जापान में सैन्यवाद के उदय
प्रथम रूस-जापान युद्ध (1904-05 ई.) के बाद जापान में सैन्यवाद तेजी से बढ़ा. इस युद्ध के बाद जापान ने सैन्य महत्व को समझ चुका था. इसके बाद जापान सैन्य शक्ति बढ़ाने पर काम करने लगा.
जापान में सैन्यवाद के उदय के कारण
1. सैन्यवाद के समर्थकों का प्रभाव
सदियों से जापान में चली आ रही उदार नीति के कारण जापान के व्यापारिक और अन्य हितों को काफी नुकसान पहुंच रहा था. इसके अलावा रूस-जापान युद्ध के बाद जापान की विजय के कारण अन्य महाशक्तियां जापान की बढ़ती ताकत पर अंकुश लगाना चाहती थी. इसके लिए वाशिंगटन सम्मेलन भी बुलाई गई थी. इधर जापान समझ चुका था कि सैन्य ताकत ही एकमात्र रास्ता जिससे वह विश्व में अपनी प्रभाव को बनाए रख सकता है. इसी बीच 1930 ई. में जापान के लेफ्टिनेंट जनरल कोई सी साकूराकाई ने अपने कुछ सहयोगियों के साथ साकूराकाई नामक संस्था का गठन किया. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य जापान में सैनिक शासन स्थापना करना था. इस संस्था को जापान के पूंजीपतियों और उद्योगपतियों का समर्थन मिला. इससे जापान में सैन्यवाद की स्थापना के रास्ते खुलते चले गए.
2. राष्ट्रवाद का उदय
जापान की जनता उदारवादी सरकार से थक चुकी थी. इसीलिए वे देशविरोधी ताकतों के प्रति उग्र नीति की समर्थक हो गई. 1930 ई. में जापानी की कोकरयुकाई नामक संस्था ने स्पष्ट किया कि अब जापान को अपनी ताकत का विस्तार देश के बाहर तक करना चाहिए और ये सैन्यवाद से ही संभव है. इसीलिए जापान की सरकार को सेना के विकास की ओर ध्यान देना होगा. इस प्रकार जापानी जनता में बढ़ती राष्ट्रवाद की भावना ने जापान को सैन्यवाद की ओर बढ़ाते चली गई.
3. चीन के राजनीति का प्रभाव
वाशिंगटन सम्मेलन के बाद जापान थोड़ा दबाव में आया. इसका फायदा चीन ने उठाया और उसने चीन में विदेशी प्रभावों को कम करने की दिशा में कोशिश करने लगा. ऐसे में चीन में राष्ट्रीय एकता की भावना भी जोर पकड़ने लगी. ऐसे में जापान के मन में डर पैदा हो गया कि ऐसे में तो जापान को चीन में जो सुविधाएं प्राप्त है उससे जल्दी ही हाथ धो बैठेगा. ऐसे में जापान चीन पर दबाव बना कर उनकी उन कोशिशों पर अंकुश लगाना चाहता था. जापान की ये योजना तभी संभव थी जब देश की सैन्य ताकत बढ़ती. ऐसे में जापान तेजी से सैन्यवाद की दिशा में बढ़ने लगा.
4. बोल्शेविकवाद का भय
इसी बीच चीन की सत्ता च्यांगकाई शेक के हाथों में आ गया. इसके बाद चीन और रूस के संबंधों में कटुता आ गई और रूस ने मंचूरिया पर अपना प्रभाव बढ़ा दिया. इधर मंचूरिया पर जापान के भी अपने हित थे. ऐसे में जापान मंचूरिया पर रूस के प्रभाव को सहन नहीं कर सकता था. अतः जापान ने रूस के बढ़ते प्रभाव को देखकर सैन्यवाद की दिशा में तेजी से बढ़ने लगा.
5. आर्थिक संकट
1930 ई में विश्व आर्थिक संकट से गुजर रहा था. इसका असर जापान के जन-जीवन पर भी पड़ने लगा था. आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पूंजीपतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगा था. निम्न वर्ग के लोगों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए पूंजीपतियों ने उनका ध्यान बंटाने के लिए यह प्रचार किया कि इस आर्थिक संकट से केवल साम्राज्यवादी नीति अपना कर ही छुटकारा मिल सकता है. अतः जापान के हर एक वर्ग ने जापान में साम्राज्यवाद को समर्थन करना आरंभ कर दिया. इसके लिए सैन्यवाद जरूरी था.
6. बाजार की जरूरत
जापान की बढ़ती जनसंख्या की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बाजार की आवश्यकता थी. इसके लिए उसने अपने देश से बाहर बाजार की संभावनाओं को खोजना आरंभ कर दिया. इस वजह से साम्राज्यवाद की भावना पनपने लगी. साम्राज्यवाद को धरतल पर लाने के लिए सैन्य ताकत की अत्यंत आवश्यकता थी. अतः जापान धीरे-धीरे सैन्यवाद की ओर बढ़ते चला गया.
इन सभी कारणों से जापान सैन्यवाद की दिशा में बढ़ता चला गया और आगे चलकर ये द्वितीय चीन-जापान युद्ध को जन्म दिया.
इन्हें भी पढ़ें
Note:- इतिहास से सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर नहीं मिल रहे हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में कमेंट करें. आपके प्रश्नों के उत्तर यथासंभव उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी.
अगर आपको हमारे वेबसाइट से कोई फायदा पहुँच रहा हो तो कृपया कमेंट और अपने दोस्तों को शेयर करके हमारा हौसला बढ़ाएं ताकि हम और अधिक आपके लिए काम कर सकें.
धन्यवाद.
What were the causes of rise of imperialism in japan plz iska answer upload krye
Peace treaties after second world war.