तराइन के प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के परिणामों की विवेचना कीजिए

तराइन के प्रथम युद्ध 

तराइन का प्रथम युद्ध मुहम्मद गोरी और चौहान वंश के शासक पृथ्वीराज चौहान के बीच सन 1191 ई. में हुआ. यह युद्ध मुहम्मद गोरी के द्वारा सन 1189 ई.में सरहिंद पर अधिकार करने के कारण हुई. सरहिंद पर जब मुहम्मद गोरी ने अधिकार कर लिया तो पृथ्वीराज चौहान, गोरी की बढ़ती शक्ति के कारण सशंकित हो उठा. गोरी की बढ़ती ताकत के कारण उसके साम्राज्य की सीमाएं चौहान साम्राज्य की सीमा से टकराने लगी थी. अत: उसने गोरी की बढ़ती शक्ति का दमन करने का निश्चय किया और एक विशाल और शक्तिशाली सेना का गठन किया. फिर उसने गोरी का सामना करने के लिए कूच किया.

तराइन के प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के परिणाम (3)

परिणाम 

मुहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान की सेनाओं के बीच थानेश्वर के निकट स्थित तराइन के मैदान में भीषण युद्ध हुआ. इस युद्ध में गोरी गंभीर रूप से घायल हो गया. वह अपने कुछ वफादार सैनिकों की मदद से किसी तरह युद्ध स्थल से भाग निकला. गोरी के भागते ही उसकी सेना भी युद्ध स्थल से भाग खड़ी हुई.

तराइन के प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के परिणाम (3)

डॉ दशरथ शर्मा ने तराइन के पहले युद्ध के बारे में लिखा है कि पृथ्वीराज चौहान चाहता तो भागते मुसलमान सेना को पूरी तरह नष्ट करके अपनी इस विजय को स्थायी बना सकता था, किंतु उसने ऐसा करने के स्थान पर उसने गोरी की बिखरी हुई सेना को बिना परेशान किए वापस लौट जाने दिया. इस प्रकार के आदर्श नीति भले ही हिंदू शास्त्रों के मानवीय दर्शन के अनुसार थे किंतु यह नीति दूरदर्शिता एवं युद्ध सिद्धांतों के प्रतिकूल थी. यह वास्तव में हिंदुओं की स्वतंत्रता के लिए बहुत ही घातक साबित हुई जिसका उत्तरदायित्व पृथ्वीराज चौहान है. 

तराइन के प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के परिणाम (3)

तराइन का द्वितीय युद्ध और परिणाम

1192 ई. में मुहम्मद गौरी ने पुनः पूरी तैयारी के साथ पृथ्वीराज पर आक्रमण किया. इस बार मुहम्मद गोरी ने छल-कपट की नीति का पालन कर पृथ्वीराज की विश्राम करते हुई सेना पर आक्रमण किया और पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया. इसके बाद पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाया गया और फिर बाद में उसकी हत्या कर दी गई. इस युद्ध को तराइन के दूसरी युद्ध के नाम से जाना जाता है. तराइन की दूसरी युद्ध में जीत हासिल करने के बाद गोरी ने अजमेर और दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया.

तराइन के प्रथम एवं द्वितीय युद्ध के परिणाम (3)

पृथ्वीराज चौहान को पराजित करने के बाद मोहम्मद गोरी ने कन्नौज पर भी आक्रमण किया. इस समय कन्नौज में गढ़वाल वंश का अत्यंत शक्तिशाली शासक जयचंद शासन कर रहा था. 1194 ई. में मोहम्मद गोरी ने जयचंद पर आक्रमण किया तथा दोनों के बीच में चंदवार के मैदान में घमासान युद्ध हुआ. इस युद्ध में गौरी की पराजय होने ही वाली थी कि जयचंद को अचानक कुतुबुद्दीन एक तीर लगा जिसके कारण उसकी वहीं पर मृत्यु हो गई. जयचंद की मृत्यु होते ही हिंदू सेना युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ी हुई. इसके बाद मोहम्मद गोरी ने मंदिरों को लूटा और उनको तोड़ कर उसके स्थान पर मस्जिदों का निर्माण कराया.

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