द्वितीय बाल्कन युद्ध के कारण

इन बातों से स्पष्ट है कि बलगारिया का मतभेद यूनान और सार्बिया दोनों से था. बलगारिया का कहना है कि उसने प्रथम बाल्कन युद्ध में सर्वाधिक क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की थी. अत: ज्यादातर क्षेत्रों पर उन्हीं का अधिकार होना चाहिए. दूसरी तरफ यूनान, सर्बिया और रूमानिया का कहना था कि तुर्की को सभी देशों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर पराजित किया था. अत: क्षेत्रों का बंटवारा सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए समान दृष्टि में होनी चाहिए. बलगारिया इस बात से असहमत था. प्रथम बाल्कन युद्ध में बलगारिया ने अभूतपूर्व विजय प्राप्त की थी. इसी विजय के नशे में चूर होकर उसने 29 जून 1913 ईस्वी को उसने सर्बिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. युद्ध की घोषणा होते हुए होते ही यूनान और रूमानिया ने भी साबिया का पक्ष लेते हुए बलगारिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी. इधर प्रथम बाल्कन युद्ध में बलगारिया से बुरी तरह मिली हार से खार खाए हुए तुर्की ने भी इस मौके का फायदा उठाया और उसने साबिया, यूनान, और रुमानिया का पक्ष लेते हुए बलगारिया के खिलाफ़ युद्ध की घोषणा कर दी.
युद्ध की घटनाएं
युद्ध की शुरुआत 29 जून 1913 को हुई इस युद्ध में एक और सरबिया, यूनान, रोमानिया और तुर्की की सेना थे और दूसरी तरफ अकेला बुलगारिया. इस युद्ध में दोनों पक्षों में एक-दूसरे के पक्ष जातियों की नृशंस हत्याएं की. 9 जुलाई 1913 को सिलिस्ट्रिया पर रुमानिया का अधिकार हो गया. 20 जुलाई को तुर्की ने एड्रियानोपल पर अधिकार कर लिया. लगातार हो रही पराजय को देखते हुए बुलगारिया घबरा गया. अतः उसने आत्मसमर्पण कर दिया. इस विवाद को सुलझाने के लिए 10 अगस्त 1913 ईस्वी को दोनों पक्षों के बीच बुखारेस्ट की संधि हुई.
बुखारेस्ट की संधि की अनुबंध
- मैसीडोनिया का बंटवारा कर लिया गया. सर्बिया को मध्य मैसीडोनिया, माण्टेनीग्रो को पश्चिमी मेसेडोनिया तथा यूनान को दक्षिणी मैसीडोनिया दिया गया.
- सिलिस्ट्रिया का दुर्ग तथा डोबुआ का कुछ भाग रूमानिया को दिया गया.
- सालोनिका और एपिरस पर यूनान का अधिकार मान लिया गया. पूर्वी क्षेत्र के मेस्टा का समुद्र तट भी यूनान को दे दिया गया.
- एड्रियानोपल, डेमोटिका और किर्क किलीसी पर तुर्की का अधिकार मान लिया गया.
- बुल्गारिया को इजियन सागर तक पहुंचने के लिए डेडीगैच बंदरगाह के पास एक संकरी सी पट्टी दे दी गई.
इस प्रकार द्वितीय बाल्कन युद्घ का अंत हुआ. हालांकि ये संधि भी किसी पक्ष को पूर्ण रूप से संतुष्ट नहीं कर पाया. आगे चलकर ये संधि विश्व युद्ध को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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