द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों का वर्णन करें

द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945 ई.)

द्वितीय विश्वयुद्ध लगभग 6 वर्षों तक लड़ा गया था. द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम के दृष्टिकोण से मानव इतिहास का सबसे भयावह एवं विनाशकारी युद्ध था. इस युद्ध में लाखों लोग अपने प्राणों से जान धो बैठे और लाखों संख्या में लोग घायल हुए. इस युद्ध के प्रभाव इतने व्यापक है कि विश्व युद्ध खत्म होते ही इतिहास के एक युग का अंत हो गया और इसके एक नए युग का आरंभ हुआ. युद्ध के बाद विश्व में युद्ध की विनाशलीला को देखकर आने वाले समय में होने वाले युद्ध की संभावनाओं के बारे में कल्पना मात्र से ही लोगों के मन में भय, चिंता, अनिश्चितता और तनाव की स्थिति लंबे समय तक बनी रहे बनी रही.

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

1.युद्धरत देशों की अपार क्षति

द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लेने वाले सभी देशों को गंभीर क्षति उठानी पड़ी. इस युद्ध में सबसे ज्यादा क्षति रूस को हुई. रूस के स्टालिनग्राड के युद्ध में मारे गए रूसी नागरिकों की संख्या तो इस पूरे विश्व युद्ध में मारे गए अमेरिकनों के संख्या के बराबर थी. इसका मुख्य कारण 1944 ई. तक धुरी राष्ट्रों के विरोध में पश्चिमी देशों ने कोई दूसरा मोर्चा नहीं खोला था. इस कारण जर्मनी का हमला केवल रूस के मोर्चों पर ही हो रहा था. इस युद्ध में रूस को लगभग 1 अरब 28 करोड़ डॉलर की संपत्ति का नुकसान उठाना पड़ा. लगभग 17 हजार नगर नष्ट हो गए और उसके 70 लाख नागरिक मारे गए. इस युद्ध में ब्रिटेन को भी काफी क्षति उठानी पड़े. उसके लगभग चार लाख 45 हजार नागरिक मारे गए. उनका अंतरराष्ट्रीय व्यापार कम हो गया. कोयले एवं कपड़े के उत्पादन में कमी आ गई. इसके परिणाम स्वरूप उसे 1946 ई. में संयुक्त राज्य अमेरिका से 3 खरब $75 करोड़ डॉलर का कर्ज लेना पड़ा. यह कर्ज 2% ब्याज की दर से 50 वर्ष का की अवधि में चुकाने पर सहमति बन. फ्रांस के भी 3 लाख 80 हजार नागरिक मारे गए. उनका कृषि उत्पादन 38% कम हो गया और औद्योगिक उत्पादन 30% घट गया. 1945 ई. तक फ्रांस के दैनिक जीवन में इस्तेमाल होनेवाली वस्तुओं की कीमत में 296% तक की वृद्धि हो गई. इस युद्ध में इटली के 6 लाख 36 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए. उसके अलावा उनको अन्य धन-संपत्ति के नुक्सान का सामना करना पड़ा. हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका के द्वारा परमाणु बम गिराए जाने कारण जापान में लाखों लोग काल के गाल में समा गए. परमाणु बम के हमले के कारण जापान का मनोबल टूट गया. इसके अलावा इस युद्ध में चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, हंगरी, युगोस्लाविया, यूनान तथा अल्बानिया को भी काफी क्षति उठानी पड़ी.

2. यूरोपीय प्रभुत्व की समाप्ति

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात एक नवीन युग का जन्म हुआ. इस नवीन युग में विश्व में यूरोपीय देशों का प्रभाव समाप्त हो चुका था. युद्ध से पहले पूरे विश्व में यूरोपीय शक्तियों का दबदबा हुआ करता था. लेकिन द्वितीय विश्वयद्ध ने यूरोपीय शक्तियों को इतना कमजोर कर दिया था कि उन्हें फिर से अपने देश की स्थिति संभालने के लिए कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा. इस युद्ध के परिणामस्वरूप  धुरी राष्ट्रों ने अपने साम्राज्य के बहुत से हिस्से गवां दिए. ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देश शक्तिहीन हो गए.

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

3. दो महाशक्तियों का उदय

द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद लगभग सभी यूरोपीय देश शक्तिहीन हो गए. इसके बाद एक नए युग का जन्म हुआ. इस युग में दो विश्व महाशक्तियों का उदय हुआ. ये महाशक्तियां रूस और अमेरिका थे. युद्ध के खत्म होने तक रूस विजयों के द्वारा अपनी सीमाओं को काफी विस्तृत कर चुका था. उनकी सीमायें पश्चिम तक फैल चुकी थी. पोलैंड, रोमनिया, हंगरी, बुल्गारिया, अल्बानिया एवं चेकोस्लोवाकिया आदि देश की रूस के मित्र बन गए. इस समय जापान का पतन हो चुका था. ब्रिटेन भी आर्थिक रूप से जर्जर हो चुका था. जर्मनी और इटली की शक्ति खत्म हो गई. चीन गृह युद्ध में चल रहा था. अत: उसका मुकाबला करने वाली एक ही शक्ति बच गई हुआ थी वो था अमेरिका. अतः इस द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और रूस विश्व की दो महाशक्तियों के रूप में उभरे.

4.शीत युद्ध का आरंभ

द्वितीय विश्वयुद्ध के खत्म होते ही अमेरिका और रूस विश्व महाशक्ति के रूप में उभरे. दोनों देश परस्पर एक दुसरे के विरोधी थे. अत: दोनों देशों के बीच तनाव का वातावरण बनने लगा. इसके साथ ही दोनों देशों के बीच युद्ध की संभावना प्रबल होने लगी थी. दोनों एक दसरे के खिलाफ सैन्य तैयारियों में लग गए. इसी के साथ ही शीत युद्ध का आरंभ हो गया. ये शीत युद्ध काफी लम्बे समय तक चली.

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

5. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विघटन

विश्व युद्ध के ख़त्म होने के साथ ही साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विघटन हो गया. इस विश्व युद्ध के दौरान वैसे कई देशो में यूरोपीय देशों के खिलाफ स्वतंत्रता का संग्राम भी चला रहे थे जो यूरोपीय देशों के साम्राज्यवादी और उपनिवेशवादी विचारधाराओं के कारण इन देशो के गुलाम बने हुए थे. ये देश इस विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों का समर्थन समर्थन कर रहे थे. विश्व युद्ध के ख़त्म होने के बाद यूरोपीय देश पूरी तरह शक्ति हीन हो चुके थे. अत विश्व युद्ध के समाप्त होते ही यूरोपीय देशों के साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का गुलाम बने देश स्वतंत्रता प्राप्त कर लिए.

6. प्रादेशिक संगठनों का निर्माण

विश्व युद्ध खत्म होते ही अमेरिका और रूस विश्व महा शक्तियों के रूप में उभरे. इसके साथ ही दोनों के बीच में शीत युद्ध की स्थिति बनने लगी. इस स्थिति को देखकर अमेरिका ने अपने प्रभाव में वृद्धि करने के लिए क्षेत्रीय एवं प्रादेशिक संगठनों का गठन करना शुरू कर दिया. इन संगठनों में मुख्य रूप से नाटो, वारसा पैक्ट, सीटो एवं ओ.ए.एस. आदि शामिल हैं.

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

7. मानवतावाद

विश्वयुद्ध के दौरान कमजोर राष्ट्रों को यूरोप के शक्तिशाली और साम्राज्यवादी ताकतों का शिकार करना पड़ा. उन ताकतों के द्वारा इस युद्ध से पहले और बाद में कमजोर राष्ट्रों के अल्पसंख्यकों के अधिकारों को कुचला गया और उन पर जुल्म ढाया गया. इससे इसे देखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने मानव अधिकारों की घोषणा पत्र प्रकाशित किया. इस घोषणा पत्र के द्वारा संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकारों की रक्षा तथा कमजोर अल्पसंख्यक वर्गों की सुरक्षा और हितों को ध्यान रखते हुए उनके लिए कई घोषणाएं की और उनके हितों में कदम उठाए.

8. निशस्त्रीकरण का प्रयास

द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम का प्रयोग किया था. परमाणु बम के प्रभाव से जापान में भीषण तबाही हुई. लाखों लोग अपने प्राणों से हाथ धो बैठे और लाखों घायल हुए. परमाणु बम की इस विनाश लीला को देखकर अंतरराष्ट्रीय जगत ने निशस्त्रीकरण के प्रयास करने की कोशिश की ताकि भविष्य में इस प्रकार की जान माल की क्षति ना हो सके. लेकिन इस दौरान रूस एवं अमेरिका के बीच के मतभेदों के कारण निशस्त्रीकरण के प्रयास सफल ना हो पाया.

द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम

9. उपनिवेशन में नवजागरण

द्वितीय विश्वयुद्ध का सबसे गंभीर प्रभाव उन उपनिवेशों पर पड़ा जो पश्चिमी साम्राज्यवादी शक्तियों के प्रभाव में थे. जापान ने एशिया, एशिया वालों के लिए का नारा दिया जो कि भारत और चीन जैसे पश्चिमी और यूरोपीय उपनिवेशों के गुलाम बने हुए थे, उनके लिए यह नारा स्वतंत्रता का प्रतीक बन गया. जापान ने जिस प्रकार एशिया में कड़ाई से पश्चिमी साम्राज्यवादी ताकतों का जोरदार ढंग से विरोध किया था, उसका प्रभाव भारत और चीन जैसे देशों पर भी पड़ा और उनके प्रभाव से इन देशों में स्वतंत्रता की लड़ाई में और ही तेजी आई. जापान के द्वारा इन कदमों से वर्मा, भारत, चीन जैसे देशों में राष्ट्रीयता की भावना काफी बढ़ गई और इन देशों की जनता पश्चिमी उपनिवेशवाद की ताकतों पर जोरदार आघात करना शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप पश्चिमी तथा यूरोपीय उपनिवेश की शक्तियां कमजोर पड़ गए और धीरे-धीरे ये देश उपनिवेशवाद के प्रभाव से आजाद होते चले गए.

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इन्हें भी पढ़ें:

  1. द्वितीय विश्वयुद्ध के कारणों का वर्णन करें
  2. सामंतवाद के दोष बताईए
  3. सामंतवाद से आप क्या समझते हैं? सामंतवाद के दोषों और उसके पतन के कारणों का उल्लेख कीजिए

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