द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) के कारणों सहित परिणाम एवं महत्व का वर्णन करें

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937)

द्वितीय चीन-जापान युद्ध 1937 को हुई. इस युद्ध में चीन को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस युद्ध में जापान ने चीन के एक बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया. यहां तक कि जापान ने नाॅनकिंग पर अपना एक कठपुतली सरकार भी बना डाली.

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937)

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) का कारण

जुलाई 1937 ई. में पीकिंग के निकट लुकचिकाओ नामक स्थान पर जापान की सेना युद्ध अभ्यास कर रही थी. इस दौरान जापान का एक सैनिक लापता हो गया. इसके बाद जापानी सैनिकों ने चीनी अधिकारियों से अपने लापता सैनिक की तलाश में मार्कोपोलो पुल पार कर वानपिंग शहर जाने की अनुमति मांगी. चीनी अधिकारियों ने जापानी सैनिकों को इसकी अनुमति नहीं दी. इस पर जापानी सैनिकों ने उस पुल को जबरन पार करने की कोशिश की. चीनियों के प्रतिरोध करने पर जापानी सैनिकों ने गोली चलाना शुरू कर दिया और चीनी और जापानी सैनिकों के बीच संघर्ष शुरू हो गई. दरअसल जापानी सैनिकों के द्वारा अपने लापता सैनिक की खोज करना तो एक बहाना था. हकीकत यह है कि वह इस क्षेत्र पर अपना अधिकार करना चाहते थे, क्योंकि यह क्षेत्र युद्ध की स्थिति में सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र था. इस क्षेत्र से पीकिंग-तिंतसीन और पीकिंग-हांको की मुख्य रेलवे लाइनें गुजरती थी. 

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937)

इस विवाद को सुलझाने के लिए चीन और जापान के बीच लगभग 3 सप्ताह तक वार्ता चली. इस वार्ता का कोई परिणाम नहीं निकला. परिणाम भला निकलता भी कैसे! जापान पहले से ही चीन पर सैन्य कार्रवाई करने का बहाना ढूंढ रहा था. वार्ता के असफल होते ही जापान ने 26 जुलाई 1937 को पीकिंग-तिंतसीन पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया. चीन की नाॅनकिंग सरकार के द्वारा इसका विरोध करने पर जापान ने चीन के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया.

युद्ध शुरू होते ही जापानी सेना ने चीन के हपोई प्रांत के संपूर्ण क्षेत्र को अपने कब्जे में ले लिया. इसके बाद 31 अगस्त 1937 को जापानी सेना ने शंघाई पर आक्रमण कर दिया. चीनी कम्युनिस्टों ने जापानी आक्रमण का विरोध किया परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली. चीन ने इस मामले को 12 सितंबर 1937 ई. को राष्ट्र संघ में उठाया. परंतु राष्ट्र संघ इस मामले को सुलझाने में असफल रहा. इधर जापान शंघाई और नानकिंग पर 13 दिसंबर 1937 तक अपना कब्जा कर लिया. इस कारण च्यांग काई शेक की नॉनकिंग सरकार को पश्चिम चुंगकिंग की ओर पलायन करना पड़ गया. 22 मार्च, 1938 ई. को जापान ने नाॅनकिंग पर अपना एक कठपुतली सरकार बैठा दिया. जापानी सैनिकों से अपने अभियान तेज करते हुए फरवरी 1939 ई. तक हांको, हेनान एवं कैण्टन पर अपना अधिकार जमा लिया. इस प्रकार पीकिंग-हांको कैण्टन रेखा से पूर्व का संपूर्ण क्षेत्र जापान के नियंत्रण में आ गया. 

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) के कारणों सहित परिणाम एवं महत्व का वर्णन करें

इसी बीच द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो जाने के कारण चीन में जापान का अभियान धीमा पड़ गया. अब जापान सोवियत संघ के विरुद्ध युद्ध का पक्षपाती बन गया. जापान के दबाव में आकार नानकिंग की कठपुतली सरकार ने 9 जनवरी 1953 ई. को इंग्लैंड और अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. द्वितीय विश्वयुद्ध का भाग बन जाने के कारण चीन-जापान युद्ध का अंत भी अगस्त 1945 ई. में जापान के द्वारा आत्मसमर्पण करने के बाद ही हुआ.

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) के कारणों सहित परिणाम एवं महत्व का वर्णन करें

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) का परिणाम

इस युद्ध का परिणाम यह हुआ कि चीन के पीकिंग-हांको के पूर्व के संपूर्ण क्षेत्र में जापान का अधिकार हो गया. जापान ने नाॅनकिंग पर अपना एक कठपुतली सरकार भी बना दिया जो कि जापान के इशारे पर अपना काम करने लगी. चीन के द्वारा इस मामले को राष्ट्र संघ में भी उठाया गया पर राष्ट्र संघ भी इस मामले को सुलझाने में नाकाम रहा. द्वितीय विश्व युद्ध के शुरू हो जाने के बाद जापान के दबाव में आकार नानकिंग की कठपुतली सरकार को अमेरिका और इंग्लैंड के खिलाफ युद्ध करनी पड़ गई.

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) के कारणों सहित परिणाम एवं महत्व का वर्णन करें

इस युद्ध में जीत हासिल करने के बाद अब जापान विश्व के उन महाशक्तियों के रूप में उभर चुका था जो विश्व के महाशक्तियों से सीधा टक्कर ले सकते. द्वितीय चीन-जापान युद्ध के बाद जापान की ताकत और हौसले काफ़ी बुलंद हो चुके थे. उसने अपनी सैन्य ताकत को भी काफी बढ़ा लिया था. इस युद्ध में उसने जिस प्रकार चीन पर अपना अधिकार कर लिया, उसे यकीन हो चुका था कि वह अकेले ही विश्व के महाशक्तियों का मुकाबला कर सकता है. यही कारण है कि अमेरिका और इंग्लैंड के द्वारा उनके हितों को होते खतरे को देखते हुए द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरू होते ही अमेरिका और इंग्लैंड जैसे महाशक्तियों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. द्वितीय विश्व युद्ध में वह जिस प्रकार अमेरिका और इंग्लैंड के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने की हिम्मत की वास्तव में इसके पीछे चीन-जापान युद्ध ही जिम्मेवार था, क्योंकि उसने बहुत ही आसानी से चीन पर जीत हासिल कर ली थी. उसकी इसी जीत ने उसके आत्मविश्वास को काफी बढ़ा दिया था. 

द्वितीय चीन-जापान युद्ध (1937) का महत्व

द्वितीय चीन-जापान युद्ध का विश्व इतिहास में बहुत बड़ा महत्व है. इस युद्ध ने जापान को विश्व के महाशक्तियों में से एक के रूप में पहचान दिलाई. इसके दौरान ही द्वितीय विश्वयुद्ध के शुरू हो जाने के कारण जापान ने अपने हितों को देखते हुए अमेरिका और इंग्लैंड के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान ने अमेरिका और इंग्लैंड जैसे महाशक्तियों को भी नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था जब तक कि अमेरिका के द्वारा उन पर परमाणु हमला न किया गया. अमेरिका के द्वारा जापान पर परमाणु हमले करने के बाद मजबूर होकर जापान को आत्मसमर्पण करना पड़ा और इसी के साथ द्वितीय विश्वयुद्ध के साथ-साथ द्वितीय चीन-जापान युद्ध का भी अंत हो गया.

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