तुर्क आक्रमण के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा का उल्लेख कीजिए

भारत में तुर्क आक्रमण के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा

तुर्क नेता अलप्तगीन के शासनकाल (972-977) में तुर्कों ने भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. भारतीय राजाओं ने तुर्क हमले का प्रतिरोध करना शुरू कर दिया. लेकिन भारतीय शासक तुर्कों को रोकने में नाकाम रहे और तुर्क भारत के विभिन्न भागों में अपने प्रभाव को बढ़ाते चले गए. 

तुर्क आक्रमण के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा

सामाजिक स्थिति

1. वर्ण व्यवस्था

इस समय भारत में वर्ण व्यवस्था चली आ रही थी. तत्कालीन वर्ण व्यवस्था, आधुनिक वर्ण व्यवस्था से काफी समानता थी. इस समय ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के अलावा अन्य छोटी-छोटी जातियों का भी जन्म हुआ. ये जातियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र के बीच अनुलोम और प्रतिलोम विवाह के कारण हुआ था. इनकी जाति का नाम इनके व्यवसाय के आधार पर ही हुआ. जैसे कि स्वर्णकार, लोहार, जाट, खस, आमीर आदि. 

तत्कालीन समाज में ब्राह्मणों का स्थान सबसे ऊंचा था. चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार भारत में ब्राह्मणों को देवता की तरह पूजा जाता था. ब्राह्मणों का काम यज्ञ अनुष्ठान करना, अध्यापन, धार्मिक संस्कार आदि करना था. परंतु राजपूत युग तक आते-आते ये सैनिक कार्य भी करने लगे थे. क्षत्रियों का भी समाज में उच्च स्थान था. इनका मुख्य कार्य लोगों की रक्षा करना, शस्त्र द्वारा जीविकोपार्जन, सत्पुरुषों का आदर, दीन दुखियों का उद्धार करना था. क्षत्रिय युद्ध भूमि में पीठ दिखाना कायर समझते थे. वैश्यों का मुख्य काम कृषि, पशुपालन, व्यापार आदि होते थे. तत्कालीन समाज में शूद्रों की स्थिति अच्छी नहीं थी. उनको न वेद पढ़ने का अधिकार था और न जप करने का.

2. खान-पान

इस काल के लोगों का मुख्य भोजन गेहूं, धान, ज्वार, मक्का, बाजरा, जौ, चावल व विभिन्न प्रकार के साग-सब्जियां हुआ करते था. ये लोग मांस मछली का सेवन करते थे. ये मदिरा का सेवन भी करते थे.

तुर्क आक्रमण के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा

3. मनोरंजन के साधन

इस काल के लोगों के पास विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन हुआ करते थे. वे अपने मनोरंजन के लिए जुआ, शिकार खेलना,  संगीत, नृत्य आदि करते थे.

4. वस्त्र एवं आभूषण

इस समय के लोगों का पोशाक बहुत ही साधारण हुआ करता था. लोग धोती तथा सिले हुए कपड़े पहनते थे.  इनके वस्त्र मुख्य रूप से रेशमी और सूती होते थे जो कि विभिन्न रंगों के होते थे. पगड़ी का भी प्रयोग होता था. स्त्रियां विभिन्न प्रकार की आभूषण पहनती थी. आभूषणों में मुख्य रूप से हार, कुंडल, अंगूठी वलय व कड़े होते थे. स्त्रियां चोली और लहंगा पहनती थी.

5. विवाह

इस काल में विवाह अनेक प्रकार के होते थे. अंतरजातीय विवाह का प्रचलन था लेकिन सजातीय विवाह को ही श्रेष्ठ माना जाता था. बाल विवाह निषेध था. विवाह धार्मिक तथा सामाजिक रीति-रिवाजों से होते थे. क्षत्रियों में राक्षस विवाह प्रचलन था. राजकीय परिवारों में विवाह स्वयंवर के द्वारा होते थे. बहु विवाह की भी प्रथा थी.

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6. स्त्रियों की दशा

इस समय स्त्रियों की दशा बहुत ही खराब थी. लड़कियों की शिक्षा केवल राजकीय परिवार तथा धनी परिवार तक ही सीमित थी. लड़कियों को संगीत, नृत्य, चित्र कला और साहित्य की शिक्षा दी जाती थी. राजपरिवार की कन्याओं को अस्त्र-शस्त्र और घुड़सवारी की भी शिक्षा दी जाती थी. इस समय पर्दा प्रथा बहुत ही सीमित था.

7. दास प्रथा

इस काल में दास-प्रथा प्रचलन थी. इस काल में कृषि दासों की उल्लेखनीय वृद्धि हुई. जब भूमि बेची जाती थी तो उसके साथ दास भी बेच दिए जाते थे.

आर्थिक स्थिति

1. व्यापार एवं वाणिज्य

सातवीं शताब्दी से लेकर 10 वीं शताब्दी तक व्यापारिक दृष्टिकोण से भारत का समय बहुत ही खराब रहा. इस समय उत्तर भारत में नगर तथा नगरीय जीवन का पतन होना शुरू हो गया. इसके साथ-साथ व्यापार का भी पतन होना शुरू हो गया. भारत और रोम के बीच प्राचीन काल से ही व्यापारिक संबंध थी. लेकिन इस समय रोमन साम्राज्य के पतन हो जाने के कारण उसके साथ हो रहे व्यापार पर असर पड़ा. इसी समय ईरान में भी इस्लाम के उदय होने से ईरानी साम्राज्य खत्म हो गया. इससे ईरान और भारत के बीच होने वाले व्यापारिक संबंधों पर असर पड़ा. 

इस काल में भारत के व्यापारिक यातायात सुविधाओं की स्थिति भी ठीक नहीं थी. रास्ते के जंगली इलाकों में व्यापारियों को डाकू-लुटेरे लूट लिया करते थे. सड़कों की स्थिति अत्यंत खराब थी. नदियों पर पुलों की उचित व्यवस्था भी नहीं थी. इस वजह से व्यापार पर काफी बुरा असर पड़ा.

तत्कालीन सामंतवादी समाज में आत्मनिर्भर ग्रामसभा व्यवस्था को प्रोत्साहन देने से शहरीकरण में बाधा पड़ी. शहरीकरण रुक जाने का कारण व्यापार और वाणिज्य प्रभावित हुई. भारतीय धर्म शास्त्र में विदेशी यात्रा को निषिद्ध घोषित कर दिया गया था. इसके अलावा समुद्र की यात्रा से व्यक्ति की अशुद्धता जैसी अंधविश्वासों में भी व्यापार और वाणिज्य के स्तर को काफी गिरा दिया.

इतना होने पर भी भारत का व्यापारिक संबंध अरब, दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के साथ बना रहा.

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2. अरब के साथ संबंध

इस काल में भारत का अरब के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ा. भारत चंदन की लकड़ी, कपूर्, लॉन्ग,  इलायची, काली मिर्च, हाथी दांत, गरम मसाला, कपड़ा नील आदि निर्यात करता था. वहीं भारत इन से शराब, सोना, चांदी आदि की निर्यात करता था. अरब समुद्र प्रेमी होते थे. इस कारण भारत-अरब व्यापार समुद्री मार्ग से ज्यादा हुआ. इस व्यापार का प्रभाव मालवा और गुजरात पर पड़ा. इस से दोनों नगर व्यापारिक केंद्र बन गए. इस वजह से गुजरात में चंपानेर और अकिलेश्वर नामक नगरों की स्थापना हुई.

3. दक्षिण पूर्वी एशिया से संबंध

इस काल में भारत का व्यापार दक्षिण पूर्वी एशिया से बहुत अधिक हुआ. इसका मुख्य कारण भारतीय साहित्यों में दक्षिण पूर्वी एशिया की भौगोलिक स्थिति का संपूर्ण वर्णन होना है. इन साहित्यों को पढ़कर भारतीय व्यापारी दक्षिण पूर्वी एशिया की भौगोलिक स्थिति से अवगत हो गए थे. अतः दक्षिण पूर्वी एशिया के व्यापारिक  द्वार भारतीयों के लिए खुले रहे. इसके अलावा बहुत से भारतीय व्यापारी दक्षिण पूर्व एशिया में जाकर बस गए थे. वहां उन्होंने अपने वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिए थे. वे भारत से पहले से ही परिचित थे और उनका लगाव भारत के साथ था. अतः उनके प्रयासों से व्यापारिक संबंध बढ़े. इसके अलावा भारत से बहुत से बहुत से बौद्ध तथा हिंदू धर्म के प्रचारक दक्षिण पूर्वी एशिया की ओर गए. वहां उन्होंने बौद्ध तथा हिंदु धर्म के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का भी प्रचार किया. वहां के लोग भारतीय संस्कृति से प्रभावित होकर भारतीय संस्कृति का स्वागत किया. जिसकी वजह से भारत का दक्षिण पूर्व एशिया से व्यापारिक संबंध भी स्थापित हुआ.

4. चीन से संबंध

दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ भारत के बढ़ते व्यापारिक संबंधों ने चीन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध को भी प्रोत्साहित किया. चीन के साथ भारत का व्यापार स्थल मार्ग इस कारण संभव ना हुआ क्योंकि स्थल मार्ग की स्थिति चीन की दृष्टिकोण से तुर्क अरब व चीनियों के मध्य संघर्ष होना था. अमलसूदी के अनुसार कैण्टन का बंदरगाह भारत व चीन के मध्य व्यापार का चीनी अड्डा था. चीन से होने वाले व्यापार से भारत इतना लाभ था कि बंगाल के पाल शासकों तथा दक्षिण भारत के चोल पल्लव शासकों ने भी अपने व्यापारिक दूत चीन भेजे थे. चीन में होने वाले कुतुबनुमा के आविष्कार ने भी इसमें और भी गति प्रदान की.

इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत का व्यापार इस युग में जहां रोम व इरानी साम्राज्य से कम हुआ, तो वहीं दक्षिण पूर्वी एशिया और चीन से बढ़ा.

7. आर्थिक विषमता

तत्कालीन समाज में आर्थिक विषमता स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थी. एक और समाज का उच्च वर्ग जिसमें अधिकारी, मंत्री, सामंत आदि होते थे, उनका जीवन विलासी और तड़क-भड़क वाला जीवन था. दूसरी ओर सामान्य जनता आर्थिक कठिनाइयों से जूझ रहा था. उच्च वर्ग चीन से आयात किए हुए रेशमी वस्त्र वस्त्रों को धारण करता था. जब वे घर से बाहर निकलते थे तो इनके बीच नौकरों का जमघट चलता था. व्यापारी वर्ग के पास आलीशान महल, हाथी, घोड़े एवं अन्य विलासिता पूर्ण जीवन यापन करने की सामग्री की कमी न थी.

वहीं सामान्य जनता की आर्थिक स्थिति संतोषप्रद नहीं थी. कल्हण की राजतरंगिणी इन वर्गों की विषमता को स्पष्ट किया है. उनके अनुसार जहां एक और दरबारी भूना मांस खाते तथा सुगंधित शराब का सेवन करते, वहीं दूसरी ओर सामान्य जनता चावल के लिए भी तरसती थी. इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण था सामान्य जनता करों के बोझ से दबी हुई थी. कृषकों को तालाब कर, चरागाह कर तथा उपज का 1/6 भाग कर के रूप में देना पड़ता था. इसके अतिरिक्त जमींदार वर्ग उन पर अन्य कर भी लाद देते थे. तत्कालीन साहित्य के अनुसार राजपूत सरदार मृतक व्यक्तियों के संबंधियों से कफन का कर भी वसूलते थे. यही सामांत बलपूर्वक उनके पशुओं का अपहरण कर लेते थे. इन परिस्थितियों ने सामाजिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाला. इस कारण अधिकांश कृषक धीरे-धीरे डाकु-लुटेरे बनते चले गए जिससे अराजकता का वातावरण उत्पन्न हो गया.

राजनीतिक दशा

तुर्कों के द्वारा भारत में आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा अत्यंत बुरी अवस्था में थी. यही कारण है भारत में तुर्कों का आक्रमण कामयाब रहा. 

1. राजनीतिक भावना का अभाव

तत्कालीन भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय भावना का अभाव था. 12 वीं शताब्दी के आगमन तक भारतीय लोगों में राष्ट्रीयता भावना बिल्कुल कम हो गई थी. यही भारतीय राजनीतिक को अंदर से जर्जर बना रही थी. जनसाधारण में भी राष्ट्रीयता की भावना बिल्कुल खत्म हो चुकी थी. इसी के कारण राजपूत तुर्कों के विरुद्ध अपने पराक्रम को प्रदर्शित नहीं कर पाए और उन्हें बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा.

तुर्क आक्रमण के समय भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक दशा

2. दोषपूर्ण उत्तराधकार नियम

तत्कालीन भारतीय राजनीतिक में उत्तराधिकारी के लिए बहुत ही दोषपूर्ण नियम था. उस समय वंश परंपरागत राजतंत्र शासन प्रणाली प्रचलित थी. इसी कारण सेनापति अथवा शासक की मृत्यु होने के बाद उसका पुत्र ही उसके स्थान पर नियुक्त किया जाता था, भले वो अयोग्य क्यों न हो. ऐसे में अपने राज्य अथवा सेना का कुशल संचालन नहीं कर पाते थे. 

3. जनता को शासन से वंचित रखना

तत्कालीन शासन व्यवस्था में जनता को शासन से दूर रखा जाता था. इस कारण जनता में राजनीतिक उदासीनता उत्पन्न हो गई थी. साधारण जनता को इस बात से कोई दिलचस्पी नहीं रहती थी कि उनका शासक कौन है. इसी वजह से किसी भी शासक को जनता का कोई समर्थन नहीं मिल पाता था. ऐसे में जनता और शासक के बीच में कोई मजबूत संबंध नहीं बन पाया.

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4. सीमांत प्रदेशों के प्रति उदासीनता

तत्कालीन शासक अपने राज्य की सीमाओं की सुरक्षा के प्रति उदासीन रहते थे. उन्होंने अपनी सीमाओं की सुरक्षा का कोई प्रबंध नहीं किया. तत्कालीन भारतीय राजाओं ने पंजाब तक तुर्क आक्रमणकारियों को रोकने का न कोई प्रयास किया न इनसे अपने देश को बचाने के लिए कोई इंतजाम किया. यही वजह है भारत के पंजाब प्रदेश भारत पर हमले करने के लिए तुर्कों के आधार स्थल बन गए थे.

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