जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन का वर्णन करें

जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन (Jainism’s contribution to Indian Culture)

ई. पू. छठी शताब्दी में ब्राह्मण धर्म में बढ़ती कुरीतियों और जटिल धार्मिक कर्मकांडों के कारण लोगों में असंतोष की भावना पनपने लगी थी. ऐसे लोगों में लोग इन जटिल धार्मिक कर्मकांडों को त्याग कर सरल धार्मिक विचारधारा वाले धर्म की तलाश में थे. ऐसे समय में दों नये धर्म बौद्ध तथा जैन धर्म का जन्म हुआ. बड़ी संख्या में लोग इन धर्मों के अनुयायी बनने लगे. बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म ने भी भारतीय संस्कृति के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति के विकास में निम्ननलिखित योगदान दिया

1. दर्शन के क्षेत्र में देन

जैन धर्म, भारतीय दर्शन के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. जैन धर्म पर उपनिषदों का गहरा प्रभाव था, परंतु जैन दर्शन ने अनेक मौलिक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया. स्यादवाद इसका एक उदाहरण है. स्यादवाद एक उदार एवं सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण है. इसका अर्थ यह है कि विभिन्न दृष्टिकोण से देखने पर सत्य के विभिन्न रूप देखे जा सकते हैं. कोई भी विचार सत्य के इकाकी रूप को ही व्यक्त करता है. लोग कुछ विशेष परिस्थितियों में सत्य के कुछ रूप को देख कर ही उसे संपूर्ण सत्य समझ लेते हैं, जबकि संपूर्ण सत्य को समझने के लिए उसके प्रत्येक रूप एवं पहलू को समझना आवश्यक है. स्यादवाद के अतिरिक्त और भी कई मौलिक सिद्धांत हैं जिसे जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति को प्रदान किया है. अनेकावाद का सिद्धांत भी उस में से एक है.

2. अहिंसा

अहिंसा का प्रचार जैन जैन धर्म जितना किया उतना किसी और धर्म में नहीं किया. इनका कहना पेड़ पौधों में बिजी होता है. अतः इन को नुकसान पहुंचाना जीव हत्या करने के समान है. महावीर ने अपने अनुयायियों से पशु पक्षियों और वनस्पतियों की हत्या न करने का अनुरोध किया. जैन धर्म के अहिंसा वादी सिद्धांतों के प्रचार के कारण वैदिक धर्म में होने वाले यज्ञ में बलि प्रथा कम होने लगी थी.

जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

3. राजनीतिक प्रभाव

जैन धर्म के अहिंसा वादी सिद्धांतों में तत्कालीन राजनीति को भी काफी प्रभावित किया. बहुत से जैन धर्म के अनुयाई शासकों में अहिंसा वादी सिद्धांतों का पालन किया और युद्ध में भाग लेना छोड़ दिया. बहुत सज्जन साहित्य उसे तत्कालीन राजनीति पर जैन धर्म के प्रभाव के बारे में व्यापक जानकारियां प्राप्त होती है.

4. सामाजिक देन

जैन धर्म सामाजिक क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया. जैन धर्म को मानने वाले शासकों ने निर्धन वर्गों के लिए विश्राम आलय तथा पाठशालाओं का निर्माण कराया. इससे निर्धनों को निशुल्क दवाइयां ठहरने की सुविधा तथा शिक्षा मिलने लगी. इस समाज के अन्य वर्गों के मन में भी निर्धनों के प्रति दया की भावना तथा उन को आर्थिक सहायता देने की प्रेरणा मिली. जैन धर्म स्त्रियों की दशा को सुधारने का प्रयास किया. महावीर के समय में जाति प्रथा और उच्च नीच और छुआछूत की भावनाएं बहुत ही प्रबल थी. इसके कारण समाज में निम्न वर्गों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी. अत: जैन धर्म में छुआछूत जाति पाति का विरोध किया और सभी इंसान को एक समान बताया. जैन धर्म के द्वारे जाति प्रथा और अन्य कुरीतियों का विरोध करने के बाद ब्राह्मण धर्म की शक्तियां कम होने लगी और निम्न वर्गों की स्थिति में काफी सुधार हुआ. जैन धर्म के कारण दासो की स्थिति में भी काफी सुधार हुआ.

जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

5. धार्मिक देन

जैन धर्म ने ब्राह्मण धर्म में व्याप्त कुरीतियों और जटिल धर्म-कर्म कानून का विरोध और विरोध किया. इससे ब्राह्मणों को उसके घर में विद्यमान कुरीतियों का एहसास हुआ. ब्राह्मणों को भी लोगों को अपने धर्म की अस्तित्व बनाए रखने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था. अत: ब्राह्मणों ने अपने धर्म सुधार करना शुरू कर दिया. इसके बाद ब्राह्मण धर्म पहले की तुलना में अधिक सरल हो गया.

6. साहित्यिक देन

जैन साहित्य भारतीय संस्कृति की अमूल्य निधि है. जैन धर्म के साहित्य की रचना मुख्य रूप से प्राकृत भाषा में की गई प्राकृत भाषा इस समय लोग भाषा हुआ करती थी. अत: जैन ग्रंथों का प्राकृत भाषा को समृद्ध बनाने का बहुत ही बड़ा योगदान है. प्राकृत भाषा में रचित जैन साहित्य में अंग, उपांग, पैन, मूलसुत्त, नंदीसुत्त तथा छायसुत्त आदि प्रमुख हैं. दक्षिण भारत में भी जैन धर्म के प्रचार के लिए तमिल, तेलुगू, कन्नड़ जैसे दक्षिण भारतीय भाषा में जैन साहित्य की रचना की गई. जैन विद्यालय में धार्मिक साहित्य के अलावा व्याकरण, काव्य और गणित जैसे विषयों पर भी बहुत से ग्रंथों की रचना की गई. इस प्रकार जैन धर्म में भी साहित्यिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जैन धर्म की भारतीय संस्कृति को देन

7. कला के क्षेत्र में देन

जैन कला ने भी भारतीय संस्कृति के विकास में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जैनों ने मंदिरों, स्तूपों, रेलिंग, प्रवेश द्वारों, स्तम्भों, गुफाओं और मूर्तियों के निर्माण में अपनी कला का बेहतरीन नमूना पेश किया. ई. पू. द्वितीय शताब्दी में जैन धर्म के प्रचार हेतु हाथीगुंफा नामक गुफा में अनेक जैन कलाकृतियों का निर्माण कराया गया. इसके अलावा राजगीर, पावापुरी, पार्श्वनाथ पर्वत, सौराष्ट्र, राजस्थान एवं मध्य भारत के अनेक स्थानों में जैन मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण कराया गया. राजस्थान के आबू पर्वत तथा बुंदेलखंड के खुजराहो में बने मंदिरों में जैन धर्म की मूर्ति कला और वास्तुकला का अद्भुत नमूना देखे जा सकते हैं. इसके अलावा अन्य धार्मिक स्थलों  का निर्माण कराया गया. इस प्रकार हम पाते हैं कि भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का अत्यधिक महत्व है.

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