द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय के क्या कारण थे? | द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के कारण

द्वितीय विश्व युद्ध

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान को बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा. इस पराजय के बाद जापान ने 2 सितंबर 1945 ई. को मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. विश्वयुद्ध से पहले एशिया के साथ-साथ विश्व में जापान के सैन्य शक्ति का बहुत ही ज्यादा प्रभाव था उस समय जापान से युद्ध करने के लिए विश्व की महाशक्तियां भी घबराती थी लेकिन इस हार के साथ ही जापान का सैन्य  प्रभाव विश्व से से खत्म हो गया. इस हार से जापान की कमर टूट गई. इसके बाद रूस ने जापान से खुली को रिलीज और दक्षिण सखालिन को छीन लिया. कोरिया के ऊपर से जापान का प्रभाव फट जाने के कारण इसे रूस और अमेरिका ने आपस में बांट लिया. कुल मिलाकर देखा जाए तो हम पाते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की पराजय होने के बाद उसका प्रभाव विश्व से लगभग पूरी तरह खत्म हो गया.

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय
जापान की पराजय के कारण

1. अयोग्य एवं कायर नौकरशाही

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान की सत्ता पर अयोग्य एवं कायर नौकरशाह पदों पर बैठे हुए थे. उनके पास न तो देश को चलने के लिए राजनीति अनुभव और योग्यता थी और न सैन्य नेतृत्व तथा युद्ध की रणनीति बनाने की क्षमता थी इस कारण द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान की सेना को सरकार की ओर से प्रशासनिक, राजनीतिक और सहयोग पूर्ण रूप से मिल नहीं पाया. युद्ध दौरान सेना और सरकार के बीच तालमेल की भी भरी कमी थी. सेना को हथियार और खाद्य सामग्री की आपूर्ति भी ठीक से नहीं हो पा रही थी. इस कारण सेना खुद से अपने हौसले और रणनीति के बल से युद्ध जारी रखी. सरकार के इस रवैये के कारण जापानी सेना का मनोबल धीरे धीरे गिरता चला गया और अंतत: उनको हार का सामना करना पड़ गया. 

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय

2. सफलता के नशे में अंधे हो जाना

द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत में जापान को चीन और रूस के खिलाफ लगातार बढ़त मिलती जा रही थी. जापान लगातार चीन के विभिन्न इलाकों पर कब्जा करता जा रहा था. कोरियाई प्रायद्वीप पर भी जापान ने अपना प्रभाव पूरी तरह जमा चुका था द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान को लगातार मिल रही सफलताओं ने जापान को अंधा कर दिया. उसे इस बात का अहसास हो गया था कि अब उसकी शक्ति के आगे कोई विश्व का कोई महाशक्ति टिक नहीं सकती. अतः वह भविष्य में होने वाले परिणामों को नजरअंदाज करते हुए चीन और जापान के विभिन्न क्षेत्रों पर लगातार हमला कर कब्ज़ा करता जा रहा था. सफलता के इसी नशे में चूर होकर उसने अमेरिकी नौसेना अड्डे पर्ल हार्बर पर भी भीषण हमला कर दिया. इस हमले में अमेरिका के हजारों सैनिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस हमले के कारण अमेरिका का जापान के प्रति गुस्से का ठिकाना नहीं रहा और अब तक विश्वयुद्ध से तटस्थ बनाये रखे  अमेरिका को भी विश्वयुद्ध में कूदना पड़ा. आखिर में यही अमेरिका जापान के पराजय का कारण बना. 

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय

3. इटली और जर्मनी का जापान से दूर होना

द्वितीय विश्वयुद्ध में दुनिया दो गुटों में बंटा हुआ था. एक गुट में इटली, जर्मनी और जापान थे तो दूसरे गुट में अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस तथा अन्य यूरोपीय महाशक्तियां थी. इटली और जर्मनी, जापान से काफी दूर थे यही कारण युद्ध की स्थिति में इटली और जर्मनी के लिए जापान की मदद करने के लिए आना संभव नहीं था. यही कारण जापान को इस क्षेत्र में अकेले युद्ध करना पड़ रहा था. इससे जापान धीरे-धीरे कमजोर होते चला गया.

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय

5. जापानी सैन्य शक्ति का वैज्ञानिक और तकनीकी मामले में पिछड़ापन

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान की सेना वैज्ञानिक तकनीकी रूप से विश्व के अन्य महाशक्तियों की तुलना में काफी पिछड़ा था. इसी कारण जापान की सेना को युद्ध के दौरान आधुनिक सैन्य तकनीकों के आभाव से दुश्मनों का सामना करने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. जबकि दुश्मन की सेना जापान की तुलना में अत्याधुनिक वैज्ञानिक और सैन्य तकनीक से लैस थी. यही कारण वे जापान पर लगातार बढ़त बनाये हुए थे. ऐसे में जापान को पराजय का सामना करना पड़ा.

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की पराजय

6. जापान पर परमाणु बम का प्रयोग

द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार का सबसे बड़ा कारण अमेरिका के द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों में परमाणु बम से हमला करना है. इन हमलों में जापान के लाखों लोग काल के गाल में समा गए. इन हमलों के बाद जापान की कमर टूट गई और वे आगे युद्ध जारी रखने की स्थिति में नहीं रहे. अत: उसे मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ गया. जापान के आत्मसमर्पण करने के साथ ही द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत हो गया. 

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