त्रिकोणात्मक संघर्ष का वर्णन कीजिए

प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट राज्यों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष

783 ई. के लगभग प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट राज्यों के बीच त्रिकोणात्मक संघर्ष शुरू हो गया. प्रतिहार नरेश वतसराज ने 783 ई. में कन्नौज के कमजोर राजा इंद्रायुध को पराजित करके कन्नौज पर अपना अधिकार कर लिया. व्टसराज ने कन्नौज को जीतकर वहां के राजा इंद्रजीत को ही कटपुतली सम्राट के रूप में शासन करने  दिया. 

त्रिकोणात्मक संघर्ष

जिस समय वत्सराज ने इन्द्रायुध को पराजित किया, उस समय बंगाल में पाल वंश का शक्तिशाली राजा धर्मपाल राज्य कर रहा था. वह वत्सराज के बढ़ते प्रभाव को सहन ना कर सका. उसने अपने समर्थक चक्रायुध को कन्नौज की राजसिंहासन पर बैठाने की ठान ली. कन्नौज के प्रश्न को लेकर वत्सराज और धर्मपाल के मध्य संघर्ष हुआ. इस संघर्ष में धर्मपाल को पराजित होना पड़ा. वनी-डिंडोरी-अभिलेख से पता चलता है कि वत्सराज ने आसानी से धर्मपाल को पराजित कर दिया था.  इस कथन की पुष्टि पृथ्वीराज विजय नामक ग्रंथ से भी होती है. इस ग्रंथ के अनुसार चाहमान नरेश दुर्लभराज ने गौड़ नरेश के विरुद्ध युद्ध किया था और अपनी तलवार को गंगा और समुद्र के संगम पर स्नान कराया. दुर्लभराज वत्सराज का सामांत था जिसने अपने स्वामी की ओर से पाल नरेश धर्मपाल के विरुद्ध युद्ध में भाग लिया था. यह युद्ध किस स्थान पर हुआ, इस विषय में इतिहासकारों में मतभेद है. डॉ मजूमदार के अनुसार यह युद्ध गंगा-यमुना के दोआब में हुआ था. लेकिन पृथ्वीराज-विजय के नाम नामक ग्रंथ में युद्ध का स्थान बंगाल बताया गया है. अतः युद्ध स्थान के रूप में स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है. इस युद्ध की तिथि 785-86 ई. मानी जाती है.त्रिकोणात्मक संघर्ष

राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव का प्रतिहार नरेश वत्सराज पर आक्रमण

राष्ट्रकूट शासक ध्रुवसेन, प्रतिहार नरेश वत्सराज और पाल नरेश धर्मपाल का समकालीन था. वह एक शक्तिशाली और महत्वकांक्षी राजा था. ध्रुव संपूर्ण भारतवर्ष को अपने अधीन में करना चाहता था. अत: उसने उत्तर भारत की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया. उसने अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रतिहार नरेश वत्सराज पर आक्रमण कर दिया. इस आक्रमण का अन्य कारण यह भी माना जाता है कि वत्सराज ने राष्ट्रकूटों के गृह-युद्ध में हस्तक्षेप कर ध्रुव के विरुद्ध गोविंद को सहायता प्रदान की थी.

त्रिकोणात्मक संघर्ष

गोविंद तृतीय की वनी-डिंडोरी और राधनपुर-अभिलेखों से ज्ञात होता है कि ध्रुव ने वत्सराज को पराजित कर कहीं मरूदेश में शरण लेने को विवश किया और उसने वत्सराज के यश के साथ ही उन दो राजछात्रों को भी छीन लिया जिन्हें उसने गौडराज से छीना था.

ध्रुव का पाल नरेश धर्मपाल पर आक्रमण

ध्रुव की सेनाओं ने धर्मपाल को भी पराजित किया था. इस बात की पुष्टि अमोघ वर्ष के संजान-अभिलेख से होता है. परंतु यह घटना ध्रुव-वत्सराज युद्ध के पूर्व हुई अथवा अथवा बाद में, इस की जानकारी नहीं मिलती है. संजान अभिलेख के संपादक डॉ. भंडारकर के अनुसार कन्नौज के राजा वत्सराज ने ध्रुव से पराजित होने के पश्चात धर्मपाल-ध्रुव के विरूद्ध वत्सराज से मिल गया था, किंतु ध्रुव ने उसे भी पराजित कर दिया. इस युद्ध की तिथि ज्ञात नहीं है. डॉ. अल्तेकर अभियान का समय 789-90 ई. मानते हैं.

त्रिकोणात्मक संघर्ष

सूरत अभिलेख में ध्रुव के द्वारा दोआब में धर्मपाल को पराजय करने की घटना का उल्लेख है. बड़ौदा-अभिलेख में भी कहा गया है “अपनी तरंगों से सुंदर लगने वाली गंगा और यमुना को अपने शत्रुओं से जीतकर यशमूर्ति ध्रुव ने वह अधिराज्य प्राप्त किया जो दृश्य रूप में प्रकट होती है.” इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि ध्रुव और धर्मपाल के मध्य यह संघर्ष गंगा-यमुना के दोआब में हुआ था. उत्तर-भारत में प्रतिहार नरेश वत्सराज और पाल नरेश धर्मपाल को पराजित कर राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव अपने राज्य दक्षिण को वापस चला गया. इन घटनाओं से स्पष्ट है कि वत्सराज, धर्मपाल और ध्रुव की राजनीतिक और सैन्य महत्वकांक्षाएं आपस में टकरा रही थी. भारतवर्ष की साम्राज्य-सत्ता प्राप्त करने के लिए उनके सेनाओं के बीच परस्पर संघर्ष होता रहा. तीनों शासकों के बीच हुए इस परस्पर संघर्ष को त्रिकोणात्मक संघर्ष के नाम से जाना जाता है.

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