसन्न करके वरदान प्राप्त किया. इसी वंश में छठा मनु चिक्षाशु था. इसका पुत्र वेन बहुत अत्याचारी शासक सिद्ध हुआ. उसे विद्रोह करके मार दिया गया. उसके पुत्र पृथु का  राज्य अभिषेक किया और उसके नाम पर इस भूमि को पृथ्वी पुकारा गया. पृथु का पांचवा वंशज दक्ष था जिसकी पुत्री का प्रपौत्र मनु वैवस्वत हुआ जिसने प्रलय के अवसर पर मनुष्य जाति की रक्षा की.

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2. प्रलय काल (3100 ई. पू.)

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार मनु वैवस्वत को हाथ धोते समय एक मछली प्राप्त हुई जिसने मनु से सुरक्षा की मांग की. परंतु धीरे-धीरे वह मछली इतनी बड़ी हो गई कि उसे समुद्र में डाल दिया गया. उसी मछली ने वैवस्वत को प्रलय की सूचना दी और अपनी रक्षा करने के लिए उसे एक समुद्री जहाज बनाने की सलाह दी. प्रलय के समय जब संपूर्ण पृथ्वी डूबने लगी तो मनु ने जहाज में आश्रय लेकर अपने प्राण की रक्षा की और मछली उस जहाज को उत्तर के पहाड़ों पर ले गई. मनु उस पहाड़ पर चढ़ गया और पानी के उतर जाने के पश्चात पृथ्वी पर उतरा. इसी मनु को मनुष्य जाति के प्रारंभकर्ता माना गया पौराणिक युग के सभी राजवंशों की स्थापना मनु वैवस्वत के 10 पुत्रों अथवा उनके द्वारा की गई.

3. ययाति काल (3000-2750 ई. पू.)

वैवस्वत के सबसे बड़े पुत्र इला के पुत्र पुरुरवा ने चंद्रवंशी क्षत्रिय राज्य की स्थापना की और वैवस्वत के अन्य पुत्र इक्ष्वाकु ने सूर्यवंशी क्षत्रिय राज्य की स्थापना की. पुरूरवा ने गंगा-यमुना के दोआब, मालवा और पूर्वी राजस्थान में अपने राज्य का विस्तार किया. इक्ष्वाकु ने अयोध्या साम्राज्य की स्थापना की. पुरुरवा और उर्वशी के प्रेम कहानी बहुत प्रसिद्ध है. पुरुरवा ने अपने ् समय में ब्राह्मणों को तंग किया और इसी कारण वह मारा गया. उसका आयु नामक पुत्र हुआ. आयु का पुत्र नहुष्क हुआ जो एक महान विजेता था. नहुष्क का पुत्र ययाति था जो इस वंश का सबसे शक्तिशाली तथा यशस्वी शासक सिद्ध हुआ. देवयानी और शर्मिष्ठा उनकी पत्नियां थी. ययाति के 5 पुत्र थे. उन्हीं में से एक यदु था जिसने गुजरात में यादव वंश की नींव डाली और उसके वंशज श्रीकृष्ण हुए. सूर्यवंशी इक्ष्वाकु के 100 पुत्र थे जिनमें विकुकाशि, निमि और दंड विख्यात हुए.

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4. मान्धात्रि काल (2750-2550 ई. पू.)

इस काल में मान्धात्रि ने सूर्यवंश के गौरव को श्रेष्ठ बना दिया. उसके बारे में कहा गया कि उसने संपूर्ण पृथ्वी को ही नहीं अपितु देवराज इंद्र से भी उसका आधा राज्य छीन लिया और 100 अश्वमेध यज्ञ किए. इसके कारण उसे विष्णु का पांचवा अवतार माना गया. उसके पुत्र पुरकुन्स ने अपने पिता की विजयों को नर्मदा नदी के तट तक पहुंचा दिया परंतु उसके बाद उसका राज्य दुर्बल हो गया.

5. परशुराम काल (2550-2350 ई. पू.)

इस युग की प्रमुख विशेषता क्षत्रिय हैहय वंश और ब्राह्मण भृगु वंश का संघर्ष है. पश्चिम भारत में हैहय वंश (यादव कुल का) श्रेष्ठ बन गय था. उसके राजा कृतवीर्य का भृगु ब्राह्मण वंश से झगड़ा हो गया और भृगु वंश मध्य देश चला गया. परंतु दोनों वंशों के बीच शत्रुता बनी रही. भृगु वंश के ऋषि ऊर्व के पुत्र रितिका ने कान्यकुब्ज के क्षत्रिय राजा गांधी को 1000 काले कानून वाले घोड़े देकर उसकी पुत्री सत्यवती से विवाह करने में सफलता पाई थी. उसका पुत्र जमदग्नि एक प्रख्यात भृगु ऋषि हुआ. उसकी मां सत्यवती के भाई प्रख्यात क्षत्रिय ऋषि विश्वमित्र थे. जमदग्नि के पां पौत्र थे. उनमें सबसे छोटे परशुराम थे. एक बार हैहय राजा कृतवीर्य जमदग्नि के आश्रम गया. वहाँ उसकी खूब आवभगत की गई, परंतु कृतवीर्य ने जमदग्नि से उसका कामधेनु गाय छीन ली और उसके आश्रम को नष्ट कर दिया. उसी समय से हैहय राजाओं और परशुराम का संघर्ष आरंभ हुआ. परशुराम ने कृतवीर्य का वध कर दिया. परंतु जमदग्नि ने अपने पुत्र परशुराम कार्य की भर्त्सना की और उसके पाप का प्रायश्चित करने के लिए तीर्थ यात्रा पर भेज दिया. उसके पीछे से कृतवीर्य के पुत्रों ने ध्यानमग्न अवस्था में बैठे जमदग्नि का कत्ल कर दिया. इस घटना से कुपित होकर परशुराम ने संपूर्ण छत्रिय जाति को अपना शत्रु मान लिया और उन्हें समूल नष्ट करने का निश्चय किया. उनके बारे में कहा गया कि उन्होंने इक्कीस बार पृथ्वी को क्षत्रियों से विहीन कर दिया था. उसका मुख्य शास्त्र परशु था, इसी के कारण वह परशुराम के नाम से विख्यात हुए. संभवत: उन्होंने हैहयों से 21 बार युद्ध किया और उसकी शक्ति को लगभग नष्ट कर दिया. परशुराम के जंगलों में चले जाने के पश्चात हैहय वंश ने एक बार फिर से अपने शक्ति का विस्तार किया लेकिन वे उसे स्थित ना रख सके.

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6. श्रीरामचंद्र काल (2350-1950 ई. पू.)

राजा सगर के पश्चात अयोध्या काफी दुर्बल राज्य बन गया. राजा भगीरथ के समय अयोध्या पुनः उत्थान हुआ. उसके बारे में कहा जाता है कि उसी ने गंगा को पृथ्वी पर लाया था. वह संभवतः शिव और गंगा का भक्त था. इसी वंश से राजा दिलीप द्वितीय हुआ. इसी का पुत्र रघु हुआ. इसी रघु वंश के सूर्यवंशी शासक रघुवंशी कहलाने लगे. रघु का पुत्र अज हुआ. इसी का पुत्र राजा दशरथ हुए जो श्रीरामचंद्र के पिता थे. श्रीरामचंद्र की गौरवगाथा से रामायण की रचना हुई. श्रीरामचंद्र विष्णु के अवतार माने जाते हैं. श्रीरामचंद्र के लव और कुश नाम के दो पुत्र हुए. श्रीरामचंद्र के बाद कुश अयोध्या का राजा बना और कुश को कोसल राज्य मिला. इसके बाद धीरे-धीरे उनके राज्यों का पतन हो गया.

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7. श्रीकृष्ण युग (1950-1400 ई. पू.)

श्री कृष्ण के राज्य अभिषेक के समय ही द्वापर युग का आरंभ माना गया जो कि महाभारत युद्ध के साथ समाप्त हुआ. इस युग में पंचाल, कौरव और यादव वंश प्रमुख थे. पंचालों में सुदास नामक एक महान सम्राट हुआ, लेकिन उसके उत्तराधिकारी अत्यंत दुर्बल प्रसिद्ध हुए. अंत में भीष्म की सहायता से द्रुपद पंचाल का सम्राट बना. फिर उसका झगड़ा द्रोणाचार्य से हुआ जिसने अपने शिष्य कुरु और पांडु पुत्रों की सहायता से उस पर आक्रमण करके उत्तर पंचाल को छीन लिया. द्रुपद ने द्रोणाचार्य से बदला लेने हेतु एक यज्ञ का आयोजन किया जिसके परिणाम स्वरूप धृतद्युम्न उत्पन्न हुआ. द्रुपद के पुत्री द्रोपदी को पांडु पुत्र अर्जुन ने स्वयंवर में वरण किया और वह पांचो पांडवों की पत्नी बनी.

कौरवों का उत्थान कुरु के समय में हुआ जो अपने वंश का महान सम्राट हुआ. उसी के नाम से उसके वंशज कौरव अथवा कुरुवंशीय कहलाए. कुरु के पश्चात यह वंश अत्यंत दुर्बल हो गया. अंत में प्रदीप उसका शासक हुआ. प्रदीप के तीन पुत्र थे- देवापी, बाह्वीक तथा शांतनु. देवापी कोढ़ी था और बाह्वीक ने सिंहासन का त्याग कर दिया. इसके कारण प्रदीप के पश्चात उसका तीसरा संतान शांतनु सिंहासन पर बैठा. शांतनु ने गंगा से विवाह किया जिससे भीष्म का जन्म हुआ. जब शांतनु ने एक मच्छेरे की कन्या सत्यवती से विवाह किया तो भीष्म ने स्वेच्छा से पिता के सिहासन से अपने अधिकार को त्याग दिया. सत्यवती से शांतनु के दो पुत्र चित्रांगद और विचित्रवीर्य का जन्म हुआ. चित्रांगद पिता के समय में ही गंधर्वों से युद्ध करता हुआ मारा गया. इस कारण शांतनु का उत्तराधिकारी विचित्रवीर्य हुआ. परंतु जल्द ही विचित्रवीर्य की भी मृत्यु हो गई. उसकी कोई संतान नहीं थी. व्यास ऋषि के द्वारा उसकी रानियों से नियोग किए जाने के कारण धृतराष्ट्र और पांडु का जन्म हुआ. धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधा था. इस कारण पांडू सिंहासन पर बैठा. धृतराष्ट्र का विवाह गंधारी से हुआ जिसके उनके 100 पुत्र हुए. इनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था. पांडू एक ऋषि के श्राप से त्रस्त होकर जंगल चले गए. वहां उसकी पत्नी ने यम, वायु और इंद्र से नियोग किया जिससे युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का जन्म हुआ. उसकी दूसरी माद्री ने अश्विनी कुमारों से नियोग करके नकुल और सहदेव को जन्म दिया. कुंती ने अपने विवाह से पूर्व सूर्य से नियोग करके कर्ण को जन्म दिया था, लेकिन समाज के भय से उसे नदी में बहा दिया था. बाद में उसका लालन पालन एक रथवान के घर पर हुआ. धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव और पांडु के पुत्र पांडव कहलाए. पांडु की मृत्यु जंगल में ही हो गई और माद्री उसके साथ उसके साथ सती हो गई. इसके बाद कुंती अपने बच्चों के साथ हस्तिनापुर गई और सिंहासन पर दावा किया. बाद में कौरव और पांडवों के जवान होने पर उनके बीच राज्य के अधिकार को लेकर महाभारत युद्ध हुआ.

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इसी काल में जरासंध के अधीन मगध एक शक्तिशाली राज्य बना मथुरा का राजा कंस जरासंध का दमाद था कंस का वध श्री कृष्ण ने किया जिसके कारण जरासंध निरंतर मथुरा पर आक्रमण करने प्रारंभ किए इसी कारण श्री कृष्ण के नेतृत्व में यादव ने पश्चिमी समुद्र तट पर जाकर द्वारिकापुरी को बचाया जरासंध युद्ध में पांडव पुत्र भीम के हाथों मारा गया उसके पुत्र शाहदेव ने महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिय.

पश्चिम में यादवों का राज्य अत्यंत विशाल साम्राज्य था परंतु बाद में वह छोटे-छोटे राज्य में विभाजित हो गया महाभारत काल में एक प्रमुख यादव राजा कृतवर्मा था जिसने कर्म को साथ दिया कुंती यादव वंश की थी जिसका पुत्र विवाह जिसका विवाह पांडु से हुआ था यादव में ही मथुरा का राजा उग्रसेन था जिस का सबसे बड़ा पुत्र कंस का कंस ने अपने पिता पिता को कैद करके सिहासन पर अधिकार कर लिया और बहनोई तथा मंत्री वासुदेव को भी कैद कर दिया इसी वासुदेव श्री कृष्ण का जन्म हुआ श्री कृष्ण कंस का वध करके द्वारिकापुरी बसाई महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया और विष्णु के अवतार माने जाते हैं महाभारत के पश्चात परस्पर संघर्ष में यादों के नष्ट हो जाने के कारण श्री कृष्ण जंगल में एक शिकारी ने धोखे में दिया महाभारत कौरव और पांडवों को प्राप्त हुआ.

8. महाभारत के पश्चात

युधिष्ठिर और उसके भाइयों ने शीघ्र ही राज्य को त्याग कर हिमालय पर्वत की ओर चले गए और वहीं उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने अर्जुन के प्रपौत्र परीक्षित ( अभिमन्यु के पुत्र) को सिंहासन सौंप दिया. परीक्षित के समय से ही कलयुग आरंभ हुआ. वह एक योग्य शासक था परंतु एक ऋषि के श्राप के कारण सर्प द्वारा काटे जाने (गांधार प्रदेश के नाग शासक तक्षक के आक्रमण में) के कारण उसकी मृत्यु हो गई. परीक्षित का पुत्र जन्मेजय हुआ है. उसने नागों को बहुत हानि पहुंचाई, परंतु उसके पिता का हत्यारा तक्षक जीवित बच गया. तब उसने ने उत्तर-पश्चिम में तक्षशिला तक अपना अधिकार कर लिया. जन्मेजय के पश्चात इस वंश के अनेक शासक हुए. निक्षासु के समय अकाल, बाढ़ अथवा उत्तर पश्चिम की ओर बढ़ने वाले आक्रमण के कारण इस वंश को इलाहाबाद के निकट कौशांबी को अपना राजधानी बनाना पड़ा. हस्तिनापुर इस समय तक नष्ट हो चुका था. इस वंश का शासक उदयन था जो महात्मा बुद्ध, आवंती के प्रद्योत और मगध के आजातशत्रु के समकालीन था. उस समय में उसका वंश वत्स-वंश कहलाया.

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कौशल के इक्ष्वाकु शासकों की पहली राजधानी अयोध्या और उसके पश्चात साकेत रहा. अंत में उन्होंने श्रीवास्ती को अपना राजधानी बनाया. पुराणों के अनुसार महाभारत काल से लेकर बाद के समय तक इस वंश के 31 शासक हुए. इस वंश का शासक महाकौशल था जिसका पुत्र प्रसेनजीत महात्मा बुद्ध का समकालीन था और इसकी पुत्री का विवाह विवाह मगध के शासक बिम्बिसार से हुआ था.

महाभारत के समय मगध का शासक जरासंध का पुत्र सहदेव था. वह इस युद्ध में मारा गया था. पुराणों के अनुसार इस युद्ध के पश्चात इस वंश के 21 शासक, उसके पश्चात प्रद्योत वंश के पांच शासक और अंत में शिशुनाग वंश के शासक हुए जिसमें एक बिंबिसार था. परंतु बौद्ध ग्रंथों के अनुसार सहदेव के वंशज मगध में उस समय तक शासन करते रहे जब तक कि बिंबिसार ने उनसे उनका राज्य ने छीन लिया. बिंबिसार और आजातशत्रु, महात्मा बुद्ध के समकालीन थे. उन्होंने ई. पू.छठी शताब्दी में मगध साम्राज्य की श्रेष्ठता को स्थापित किया.

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