ताम्र पाषाण काल किसे कहते हैं?

ताम्र पाषाण काल

नवपाषाण काल के बाद आने वाले काल को ताम्र पाषाण काल अथवा ताम्र पाषाण युग कहा जाता है. इस युग में लोगों ने ताम्र अर्थात तांबे का ज्ञान प्राप्त हुई थी. तांबे के साथ-साथ इस युग में पाषाण अर्थात पत्थर के उपकरण भी इस्तेमाल किए जाते थे. इसी कारण इस काल को ताम्र पाषाण काल कहा जाता है. इस युग में मनुष्य को धातु का ज्ञान प्राप्त हुआ और धातुओं की मदद से उपकरणों का निर्माण करना शुरू कर दिया.

ताम्र पाषाण काल

ताम्र पाषाण युग का समय

वैज्ञानिक अनुसंधान के आधार पर 1800 ई. पू. से 1000 ई.पू. या 800 ई. पू. तक के काल को ताम्र पाषाण काल के नाम से जाना जाता है. हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य ने सबसे पहले स्वर्ण का प्रयोग किया था, लेकिन वर्तमान समय में अधिकांश इतिहासकार मानते हैं कि भारतीय मानव ने सबसे पहले ताम्र का प्रयोग किया था. पाषाण की तुलना में ताम्र अधिक लचीला, ठोस व मजबूत था. इसके टूट जाने पर फिर से जोड़ा जा सकता था तथा अपनी इच्छा अनुसार इसकी रूप या आकार बदला जा सकता था. तांबे से पतली चादर में भी निर्माण की जा सकती थी.

ताम्र पाषाण काल

ताम्र पाषाण युग का पतन

धीरे-धीरे मनुष्य को अन्य धातुओं का भी ज्ञान होता चला गया. उन्हें जैसे ही टिन और जस्ते का ज्ञान प्राप्त हुआ तो इन दोनों को मिलाकर कांसे का निर्माण किया. कांसा, तांबे की तुलना में अधिक मजबूत था. अत: मनुष्य ने कठोर कार्यों के लिए ताम्र के स्थान पर कांसे का इस्तेमाल अधिक करने लगा. इस प्रकार कांस्य युग की शुरुआत हुई. कांस्य युग की शुरुआत के साथ ही ताम्र पाषाण युग का पतन होना शुरू हो गया.

ताम्र पाषाण काल

उपकरण

ताम्र पाषाण काल के उपकरणों में मुख्य रूप से कुल्हाड़ी, गाड़ियां, तलवार, तीर-कमान, भाले, कटार, छैनियां आदि थे. इस काल के मानव अपने जीवन यापन करने के लिए मुख्यतः शिकार पर निर्भर थे. उनका मुख्य भोजन कच्चा मांस और कंदमूल फल हुआ करता था. इस काल में मनुष्य ने आग की खोज कर लिया था परन्तु इसके प्रयोग से अनभिज्ञ थे.

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