तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के कारण एवं परिणाम का वर्णन कीजिए

तृतीय-आंग्ल मैसूर युद्ध

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध अंग्रेजों और मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के बीच लड़ा गया था. इस युद्ध में हैदराबाद के निजाम तथा मराठे अपने स्वार्थ को लेकर अंग्रेजों के तरफ से युद्ध लड़ा. शुरुआत में इस युद्ध में अंग्रेजों को कोई सफलता नहीं मिली. ऐसी स्थिति में कार्नवालिस ने अंग्रेजीं सेना का कमान संभाला. उसने 1791 ई. में बेंगलुरु पर अधिकार कर लिया और उसके बाद टीपू सुल्तान की राजधानी श्रीरंगपट्टनम के नजदीक पहुंच गया. इसी बीच वर्षा ऋतु आरंभ हो गई और अंग्रेजों की रसद भी खत्म हो गए. अतः अंग्रेज जनरल को कुछ समय के लिए युद्ध छोड़कर पीछे हटना पड़ा. बरसात खत्म होने के बाद युद्ध पुनः आरंभ हो गया. टीपू सुल्तान ने आगे बढ़कर कोयंबटूर पर अधिकार कर लिया. टीपू सुल्तान ने बहुत बहादुरी से लड़ा, लेकिन धीरे-धीरे परिस्थिति उसके विपरीत होते गए और अंग्रेजों उसके सभी दुर्गों पर अधिकार कर लिए. इसके बाद अंग्रेजों ने उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टनम को भी घेर लिया. अतः विवश होकर मार्च 1792 ई. को टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से संधि कर ली. इस संधि में टीपू सुल्तान और कॉर्नवालिस द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था. संधि के अनुसार, टीपू के क्षेत्रों में से आधे को छीन लिया गया और मराठों, अंग्रेजों और निजाम के बीच विभाजित कर दिया गया.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध के कारण

1. पारस्परिक संदेह

1783 ई. की मंगलौर की संधि से अंग्रेजों और टीपू सुल्तान के बीच शांति स्थापित हो गए थे. उनकी यह शांति अस्थायी थी क्योंकि टीपू सुल्तान और अंग्रेज एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते थे. अतः गुप्त रूप से दोनों एक-दूसरे के खिलाफ युद्ध की तैयारी करने में लगे रहते थे. ऐसी स्थिति में दोनों के बीच युद्ध की स्थिति बनने लगी थी.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

2. टीपू सुल्तान और फ्रांसीसियों के बीच गठबंधन

1789 ई. में फ्रांस में क्रांति का महौल था. इस कारण इंग्लैंड को आशंका थी कि उसका कभी भी फ्रांस के साथ संघर्ष आरंभ हो सकता है. टीपू सुलतान ने इस स्थिति का फायदा उठाना चाहा. अतः उसने अंग्रेजों पर दबाव बनाने के उद्देश्य से फ्रांसीसियों के साथ एक गठबंधन बनाया. इसके लिए उन्होंने 1787 ई. में अपने एक राजदूत फ्रांस भेजा था. लेकिन इस गठबंधन से टीपू सुल्तान को कोई लाभ हुआ अथवा नहीं यह तो स्पष्ट नहीं लेकिन अंग्रेजों के मन में संदेह और बढ़ गया था.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

3. टीपू सुल्तान को अलग-थलग करने की कोशिश

टीपू सुल्तान को फ्रांसीसियों के साथ गठबंधन करते देखकर लॉर्ड कार्नवालिस ने भी उसे अन्य राजनीतिक शक्तियों से अलग-थलग करने का प्रयास करने लगा. उसने मराठों और हैदराबाद के निजाम को लालच देकर उनको अपनी ओर मिला लिया. उसने इन दोनों से अलग-अलग संधि भी. कर ली. ऐसे में टीपू सुल्तान और अंग्रेजों के बीच की खाई बढ़ती चली गई.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

4. गुण्टूर का विवाद

गुण्टूर एक ऐसा स्थान था जिसके द्वारा हैदराबाद के निजाम और टीपू सुल्तान दोनों समुद्र तट तक पहुंच सकते थे. द्वितीय मैसूर युद्ध के खत्म होने के बाद वारेन हेस्टिंग ने इसे हैदराबाद के निजाम को वापस कर दिया था, लेकिन लार्ड कार्नवालिस ने इस क्षेत्र का महत्व समझ कर हैदराबाद के निजाम से वापस ले लिया. साथ ही उसने निजाम को यह आश्वासन दिया था कि टीपू सुल्तान ने निजाम के जिन प्रदेशों पर अधिकार कर लिया है, उन क्षेत्रों को अंग्रेज उन्हें वापस दिलाने का प्रयत्न करेंगे. अतः इस क्षेत्र पर अधिकार के प्रश्न पर अंग्रेजों और टीपू सुल्तान सुल्तान के बीच मतभेद बढ़ गई.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

5. टीपू सुल्तान के द्वारा ट्रावनकोर के राजा पर आक्रमण करना

टीपू सुल्तान के लिए समुद्र तट तक पहुंचना बहुत ही आवश्यक था क्योंकि इसी के द्वारा फ्रांसीसियों के साथ एक-दूसरे की मदद कर सकते थे. गुंण्टूर उसके हाथ से निकल चुका था. अतः वह समुद्र तक पहुंचने के रास्ते प्राप्त करने के लिए उसने ट्रावनकोर के राजा पर आक्रमण कर दिया. ट्रावनकोर के राजा को अंग्रेजों का संरक्षण प्राप्त था.अत: अंग्रेजों ने उसकी सहायता की और इसी के साथ 1790 ई. में तृतीय मैसूर युद्ध आरंभ हो गया और यह युद्ध 1792 ई में श्रीरंगपट्टनम की संधि 1792 ई. के साथ समाप्त हुई.

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणाम

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान ने अत्यंत बहादुरी से लड़ा, लेकिन दुर्भाग्यवश धीरे-धीरे परिस्थिति उसके विपरीत होते गए और अंतत: उसे हार का सामना करना पड़ा. अंग्रेजों उसके सभी दुर्गों पर अधिकार कर लिए. इसके बाद अंग्रेजों ने उसकी राजधानी श्रीरंगपट्टनम को भी घेर लिया. इसके बाद मजबूर होकर मार्च 1792 ई. को टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से संधि कर ली. इस संधि को श्रीरंगपट्टनम की संधि के नाम से जाना जाता है. 

श्रीरंगपट्टनम संधि की शर्ते

  • श्रीरंगपट्टनम की संधि के बाद टीपू सुल्तान को लगभग अपने आधे राज्य से वंचित होना पड़ गया. इन क्षेत्रों को मराठा, निजाम तथा अंग्रेजों ने आपस में बांट लिया. बंटवारे करने पर अंग्रेजों को मालाबार, डिण्डीगाल तथा बारामहल का भाग मिला. इन भागों को प्राप्त करके अंग्रेजों ने मैसूर को तीन ओर से घेर लिया.
  • टीपू सुल्तान ने कुर्क के राजा की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया.  कुर्क के शासक ने बाद में अंग्रेजों की प्रभुसत्ता स्वीकार कर ली.
  • टीपू सुल्तान ने युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 30 लाख पाउंड देना स्वीकार कर लिया.
  • टीपू सुल्तान के दो पुत्रों को अंग्रेजों ने अपने पास बंधक के रूप में रख लिया. 

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